Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 668
________________ वरांगचरित दिगम्बर है या श्वेताम्बर ? (संखक-५० परमानन्द जैन शास्त्री) वगंगचरित एक प्राचीन संस्कृत काव्य है, जो मरण या गन्धकुटी में विराजमान रहते हैं। भागे जो माणिकचन्द दि० जैन प्रन्थमाला बम्बई में प्रका- म्वर्ग भी बारह ही बतलाए हैं, जबकि दिगम्बा शित हुआ है। इस प्रन्थका सम्पादन डा०२० एन० ममुदाय (मम्प्रदाय) में १६ म्वर्ग माने गये हैं। उपाध्याय एम० ए० डी० लिट० कोल्हापुरद्वाग हुआ -जैनदर्शन, वर्ष ४ अंक ६, पृष्ट २४६ का फुटनोट है, जिन्होंने अपनी महत्वपूर्ण प्रस्तावनामें ग्रन्थ और इसके अलावा वगंगचरित्र, अध्याय १ में १६ उसक कतृत्वादि विषयपर अच्छा प्रकाश डाला है (१५) वां श्लोक है कि और उपलब्ध प्रमाणांक आधारपर प्रथक को मृत-चालनी'-महिष-हंस-शुक-स्वभावा, जटिल, जट.चाये थवा जटामिहनन्दीको ईमाकी माओर-का-मशका-Sज-जलुक माम्याः । ७ वीं शताब्दीका विद्वान सचिन किया है। यह प्रन्थ सरिछद्रकुम्भ-पशु-सर्प-शिलोपमानादिगम्बर मम्प्रदायका प्रसिद्ध है, कितने ही दिगम्बर स्तश्रावका भुवि चतुर्दशधा भवन्ति॥१५॥ प्रथकागेन गौरवकं माथ इसका उल्लम्ब भी किया है। नदीसूत्रम श्रोताओं (श्रावकों) के लक्षण स्पष्ट परन्तु श्वेताम्बर मुनि दर्शनविजयजी, जो कुछ अमें करने के लिये 'मेलघण' इत्यादि दृष्टान्त दिये हैं। में इस धुनम लगे हुए हैं कि उत्तमोत्तम दिगम्बर प्रत्युत श्लोक ठीक उमीका ही संस्कृत अनुवाद है। प्रन्याका या नां श्वेताम्बर माहित्यकी नकल बतलाकर इससे भी प्राचार्य जटिल श्वेताम्बर मिद्ध होते हैं।" अपने उद्विग्न चित्तको शान्त किया जाय और या मनिजीकी इस विचित्र नकणापरम प्रस्तुत वगंग जैस भी बन उन्हें श्वेताम्बर घोषित कर दिया जाय, चरितको श्वेताम्बर प्रन्थ सिद्ध करने के लिये जा अपने हाल के एक लेग्वम जा 'महापुगणका उद्गम' युक्तियां फलित हाती हैं व इस प्रकार :नामसं 'श्री जैन मत्यप्रकाश' मामिक के छठे वर्षकं (१) चूँकि दिगम्बर पंडित जिनदामने दो बातों अंक ८-९ में मुद्रित हाहै, यह घोषित करने बाद को लेकर इस प्रन्थ पर संदेहात्मक यह प्रश्न उठाया कि "वगंगचरित श्वेताम्बर ग्रंथ है और वह स है कि इसके का जटिल कवि श्वेताम्बर थे या ममयका श्रेष्ठ संस्कृत प्रन्थ है, और साथ ही इम ग्रंथ दिगम्बर ? अनः यह श्वेताम्बर प्रन्थ है। की महत्ता विषयक उन प्रमागां को उद्धृन करनेके (२) हम प्रथम वरदत्त केवलीन पत्थरके पाटिय बाद जिन्हें ए० एन० उपाध्यायने अपनी प्रस्तावनामें पर बैठकर धर्मोपदेश दिया ऐसा विधान है, जो दिया है, लिखते हैं दिगम्बर मान्यता विरुद्ध है, इमलियं भी यह "इस वगंगचरितको देखकर शोलापुर के पं० श्वेताम्बर प्रन्थ है। जिनदासने प्रश्न उठाया है कि (३) चूकि इस प्रथम बारह स्वर्गों का उल्लेख है जटिल कवि श्वेताम्बर थे या दिगम्बर वगंग- जादिगम्यगका १५ चरितमं हम देखते है कि वरदत्त गणधर एक पत्थर श्वताम्बर्गय मान्यताके अनुकूल है, इससे भी यह पाटियपर बैठकर धर्मोग्दश करते हैं। यह दिगम्बर बरागचरित्रम 'सारिणी' पाठ दिया है। नहीं मालूम सिद्धाम्न विरुद्ध है। उनके मनानुमार केवली समव मुनिजीने उसे यहाँ बदलकर क्यों रखा?

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