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भगवान् महावीर
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हाथ में सारे समाज की सत्ता का भार दे दिया गया। लेकिन इसके साथ ही वे उस सत्ता में लिप्त न हो जांय-उसका दुरुपयोग न करने लग जांय-इसलिये यह नियम रखा गया कि वे अपने लिए कुछ भी सम्पति उपार्जन न कर सके। इसके अतिरिक्त वे जो कुछ भी सोचें, समाज में जो कुछ भी सुधार करना चाहें, राजा के द्वारा करवायें । वे ऐश्वर्या और विलास से हमेशा विरक्त रहें ! यह विधान उनके लिए रख कर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तीनों वर्ण उनके अधिकार में कर दिये गये। ___यही वर्णाश्रम-धर्म का उद्देश्य है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे पूर्वजों ने बहुत ही गहरे पेठ कर समाज की इस व्यवस्था-प्रणाली का आविष्कार किया। और जहाँ तक समाज के अन्दर ब्राह्माणों ने निःस्वार्थ भाव से तीनों वर्गों पर शासन किया, वहां तक यहां के समाज का दृश्य अत्यन्त सुन्दर रहा। पर दैव-दुर्वियोग से या यों कहिये कि मनुष्य-प्रकृति की कमजोरी से ब्राह्मणों के मस्तिष्क में भौतिक-स्वार्थ का कीड़ा घुसा । अध्यात्मिकता की जगह वे भी भौतिकता में रमण करने लगे। बस फिर क्या था, सत्ता तो उनके पास थी हो, वे मनमाने ढङ्ग से अपने नीचे वाले वर्षों पर अत्याचार करने लगे। फल स्वरूप समाज में भयंकर क्रान्ति मच गई। कुछ समय तक तो क्षत्रिय भी ब्राह्मणों के हाथ की कठ पुतली बने रहे, और उनके अत्याचारों में योग देते रहे, पर आगे जाकर वे भी इनसे घृणा करने लग. गये, ब्राह्मणों के अत्याचार और बढ़ने लगे। भगवान् महावीर
और बुद्धदेव के कुछ पूर्व ये अत्याचार बहुत बढ़ गये थे इनके कारण समाज में भयङ्कर त्राहि त्राहि मच गई थी, इन अत्याShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com