Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं अन्नम्मि दिणे अत्थाणवत्तिणो नरवइस्स पासम्मि । आगंतूणुज्जाणाओ हरिस-रोमंच-कंचुइओ ॥ १२२ ॥ पभणइ पणामपुव्वं वणपालो देव ! वड्ढ-दिट्ठीए । तुम्हुज्जाणे जम्हा सुगंधिपवणाभिहाणम्मि ॥ १२३ ॥ बहुमुणिजणपरिवारो, वारियनीसेसपाणिपडिघाओ । घाइक्खयउग्घाडियकेवलनाणुल्लसंतसिरी ॥ १२४ ॥ सिरिहरपसिद्धनामो वि दूरपरिचत्तसिरिहरसमूहो । देविंदपणयपाओ वि विहियअसुरिंदसंथवणो ॥ १२५ ॥ संजमिओ वि न बद्धो, भवपासेहिं कसायरूवेहिं । निक्कामो वि हु तह कामदायगो पणयलोयस्स ॥ १२६ ॥ तवतेएणं अच्चुक्कडेण मुत्तीए सोमयाए य । जो चंडरस्सितुहिणयरकिरणरासी इवुप्पण्णो ॥ १२७ ॥ सो अज्ज मुत्तिमंतो, धम्मो व्व समागओ मुणिवरिंदो । दुरियकरिकेसरी विविहसाहुनिवहेण परियरिओ ॥ १२८ ॥ (कुलयं) अवि यजो रयणदीवदेसु व्व णंतगुणरयण-आलओ वि फुडं । अच्चब्भुयमेयं जं, न होइ भवजलहि-मज्झम्मि || १२९ किं च - जस्सागमणम्मि वणं, पि चलिरसाहं नमंतसिहरग्गं । हरिसभरनिब्भरं नच्चइ व्व तह कुणइ व पणामं ॥ १३० ॥ जस्स य घणकुसुमामोयमिलियमहुमत्तमहुयररवेण । गुणसंथवं करेइ व्व मंजरीजालपुलइल्लं ॥ १३१ ।। अपरं च - जम्मि समोसरिए मणिवइम्मि सव्वोउयहितं जायं । फल-फुल्ल-मंजरी-पल्लवेहिं समकालरमणिज्जं ॥ १३२ ।। तहा हिहरिसेण मुयंताओ, सअंसुबिंदूसु पत्तनेत्तेहिं । मंजरिमिसेण पुलयं व जत्थ दंसंति सहयारा ॥ १३३ ॥ रमणीपण्हिपहार, विणा वि दट्टुं सफुल्लदलरिद्धिं । पवणपहल्लिरपल्लवकरहिं नच्चइ व कंकेल्ली || १३४ ॥ कामिणिमहुकुललयमंतरेण बउलो निए वि नियकुसुमे । भणइ व मुणिमलिरणियच्छलेण एसो तुह पसाउ ॥ १३५ तिलओ वि वीयरागो व्व वीयरागप्पलोइओ जाओ । इत्थीकडक्खअनिरिक्खिओ वि जो पुप्फफलइल्लो ॥ १३६ चंपयतरू वि वायंदोलणनिवडंतकुसुमनिवहेण । साहाबाहाहिं पसारियाहिं अग्धं व से दिति ।। १३७ ।। छप्पयरवच्छलेणं, गायंतीए व मुणिं वणसिरीए । दरदीसंता दसणावल्लि व्व कुंदावली सहइ ॥ १३८ ॥ पाउसरिउं व जगजीवबंधवं सयलसंपयामूलं । तं मुणिनाहं दठूण पुप्फिया कुडयरुक्खा वि ॥ १३९ ॥ अम्ह वियासो सुइसंगमेण मुणिणो परो य नत्थि सुई । इय चिंतिउं व मल्ली उ फुल्लिया जस्स मेलावे ॥ १४० कामारिं पिव तं चावलोइऊणं भएण मयणो व्व । वायाहयबाणतरू वि मुयइ बाणावलिं सहसा ॥ १४१ ॥ तत्थुज्जाणे अन्नं च देव ! जे संति केइ तिरियगणा । अन्नोन्नबद्धवेरा वि ते वि जाया पसंतप्पा ॥ १४२ ॥ जओभक्खनिमित्तं चलिओ, सप्पो वइरेण उंदुरस्सुवरि । मुणिदंसणेण थक्को, अभओ इयरो वि कुणइ चुणिं ॥ १४३ आयवकिलंतगत्तं, पलोइऊणं अहिं तहा मोरो । निययकलावेण करेइ तस्स छायं अइदयालू ॥ १४४ ॥
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