Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 47
________________ १६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एत्थ खणे पत्थावं, लहिउं राया जओ भणइ साहुं । विणओ णओ निवेसिय सीसम्मि वरंजलीबंधं ॥ ३८४ ।। भयवं ! तइया पुत्तो मह देवीए कराओ केण हढो । कत्थ व अच्छइ संपइ, सुहं व दुक्खं व किं पत्तो ? ॥ ३८५ ।। का वा एसा इत्थी, माणुसिरूवा वि निययरूवेण । अमरासुररमणीण वि, मणम्मि वेलक्खयं जणइ ।। ३८६ ।। इत्थीभावसुलब्भं, किह वा भयमुज्झिऊण अइभीमे । सीहम्मि समारूढा, समागया वंदणत्थं वो ॥ ३८७ ।। को वा एस कुमारो, दिट्ठो वि जणेइ अम्ह आणंदं । एवं पुट्ठो साहु, भणइ निवं सुणसु नरनाह ! || ३८८ ॥ जो सो जयसिरिदेवीहत्थाओ सुओ हियो तया तुज्झ । वणरायदेवनामो, स एस कुमरो महाराय ! ॥ ३८९ ॥ केरलनरिंद-सिरिदेविपुत्तओ जणवएसु सुपसिद्धो । गयबंधणागएणं, केरलरन्न च्चिय गहीओ ।। ३९० ।। जाउ इमा परितुट्ठा, इत्थी एसा वि तुज्झ धूय त्ति । जयसिरिउयरुप्पन्ना, सीहरहा सुरकयभिहाणा ॥ ३९१ ।। सिंहीभयाओ जइया, तुह देवी पुत्तयं पसुया य । तइय च्चिय तग्गब्भाओ निवडिया पढमयं एसा ॥ ३९२ ॥ हरिदइयागुरुभयसंभमेणउब्भंतमाणसाए य । न य लक्खिया य देवीए निययगब्भाओ वि पडंती || ३९३ ॥ तत्थेव ठिया पडिया, देवी य पहाविया सुयं गहिउं । भवियव्वयानिओएण तत्थ पत्ता य सा सीही ॥ ३९४ ।। नियजायगबुद्धीए, तीए गहिऊण ससिसु मज्झम्मि । धरिया नियथणदुद्धं च पाइया निययपोए व्व ॥ ३९५ ॥ एवं च दंसणप्फंसणेण सिंहेसु चेव कयपीई । वुड्ढिं पत्ता तद्दुद्धपाणसंजायदेहबला ।। ३९६ ॥ आऊरियलायण्णा, चडिया तारुन्नए उदग्गम्मि । बाला बालमयारीविदेण जुया हरिम्मि गया ।। ३९७ ।। नियलीलाए गच्छंतएण रमणीयगयणमग्गेण । दिटठा य अन्नया चंडवेगनामेण खयरेण ।। तं बालं अवलोइय, तत्थेव ठिओ इमो तयासाए । परिचत्तदारघररिद्धिपरियणो रन्नदेसम्मि ।। ३९९ ॥ तीए अक्खित्तमणो, सीहगुहाए पसुत्तयं दर्छ । ता मज्झरत्तसमए, तं अवहरिऊण सो चलिओ ॥ ४०० ॥ गुहबहिदेसठिएण य, केण वि मोत्तूण घोरहुंकारं । रे रे जासि कहिं घेत्तुमेयमिय भणिय सो खलिओ ॥ ४०१ ॥ रुद्धा सव्वत्तो वि हु, दिसाओ सव्वाओ जेण देवेहिं । सोहम्मवासिदेवस्स अमरचूलस्स आणाए । ४०२ ॥ एसा तस्स उ भज्जा, जा ताओ नियाओ अक्खए चविउं । उप्पण्णा जयरायस्स पुत्तिया जयसिरिपियाए ॥ ४०३ सीहरह त्ति सुरेहिं, कयाभिहाणाइ कूरसत्ताण । मज्झे संवसमाणा, रक्खिज्जइ चरिमदेह त्ति ॥ ४०४ ।। ता एईए पायप्पणामकरणम्मि चेव अहिगारो । तुम्हारिसाण भो चंडवेग ! न उ अन्नकम्मम्मि ॥ ४०५ ।। नियभाउएण सद्धिं, उग्गतवं चरिय पाविही सिद्धिं । तत्थेव मुंच ता नियसेज्जाइ पवित्तमुत्तिमिमं ॥ ४०६ ॥ निद्दाखयं न वच्चइ, जाव इमीए तओ य सो खयरो । तव्वयणं काऊणं, निययट्ठाणम्मि संपत्तो ।। ४०७ ॥ देवेहिं इमा य पवित्तभक्खभोज्जेहिं पवरवत्थेहिं । साराभरणेहिं तहा, लालिज्जंती सुहेणेव ॥ ४०८ ।। कुसला सव्वकलासु वि, संजणिया जणणि-जणयरहिया वि । सहवासित्तेणेवं, तिरियाण वि वल्लहा जाया ॥ ४०९ इय सुणिऊण कुमारो, सीसम्मि कयंजली भणइ साहू । भयवं ! सिरिजयराया, जणओ जणणी जयसिरी य ॥ ४१० सीहरहा वि य भइणी, जेट्ठा मह आह मुणिवरो एवं । ता उठ्ठिऊण जणयं, जणणिं भइणिं च वंदेइ ॥ ४११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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