Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 661
________________ अध्याय प्रारंभ होता है। इसमें सदयनके द्वारा अपने दंडित करे। श्वसुर मगमनरेशकी सहायतासे अपने वत्सदेशकी इस उत्तेजनाको अवस्थामें कौशलके नरेशका पुनः विजयका वर्णन है। वहाँ अपने वृद्ध प्रजाजनों एक पत्र वासवदत्ताके पास पाता है । इस पत्रम के द्वारा उसका स्वागत किया जाता है, क्योंकि उन कोशलाधीश अपनी बहिनकी कथा लिखते हैं, जो लोगोंको पांचालनरेशके अत्याचारोंका कटु अनुभव पाँचाल नरेशके द्वारा कैदीके रूपमे ले जाई गई थी हो चुका था । इस प्रकार अपने प्रजाजनोंका विश्वास जिस उदयन महाराजने उसके अनुचरोंके साथ मुक्त लाभ करकं वह अपने राज्य वत्मदेशमें अपनी महा- कर दिया था, जब उदयन महाराजने पांचालाधीश रानी पद्यावती साथ सखपर्वक निवास करने को हराकर उम देशपर पुनः विजय प्राप्त की थी । लगता है। एक दिन वह वासवदत्ता गनीसे मिलने उस पत्रमे यह भी बताया गया था, कि किम तरह का स्वप्न देखता है। इस स्वप्नसं पिछली गनी वह माननिका नामसं वासवदत्ताकी दामी बनाई गई वासवदत्ताके प्रति उमका अनुगग जाग उठता है। थी। यह भी प्रार्थना की गई थी कि कौशलकी राजइतनेमें उसका मित्र यूगी, जो मसकी आपत्तियोंमें कुमारीक साथ उसकी प्रतिष्ठाके अनुरूप कृपा तथा महायतार्थ सदा पाया जाया करता था, गजगृहक लिहाज करते हुए व्यवहार किया जाय । जब वासवद्वारपर उदयनकी पहली रानी वासवदत्ताके साथ __ दत्ता इम पत्रको पढ़ती है, तब वह माननिकास दिखाई पड़ता है। उदयन अपनी गनीको देखकर अपनी कृतिकं प्रति क्षमा-याचना करती है और उम मानंदित होता है, जिसे उसने मत समय लिया राजकुमारीके योग्य पद तथा प्रतिष्ठाको प्रदान करती था, वह पद्मावतीकी सम्मतिसं उसे अपने महलमें ले हे। अन्तम.स्वयं वासवदत्ता उदयनके साथ, उमक जाता है और अपनी दो रानियों के साथ राजगहमें विवाहकी तजवीज करती है, जो कोशलकुमारीपर मानंद-पूर्वक जीवन व्यतीत करता है। आसक्त पाया गया था। ART Imama पाँचव अध्यायम उदयनके एक पत्र एवं उत्तगदोनों रानियों के साथ अपना जीवन सम्बपर्वक बिना धिकारीक जम्मका वर्णन है। कुछ समयके बाद रहा था, तब उमकी मेंट अपनी गनियोंकी सखी वामवदत्ताक नरवाणदत्त नामका एक पुत्र उत्पन्न माननिकास होगई और वह उस अपरिचितपर हुआ। उसक जन्मक पहले ही ज्योतिषियोंन उसकी महत्ताका वर्णन कर दिया था और कहा था कि वह स्थालमें मिलने का निश्चय किया । इसका पता विद्याधगेक राज्यका स्वामी होगा, भले ही उसका वासवदत्ताको लग गया और उसने उस माननिकाको जन्म साधारण क्षत्रिय वंशम हो। काल पाकर उसे केदमें कर लिया और माननिकाकी पोशाक पहनकर पिनाम कौशाम्बी और वत्माज्य मिला और उसके वह उदयनसे मिलने की प्रतीक्षा करने लगी । वेष- नानास उम विद्याधर्टीका राज्य उज्जैन मिला । यथाधारिणी वायवदसा युदयनम नीरसतापूर्ण व्यवहार वसर उसका पिता उदयन गज्यका त्याग करता है करती है, यद्यपि उदयन उसे अपनी स्नेहपात्र मान और साधु बनकर अपना समय योग तथा ध्यानम निका समझकर उमं मनानेके लिए अनेक प्रार्थना व्यतीन करता है। उदयनके इस त्यागका वर्णन इम करता है । इसके बाद वह अपना अमली रूप प्रगट तामिलग्रंथ पेरुनकथेक छठे और अंतिम अध्यायमें करती है, जिससे उदयनको संताप होता है और वह किया गया है। प्रभात समय महलकी भार भाग जाता है। प्रभातमें (क्रमशः) वासवदशा माननिकाको इसलिए बुलानी है कि वह उसे राजाको प्राप्त करनेकी आकांक्षाके उपलक्षम

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