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बाबा मनकी आँखें खोल !
[लग्वक-श्री ' भगवन' जैन ]
पथ पर चला जा रहा था-अपनी धुनमें मस्त ! पता पालिसभी तो करानी है ! और पैसेके दो पान, एक महीं था कि मेरी कल्पनाओं के अतिरिक्त भी कोई दूसरा सिगरेट ...! क्रिजन यहां पैसा ठगानेसे फायदा ?' संसार है, जहां मैं चल रहा हूं।
__वह रोनी-सूरत बनाए लक्षचाई भाँखोंसे देख रहा थाबाबू ! एक पैसा ! भूखी-प्रात्माको मिल जाय", मेरी जेबकी मोर ! मुझे ठिठकते देख, उसने अपनी तफसील
सहसा होने वाले इस व्यापातने विचारोंके मार्गमें बाधा पेशकी-एक पैसेके चने खाकर पानी पी लूँगाबाजी!' हाली! मैं चौंककर खड़ा रह गया ! देखा-कृशकाय भिखारी, मेरा हाथ जेबमें पढ़ा हमाथा ! सोचने लगा-'दू या मलिन-दर्गन्धित चिथड़ोंसे अपने शरीरको छिपाए, हाथ नहीं क्या सचमच दो दिनका भूखा होगा? अरे, भगवान फैलाए, सामने खड़ा है ! उसका शरीर अनेकों प्रणों द्वारा
___ का नाम लो, कहीं दो दिन कोई भूखा रह सकता है ?छिन्न-भिन्न हो रहा है, गलाव पकड़ता जारहा है ! वह मक्खियों
कल ही बफ्तरमें ज़रा दो घन्टेकी देर होगई तो दम निकलने की वेदना, घावोंकी पीड़ा और दुधाकी भयंकरतासे मानों
लगा था ! सब दम्भ है, कोरा जाल ! यह तो इन लोगोंका नरक-दुःख उठा रहा है ! उफ् ! कितनी विकृत प्राकृति है
" पेशा है-पेशा! दिनमें भीख, रातको चोरी ! हमी लोग यह. मैं एक पके लिये देखताही रह गया ! उसके मुख तो उन्हें पैसा देकर चोर-उचक्के बनाते हैं, नहीं मजाब के पर जैसे करुणा खेल रही थी !
इतने भिखारी बढ़ते जाएँ! !....' दो दिन होगए-बाबू जी! क्या मजाल जो एक दानाभी 'चल, हट उधर!' महमें गया हो..!-उँगलियोंके घावसे मक्खियां हटाता
'अरे !' हुआ, वह बोला!
मैं जेबसे हाथ निकालता हुमा मागे बढ़ा! उसकी
प्राशा जैसे मेरे साथ-साथ ही पलदी ! मनमें पाया-एक पैसा इसे देना ही चाहिए ! बेचारा पारीब, अपाहिज मुसीबतमें है !'
घड़ी में देखा तो--पौने सात !' जेबमें हाथ डाला!
'प्रोफ्र ! बड़ी देर हुई ? लेकिन........?
लपककर बुकिंग-माफिसकी ओर गया! लेकिन विचारोंने फिर पलटा खाया-'अजी, कोदो न बाबू साहिब ! एक टिकिट दीजिएगा!'-और मैंने झगड़ेको ? यह तो दुनिया है ! लाखों हैं, ऐसे,-सुम किस- एक अठमी उनकी भोर सरकादी! किसको पैसे देते फिरोगे? .."एक पैसा! भजी, वाह! 'जनाब! माउ पाने वाला क्रास तो बिल्कुल भर गया। मुफ्तमें यहां दो जूता जो सुस्त होरहा है, पाखिर एक टिकिट भी अब नहीं दिया जा सकता ! अठारह पाने