Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 675
________________ भनेकान्त [वर्ष हिन्दी इत्स्वयंमस्तोत्र-लेखक दीपचंद पारड्या। और इस तरह मूलके भावको भले प्रकार स्पष्ट करनेकी प्रकाशक मात्प्रवचन साहित्यमंदिर केकड़ी (अजमेर)। चेष्टा की जाती, अथवा स्वच्छंदतासे काम न लेकर मूलकी पृष्ठसंख्या, ४. मूल्य, तीन पाने। सिरिटके अनुसार ही उसे सूत्ररूपमें लानेका प्रयल किया प्रस्तुत पुस्तक प्राचार्य समन्तभद्रके सुप्रसिद्ध वृहत्स्वयम- जाता, जिससे वह संस्कृतकी तरह हिन्दीका सूत्रपाठ हो स्तोत्रका हिन्दी पद्यानुवाद । पद्यानुवाद अनेक छन्दों जाता। वास्तवमें समन्तभद्रकी मूलकृति बहुत गूढ़ तथा मैं किया गया है। अनुवादके विषय में स्वयं अनुवादकने गंभीर अर्थको लिये हुए है और उमका मर्म एक पद्यका भूमिकामें यह सूचित किया है कि-"इस पद्यानु- एक पद्यमें ही अनुवाद करनेसे खुल नहीं सकता । फिर भी वादको सुव्य बनानेकी ओर मेरा स्वास प्रयत्न रहा यह अनुवाद . शीतलप्रसादजीके पद्यानुवादसे बहुत है, अतएव स्वच्छंदतासे काफी काम लिया गया है। फिर अच्छा हुआ है और इसमें अनुवादगत कठिन शब्दोंका भी मूलग्रंथके भावकी उपेक्षा नहीं की गई है।" और यह टिप्पणियों द्वारा अर्थ भी देदिया गया है, जिससे मूलके भाव अनुवादपरसे ठीक जान पड़ता है। परंतु इतना होने पर भी को समझने में कुछ सरलता हो सके। पारड्याजीका यह सब अनुबादमें क्लिष्टता-कठिनता प्रागईहै और भ्याविषक प्रयत्न प्रशंसनीय है और मूल स्तोत्रके प्रति उनकी भक्तिका कुछ स्तुनियाँ दुरूह बन गई है, जिसे अनुवादकजीको परिचायक है। इसके साथमें संस्कृतका मूलपाठ भी यदि अपनी भूमिकामें स्वीकार करना पड़ा है। इसका प्रधान देदिया जाता तो अच्छा होता, जिसे कुछ अज्ञात कारणोके कारण एक एक पद्यका एक एक ही पद्यमें अनुवाद वश श्राप नहीं देमके हैं। पुस्तक उपयोगी तथा संग्रहणीय करने का मोह जान पड़ता है। अच्छा होता यदि है और उसकी छपाई सफाई भी सुन्दर हुई है। एक एक पद्यका अनुवाद कई पद्योंमें किया जाना -परमानंद जैन शास्त्री बिलम्बका कारण प्रेस कर्मचारियों की बीमारी भावि कुछ कारणों के वश अबकी बार 'अनेकान्त' की इम किरण के प्रकाशन में पाशातीत विलम्ब हो गया है, जिसका हमें खेद है ! पाठकोंको प्रतीक्षाजन्य जो कष्ट उठाना पड़ा है उसके लिए हम उनसे क्षमाप्रार्थी हैं। इस विलम्बके कारण ही यह किरण संयुक्तरूपमें निकाली जा रही है परन्तु इससे पाठक अपनेको कुछ अलाभमें न सममें, क्योंकि ६ फार्म (४८ पे४) प्रति किरणका संकल्प करके भी 'अनेकान्त' उन्हें इस वर्ष ५६ पेज अधिक दे रहा है। फिर भी आगे इसका खयाल रक्ला जावेगा और 'अनेकान्त' को ठीक समयपर पहुँचानेका भरसक प्रयत्न किया जायेगा।

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