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भगवान् महावीर
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श्रेष्ठ बुद्धि का, उत्कृष्ट पौरुष का, पर्याप्त अर्थ का और यथेष्ट अवकाश का संयोग होना आवश्यक है । समाज में इन चार बातों में से एक के भी कम होने अथवा उनके साधारण कोटि के होने से सुप्रत्यर्थी गुणों की साम्यावस्था की धारणा नहीं हो सकती है । श्रेष्ठ बुद्धि का, उत्कट पौरुष का, पर्याप्त अर्थ का, और यथेष्ट अवकाश का संयोग करने के लिए पर्याप्त-संख्यक चार प्रकार के प्रवीण मनुष्य होने चाहिए । एक वे जो समाज में श्रेष्ठ बुद्धि को बनाए रक्खें, दूसरे वे जो समाज में उत्कट - पौरुष का योग-क्षेम किया करें, तीसरे वे जो समाज में अर्थ का पर्याप्त उपार्जन और वितरण किया करें और चौथे वे जो समाज की बड़ी बड़ी बातों पर विचार करने के लिए पूर्वोक्त तीनों वर्णो को यथेष्ट अवकाश प्रदान करें ।
उन्होंने इस विधान के अनुसार समाज के गुण कर्मानुसार चार विभाग कर दिये । एक एक विभाग को एक एक काम दिया गया । विद्या द्वारा समाज में श्रेष्ठ बुद्धि का, योग-क्षेम और समाज की स्वाभाविक स्वतन्त्रता की रक्षा करने वाला वर्ग ब्राह्मण वर्ग कहलाया । बल-वीर्य द्वारा समाज में पौरुष बनाए रखने वाला और समाज की शासनिक स्वतन्त्रा की रक्षा करनेवाला वर्ण क्षत्रिय वर्ण कहलाया, अर्थद्वारा समाज में श्री स्मृद्धि को बनाए रखने वाला और समाज की आर्थिक स्वतन्त्रता की रक्षा करने वाला वर्ण वैश्य वर्ण कहलाया । शारीरिक श्रम और सेवा द्वारा समाज की अवकाशिक स्वतन्त्रता की रक्षा करनेवाला वर्ण शूद्र वर्ण कहलाया ।
केवल इन कर्त्तव्यों को निश्चत कर के ही हमारे पूर्वज
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