Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 658
________________ तामिल-भाषाका जैनसाहित्य [मूल लेखक--प्रो. ए. चक्रवर्ती M. A. 1., E.S.] [अनुवादक-पं० सुमेरचंद जैन 'दिवाकर' न्यायतीर्थ, शास्त्री, B.A.LL. B.] (गत किरणसे आगे) एक और तामिल भापाका काव्य प्रन्थ है, जिस मुख्य छह अध्याय हैं-नजैककाण्डम् , लावाणक 'में उदयनकी कथा लिखी गई है। यह प्रायः काण्डम,मघदककाण्डम् वरावकाण्डम्, नरवाणकाण्डम्, लघु काव्योंमसे नहीं है। प्रतिपाद्य विषयकं विस्तार थुरवुकाण्डम्, ये सब उदयनकी महत्त्वपूर्ण जीवनीसे एवं प्रन्थमें प्रयुक्त हुए छंदको देखकर यह कहना मम्बन्ध रखते हैं। पड़ता है कि यह एक म्वतंत्र कृति है, जिसका परंपग उदयन कौशाम्बीके कुरुवंशी शामक शांतिकका में प्राप्त हुई सूचियोममे किमीमें भी समावेश नहीं पुत्र था। शांतिककी रानीका नाम था मृगावती । हुआ है। डा० म्वामीनाथ ऐयरके कारण, जिनका हम गर्भकी उन्नतावस्थामें, वह अपने महलकी ऊपरली उल्लेग्य कर चुके हैं और जो तामिन साहित्य के लिये मंजिलपर दासियोंके साथ क्रीड़ा कर रही अथक परिश्रम करते हैं, यह रचना तामिल पाठकों थी। वहाँ उसने स्वयं अपनेको अपनी दासियोंको के लिये सुलभ होगई है । इसका 'पेनकथै' यह और क्रीडास्थलको प्रचुर रक्तपुष्पों तथा लाल रेशमी नामकरण प्रायः गुणाव्यरचित बृहत कथाके अनुरूप वस्रांस सुसज्जित किया था। क्रीड़ाके अनन्तर वह किया गया है, जोकि पैशाची नामकी प्राकृत भाषामें गनी पलंगपर सो गई । हिंदूपुगण-वर्णित सबम लिखी गई है। बलशाली पक्षों शग्भ वहां बिग्बरे हुये लाल पुष्पोंक इसका रचयिता कोंगुदेशका नरेश कोंगुवंल कहा कारण उस प्रदेशको गलनीसे कच्चे मांमसे पाच्छाजाता है। वह कोयमबटूर जिले के विजयम नगर दित समझकर उस पलंगको सांती हुई मृगावती नामक स्थल पर रहता था, जहाँ पहले बहुतस जैनी सहित विपुला चल ले उड़ा। जब मृगावती जागी तब रहा करते थे । नामिल माहित्यमें व्याकरण नथा वह अपने आपको विचित्र वातावरणमें देखकर मुहावरके प्रयोगोंको उदाहन करने के लिए इम ग्रंथकं .आश्चर्यचकित हुई। जो पक्षी मृगावती को वहां ले अवतरणोंको अनेक विख्यात सामिल टीकाकागने गया था उस जब यह मालूम हुमा कि वह तो एक उद्धृत किया है। दुर्भाग्यम जो पुस्तक छपी है वह जीवित प्राणी है, न कि मांसका पिंड, तब वह सं अपूर्ण है। अनेक प्रयत्न करनपर भी सम्पादकको वहां छारकर चला गया। उसी समय उसने एक पत्र पुस्तककं आदि तथा अंतकं त्रुटित अंश नहीं मिल का जन्म दिया जो भागे 'उदयन' कहा जायगा। उमे सके । अनिश्चित काल नक प्रतीक्षा करते रहनकी यह देखकर अानंद और पाश्चर्य हुआ कि यहां अपेक्षा यह अच्छा हुआ कि प्रन्थ अपूर्णरूपमें ही उसके पिना चेटक नियमान हैं, जोगभ्यका परित्याग प्रकाशित कर दिया गया। गुणान्यकी बहत् कथासे, कर देने के बाद बहाँ जैन योगीके रूपमें अपना समय जिसमें कि किनना ही दूसरी कथाएँ हैं, तामिल व्यतीत कर रहे थे । जब उनका बच्चे गनेकी पैनकथैक रचयिताने केवल उदयन गजाकं जीवन आवाज सुनाई दी, तब वहां पहुंचे और अपनी मन्बन्धी अंशों को ही प्रहण किया है । इस कथामें पुत्री मृगावतीको देन्या । चूकि बच्चे की उत्पत्ति

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