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अनेकान्त
[वर्षे
२ आवश्यक निवेदन--
कारण ही पृष्ठसंख्यामें अधिक वृद्धि नहीं हो मकी और न 'अनेकान्त' के चौथ वर्ष का प्रारम्भ करते हुए मैंन
किरीनये उपहार ग्रंथकी योजना दी बन मकी है। पिछले उसके प्रेमी पाठकोंसे यह निवेदन किया था कि 'जो सज्जन
वर्ष रा०ब० मेट हीरालालजी, इन्दौग्ने अपनी तरफसे १५० अनेकान्तकी ठोस सेवाश्रम कुछ परिचित है-यह समझते
जैनेतर संस्थाश्रो-यूनिमिटियो, कालेजो हाई स्कूलों और हैं कि उसके द्वारा क्या कुछ सेवा कार्य हो रहा है-दो
पबलिक लायबेरियोको अनेकान्त फ्री भिजवाया था इस वर्ष सकता है और साथ ही यह चाहते हैं कि यह पत्र अाधक
वेसी सहायता प्राम न होने से उन्हें भी अनेकान्त नहीं ऊँचा उठे. घाटेकी चिन्तासे मुक्त रहकर स्वावलम्बी बने. भिजवाया जा सका , श्रार
भिजवाया जा सका है, ओर इसमे कितने ही विद्याकेन्द्रों में हमके द्वारा इतिहाम तथा माहित्यके कायोको प्रोत्तेजन अनेकान्त-साहित्यका प्रचार रुका रहा। मिले-अनेक विद्वान उन कार्योंके करने में प्रवृत्त हो- ऐमी हालत में अनेकान्तके प्रेमी पाठकोसे मेरा पुन: नई नई खोजें और नया नया माहित्य सामने आए, प्राचीन मानुरोध निवेदन है कि वे अब अनेकान्तको मब मार्गाने साहित्यका उद्धार हो, मच्चे इतिहासका निर्माण हो, धार्मिक पूरी महायता पान करानेका पूरा प्रयत्न करें, जिससे यह सिद्धान्तोकी गुत्थियाँ सुलझं, समाजकी उन्नतिका मार्ग पत्र कागज अादिकी इम भारी महँगके जमाने में अपनी प्रशस्तरूप धारण कर; और इस प्रकार यह पत्र जैनममाज प्रतिष्ठाको कायम रखता हुश्रा समाजसेवा-कार्यमें भले प्रकार का एक श्रादर्श पत्र बने, समाज इसपर उचित गर्व कर अग्रमर हो सके, और इसके सम्पादनादिमें समय तथा शक्ति मके और समाज के लिये यह गौरवकी तथा दुमरोके लिये का जो भार्ग व्यय किया जाता है वह मफल हो सके। एमके स्पृहाकी वस्तु बने, तो इसके लिये उन्हें इस पत्रके महयोगमें लिये प्रत्येक ग्राहकको दृढ संकल्प करके दो दो नये ग्राहक अपनी शक्तिको केन्द्रिन करना चाहिये। माय ही इमके जरूर बना देने चाहिय तथा विवादादि दान अवमरोगर लिये यथेष्ट पुरुषार्थ की श्रावश्यकता तथा पुरुषार्थकी शक्ति 'अनेकान्न' को अधिकसे अधिक महायता भिजवाने का को बतलाते हए यह प्रेरणा की थी कि वे पषार्थ करके पृग स्वयाल रखना चाहिये और ऐमी कोशिश भी करनी इम पत्रको ममाजका अधिकसे अधिक सहयोग प्राम कगएँ चाहिये जिसमे पांचवें वर्ष में अनेकानके पाटकोको कुछ और इसके संचालकों के हाथोंको मजबूत बनाएं, जिसमे वे उपहार-ग्रन्योक दिये जाने की योजना हो मके। इसके सिवाय अभिमतरूपमे हम पत्रको ऊँचा उठाने तथा लोकप्रिय कुछ उदार महानुभावोका यह भी कर्तव्य है कि वे हम बनाने में समर्थ हो मके। और अनेकान्तकी महायताके चार वर्षकी अनेकान्तकी फाइलें अपनी श्रोरसे यूनिवर्सिटयों, मार्ग सुझाए थे, जो बादको भी अनेक किरणों में प्रकट होते कालिजों, हाईस्कूलों नथा पर्चालक लायरियोंको भिजवाएँ, रहे है। इसमें मन्देह नहीं कि समाजने मेरे इस निवेदनपर जिसमे अनेकान्त में जो गवेषणापूर्ण महत्वका ठोस साहित्य कुछ ध्यान जरूर दिया है, परन्तु जितना चाहिये उतना निकल रहा है वह अजैनोंके भी परिचयमें श्राए और ध्यान अभी तक नहीं दिया गया। इमीमे प्रथम-मार्गद्वारा अच्छा वातावरण पैदा करे। ऐसी १०. फाइलें इस काम सहायताके कुल १३५३) रु. के वचन मिले हैं, जिनमेंसे लिये रिकर्व हैं। श्राशा है कोई महानुभाव उन्हें योग्य १.४०रु. की अभी तक प्राप्ति हो: द्वितीय मार्गमे क्षेत्रोमें वितरण करके क्षरूर पुण्य तथा यशके भागी बनेंगे। १.m) की और तृतीय मार्गसे १२० रु. की ही सहायना याद अनेकान्तके प्रेमियोंने अपना कर्तव्य पूग किया तो प्राप्त हुई। इसमें द्वितीयादि मार्गासे प्राप्त होने वाली यह पत्र अगले साल अपने पाठकोंकी और भी अधिक सेवा सहायता तो बहुत ही नगण्य है। सहायताकी इम कमीक कर मकेगा।