Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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५. उत्तर पुराण (गुणभद) भाषा संस्कृत र. वि.सं. नवमी दसवी सदी ६. पुराणसार संग्रह ७. हरिवंश पुराण (भाषा संस्कृत क. जिनसेन रचना सं ७८४) ८. चन्द्रप्रभ चरितम्, कर्ता आचार्य वीरनन्दी । रचनाकाल ग्यारहवी सदी का पूर्वार्द्ध, भाषा संस्कृत (प्रकाशित) ९. चन्द्रप्रभ चरितं. कर्ता नं.ग. आ. चन्द्रप्रभ सूरि । रचना काल ई. तेरहवी सदी, भाषा प्राकृत, (अप्रकाशित) १०. चन्द्रप्रभ चरित, बृ.ग. आ. हरिभद्र सूरि, रचना सं. १२ वी सदी का मध्यभाग, भा. प्राकृत (अप्रकाशित) १०. चन्द्रप्रभ चरितम्, कर्ता धर्मचन्द्र के शिष्य श्री दामोदर कवि ११. चन्द्रप्रभ चरित्र, नागेन्द्रगच्छीय आ. देवसूरि, रचना समय सं. १२६४, भाषा संस्कृत तथा प्राकृत, (प्रकाशित) १२. चन्द्रप्रभ चरित्र, कर्ता आ. यशःकीर्ति, रचना समय १६०८ भाषा संस्कृत १३. चन्द्रप्रभ चरित, अज्ञात कर्तृक इस पर जिनेश्वरसूरि ने विषमपद वृत्ति की रचना की । रचना सं. ११ वी सदी १४. चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. शुभचन्द्र १५. चन्द्रप्रभ पुराण, कर्ता आगासदेव १५. चन्द्रप्रभ चरित, कर्ता जिनवर्धन सूरि (१४वी सदी) १६. त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र, कर्ता आ. हेमचन्द्रसूरि, भा. संस्कृत र. सं. १२ वी सदी (प्रकाशित) १७. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, भा. संस्कृत (कर्ता मेघविजय उपाध्याय, र. सं. १७०९,) १८. हिन्दी और गुजराती भाषा में भी चरित्र लिखे गये हैं ।
इस प्रकार श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के उद्भट विद्वान आचार्यों ने भ. चन्द्रप्रभ के चरित्र लिखकर साहित्य जगत की अपूर्व सेवा की है और भ. चन्द्रप्रभ के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त की है । उपरोक्त चन्द्रप्रभ चरित्रों में कुछ ने भ. चन्द्रप्रभ के तीन भवों का और कुछ ने सात भवों का वर्णन किया है । आचार्य वीरनन्दी आ. जसदेव सूरि तथा आ. हरिभद्रसूरि ने चन्द्रप्रभ के सात भवों का वर्णन किया है । आ. वीरनन्दी
आ. जसदेव एवं वृ.ग. हरिभद्र सूरि द्वारा रचित चन्द्रप्रभ चरित के वर्णन में बहुत साम्य द्रष्टि गोचर होता है । कारण तीनों कवि के मुख्य चरित नायक एक ही है । परम्परा और धारणा का एक ही स्त्रोत होने से इन में साम्य होना कोई आश्चर्य नहीं है । इन चरित ग्रन्थों में कथा नायकों के नाम नगरी, तिथि आदि के विषय में विषमता पाई जाती है । उपकथाएं भी अलग अलग है । फिर भी सभी के उद्देश एक ही है ।
श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य जसदेव सूरि एवं बृहद् गच्छीय ,आ. हरिभद्र सूरि द्वारा रचित चन्द्रप्रभ चरित में दी गई सोमा की कथा और कर्मपरिणति राजा की कथा के वर्णन में काफी समानता दष्टिगोचर होती
इस ग्रन्थ की एक ही प्रति मिली है अतः सम्पादन में क्षति रहता स्वाभाविक है । साथ ही प्रुफ में असावधानी के कारण भूले भी रह गई है । पाठकगण क्षमा करेंगे और भूल के लिए ध्यानाकर्षित करेंगे, ऐसी प्रार्थना
स्पेन्द्रकुमार पगारिया
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