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साहित्य-परिचय और समालोचना
मोक्ष शाख सचित्र और सटीक-मूल लेखक, जिनवल्लभादि प्राचार्योंके प्रामाणिक उद्धरणों के साथ इसकी प्राचार्य उमास्वाति । टीकाकार, पं० पनालाल जी जैन साहि- रचना की गई है। प्रस्तुत ग्रंथ ४१ द्वार या प्रकरण हैं जिनमें त्याचार्य सागर, । प्रकाशक, मूलचन्द किशनदाम कापडिया, श्रावक और साधुजीवन में प्रावश्कीय विधिक्रियानोंका संकलन नि० जैम पुस्तकालय, सूरन । पृष्ठसंख्या २२२ । मूल्य, बिना और प्रणयन किया है। जिन्दका बारह पानं ।
इस ग्रंथ सम्पादक विविधभाषाओंके पंडित और अनेक प्रस्तुन पुस्तक प्राचार्य उमास्वाति के तत्वार्थसूत्रकी ग्रंथोंके सम्पादक विद्वान श्री मुनि जिनविजयजी हैं। विद्वान टीका है, इसे मोक्षसास भी कहते हैं। टीकाकार 40 पना- सम्पादकने सम्पादकीय प्रस्तावनामें ग्रंथके प्रत्येक द्वारका लालजी माहिन्याचार्य दि. जैन समाजके उदीयमान लेखक संक्षिप्त परिचय भी करा दिया है और ग्रंथके नामकरण सम्ब
और कवि हैं। आपने बालकोपयोगी इस टीकाका निर्माण धमें भी प्रकाश डाला है। कर जैन समाजका बड़ा उपकार किया है 1 टीकामें विस्तृत
प्रस्तुतसंस्करणमें ग्रंथकर्ता जिनप्रभसूरिका संक्षिप्त जीवनविषय-सूची, पति-श्रतज्ञानादिके चार्ट, जन्बूद्वीपका नक्शा, चरित्र भी दिया हया है. जिसके लेखक हैं बाबू अगरचंद और षट द्वण्य और कालचक्रादिके चित्र, लासणिक पारिभाषिक भंवरलालजी नाहटा बीकानेर। जीवन-चरित्रमें संकलन करने शब्दोंका अनुक्रम और परीक्षोपयोगी प्रश्नपत्रोंको भी योग्य सभी आवश्यक वातोंका संग्रह किया गया है जिसस माथमें लगा दिया गया है, जिसमे पुस्तककी उपयोगता बढ ग्रंथकर्ताक जीवनका अच्छा परिचय मिल जाना है। इम गई है। इतना होने पर भी प्रस-सम्बन्धी कुछ अशुद्धियां तरह यह संस्करण बहत ही उपयोगी और संग्रहणीय हो जरूर खटकती हैं। फिर भी पुस्तक उपादेय और छात्रोपयोगी गया है। इस कार्य में भागलेने वाले सभी सजन धन्यवादके है। इस दिशा में प्रकाशक और टीकाकार दोनों ही का प्रयान पात्र हैं। इतने बड़े ग्रंथकी ५०० प्रतियां वितीर्ण की गई हैं। प्रशंसनीय है।
(३) श्री जैनसिद्धान्त बोलसंग्रह-प्रथमभाग, द्वितीय (२) विधिमार्ग-प्रपा-(सुविहित सामाचारी)-मूल भाग-संग्रहकर्ता श्री भैरोदानजी मेठिया बीकानेर । प्रकाशक, लवक, श्रीजिनप्रभसूरि स्वो० वृत्ति सहित । पम्पादक, मुनि मेरिया पारमार्थिक संस्था, बीकानेर पृष्टसंख्या, प्रथमभाग श्रीजिनविजयजी । प्रकाशक, जोहरी मूलचन्द हीराचन्दजी ११२ द्वितीयभाग ४७५ । मूख्य सजिल्द दोनों भागोंका भगत, महावीर स्वामी मंदिर पायधुनी बम्बई । प्राप्तिस्थान, क्रमशः 1) 1॥) रुपया। जिनदत्तसरि ज्ञानभण्डार, ठिमोमवाल मोहल्ला, गोपीपुरा इस ग्रंथमें भागमादि ग्रंथों परसे सुन्दर वाक्योंका संग्रह सूरत (२० गुजरात)। पृष्ठ संख्या, १६८ कागज छपाई-सफाई हिन्दी भाषामें दिया हया है। दोनों भागोंके बोलोंगेट अप चित्ताकर्षक, पक्की चिल्द ।
वाक्योंका संग्रह ५६८ है। ये बोल संग्रह श्वेताम्बर साहित्य इस ग्रंथका विषय नामसे ही स्पष्ट है। जिनप्रभसूरिने के अभ्यासियोंको तथा विद्यार्थियोंके लिये बड़े कामकी चीज इस ग्रंथमे गृहस्थ और मुनि के द्वारा भाचरण करने योग्य हैं। ग्रंथ उपयोगी और संग्रह करने योग्य है । सेठिया भैरों उन विधि-विधानोंका पुरातन ग्रंथोंके उद्धरणादिके साथ शनजी बीकानेरने अपनी लगभग पांचलागवकी स्थावर सम्पत्ति मप्रमाण वर्णन दिया है, जो प्रधानतया श्वेताम्बरीय खरतर का दृष्ट, बालपाठशाला, विद्यालय, नाइटकालेज, कन्यागच्छीय प्राचायोंके द्वारा स्वीकृत और सम्मत है। यह ग्रंथ पाठशाला, ग्रंथालय और मुद्रणालय, इन बह संस्थाओं के विधिमार्गके जिज्ञासुमोंकी जिज्ञासारूप प्यामकी तृप्तिके लिये नाम कर दिया है, उसी फंडसे प्रस्तुत दोनों भामोंका प्रकाशन प्याऊके समान है। ग्रंथकी प्रामाणिकताके विषय में प्रथकारने हुना। भापकी या उदारवृत्ति और लोकोपयोगी कामों में स्वयं यह बतलाया है किया ग्रंथ अपनी बुद्धिसे करिपत दानकी पामरुचि सराहनीय तथा अन्य पनिक श्रीमानोंके कर नहीं बनाया गया है परन्तु इसमें प्राचार्य मानदेव और लिये अनुकरणीय है। -परमानन्द जैन शास्त्री