________________
श्रीचन्द्र और प्रभाचन्द्र
(लेखक-श्री पं० नाथूराम प्रेमी)
ये दो ग्रंथकर्ता लगभग एक ही समयमें, एक अन्तही स्थानपर हुए हैं और दोनोंने ही महाकवि पुष्प- लाद (ड) बागड़ि (5) श्रोप्रवचनसेन (?) दन्तके महापुगणपर टिप्पण लिखे हैं, इस लिए कुछ पंडितात्पनचरितस्सको (तमाकर्ण्य ?) बलात्कार
गणश्रीश्रीनन्द्याचार्यसत्कविशिष्यण श्रीचन्द्रमुनिना विद्वानोंका यह खयाल हो गया है कि प्रभाचन्द्र
द्र श्रीमद्विक्रमादित्यसंवत्सरे सप्तामीत्यधिकवर्षसहश्र(ने) और श्रीचन्द्र एक ही हैं, लिपिकर्ताओंकी गल्तीसे श्रीमद्धागयां श्रीमतो राजे (ज्ये) भोजदेवस्य.." कहीं कहीं जो श्रीचंद्रकृत लिखा मिलता है, सो एवमिद (दं) पद्मचरितटिप्पितं श्रीचंद्रमुनिकृतवास्तवमें प्रभाचन्द्रकृत ही होना चाहिए। परन्तु समाप्तमिति । यह खयाल ही खयाल है, वास्तवमें श्रीचन्द्र और म्व० सेठ माणिकचन्द्रजीके चौपाटीके मन्दिरमें प्रभाचन्द्र दो स्वतंत्र प्रन्थकर्ता हैं। नीचे लिखे (न० १९७) इन्हीं श्रीचन्द्रमुनिका एक और ग्रन्थ प्रमाणों से यह बात सुम्पष्ट हो जायगी
'पुराणमार' है। उसका प्रारंभ और अंत इम प्रकार हैबम्बईके सरस्वती भवनमें (नं० ४६३ ) में प्रारंभ . रविषेणाचार्यकृत पद्मचरितका श्रीचन्द्रकृत टिप्पण। ___ नत्वादितः सकल (तीर्थ) कृत (तां) कृतार्थान है+ । उसका प्रारंभ और अन्तका अंश देखिए
सर्वोपकारनिरतांत्रिविधेन नित्यम् ।
वक्ष्यं तदीय . गुणगर्भमहापुराणं प्रारंभ
मंक्षेपतोऽथनिकरं शृणुत प्रयत्नात् ।। शंकरं वरदातारं जिनं नत्वा स्तुतं सुरैः।
अन्तकुर्वे पद्मचरितम्य टिप्पणं गुरुदेशनात् ॥ धागयां पुरि भोजदेवनृपते राज्यं जयात्युश्चकैः
मिद्धं जगत्प्रसिद्धं कृतकृत्यं वा समाप्तं निष्ठितमिति श्रीमत्सागरसनतो यतिपतेात्वा पुगणं महत् । यावत् । सम्पूर्णभव्यार्थसिद्धि (ः) कारणं समग्रो मुक्त्यर्थ भवभीतिभीतजगता श्रीनन्दिशिष्यो बुधः धर्मार्थकाममोक्षः स चासो भव्यार्थश्च भव्यप्रयोजनं कुर्वे चारु पुराणसाग्ममलं श्रीचंद्रनामा मुनिः ।। तस्य सिद्धिनिष्पत्तिः स्वरूपलब्धिर्वा. तस्याः कारणं हेतुः । किं विशिष्ट हेतुमुत्तमं दोषरहित...... + लाइबागड़ नामचा संघ काफी पुराना है ।
----.. - दुबकंडके जैनमन्दिरमें एक शिलालेख वि० सं० * देखो डा०पी०एल० वैद्य सम्पादित महापुराण ११४५ का है, जिसमें इस संघके तीन सेनान्त की अंगरेजी भूमिका।
श्राचार्यों का उल्लेख है। ___+ भवनके रजिस्टरमें इसका नाम, 'पद्मनन्दि- लाड या लाट गुजरातका प्राचीन नाम है और चरित्र' लिखा हुआ है। यह प्रति हालकी लिखाई बांमबाड़ाके आसपासके प्रदेशको अब भी बागड़ हुई और बहुत ही अशुद्ध है।
कहते हैं।