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किरण ११-१२]
इस वंशकी विशेष प्रसिद्धि १३ वीं १४ वीं शताब्दीमें दुई और बादको इसका प्रभाव की होने लगा। इस वंश के लोग अपने मूल निवास स्थानसे हट कर कई प्रान्तों जाकर निवास करने लगे, अतः जहां जहां गये, वहां वहाँक प्रसिद्ध वंशों एवं धर्मोका इन पर प्रभाव पड़ा। फिर भी इस वंशकी १५ व १६ वी शताब्दी तक अच्छी प्रसिद्धि रही है। फक्षतः ८४ ज्ञातिके नामों की सूनीमें इस वंशको भी स्वतंत्र रूपसे स्थान प्राप्त है
धर्कवंश के प्रत्यकार
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धर्कट वंश अनुयायियों में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के तीन व्यक्ति धर्कट वंश प्रसिद्ध प्रत्यकार होगये है, जिनका परिचय इस प्रकार है-
१ धनपाल धर्कट धिक वंशके मायेश्वर इनके पिता
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+ इन दो शताब्दियोंकी ही धर्कट वंश प्रशस्तियों एवं शिक्षालेख अम्य शादियोंकी अपेक्षा अधिक प्राप्त है। सं० १२६७ में रचित जिमपालोपाध्यायकृत चर्चरी वृतिमै जति उल्लेख में श्रीमान एवं धर्कटका उल्लेख किया है यथा-" जाति धर्कट श्रीमानिया" ।
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*म० १४०८ रचित पृथ्वीचन्द्रपति (माणिक्यसुंदरसूरिकृत) सं०] १२०० से पूर्व लि० महमद बेगडे वर्णन में (श्री० श० बणिक भेद पृ० २३४), सं० १२६८ का विमलप्रबन्ध, सं० १५०८ का विमचरित्र
लेख-संवाद
सं० ११४३२०० ३०
सं० १२४५ ० ० ५ गु०
सं० १२६५ का० ब० ७ गु०
धर्कवंश
वंशनाम
कर्कट (धर्कट ?)
धर्कट
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एवं धनश्री इनकी माताका नाम था । इन्होंने अपभ्रंश भाषामें 'भविसयत कहा' नामक सुन्दर कथाग्रन्थ बनाया । कविने यद्यपि प्रशस्ति में अपने संप्रदाय पर्व समयका उल्लेख नहीं किया है पर हर्मन जैकोबी चादिने इनका संप्रदाय दिगम्बर एवं समय ११ वीं शताब्दी निश्चित किया है। २ चंद्रकेताका नाम पद्मचंद्र और पितामहका नाम धनदेव था। इनका रचित ग्रन्थ 'मुद्रित कुमचंद्र' सं० १९८१ में रचित है।
३ हरिषेण ये धक्कड वंशीय गोवद्ध म ཁྱ་ और सिद्धसेनके शिष्य थे, चित्तौड (मेवाड) के रहने वाले थे परन्तु कार्यवश अचलपुर जबसे थे, जहां पर उन्होंने वि० सं० १०४४ में 'धम्मपरिक्खा' नामका ग्रन्थ अपभ्रं शमें बनाया (देखो, 'अनेकान्स' सितम्बर १६७१ की किया और जैन विद्या अक्तूबर १६४१ का अंक) । धर्कट वंशके आचार्य
सं० ११६३ में चंद्रगच्छ (सरवाल गच्छ) के बीरगणने अपना परिचय इस प्रकार दिया है-'रेश पटपड़कपुर वंशवर्धमानकी पत्नी श्रीमती के पुत्र वसंतने दीक्षा ग्रहण की, जिनका नाम समुद्रघोषा वीरगणि है ।
(जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ० ३३७)
धर्कवंशके प्रतिमालेख
गोत्र- नाम
देवास्तव्य
सभगोष
उमभगोष
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६११
संभलना
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खेल- प्रकाशन-स्थान
शांतिविम्व
पार्श्वविम्ब
प्रा० जे० नं० [सं० मं० ३७६ आबू० जे० जे० सं० नं० ५५ रंगमंडप जीर्णोद्वार म००००
प्र० ० ० ० ४०३
स्तंभ
ना० जे० ० सं० ८६३३७ प्रा० जे० ० सं० ४०४
मा० ८६८ प्रा० ४००