Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 649
________________ अनेकान्त नम्बर प्रन्थ-नाम -- प्रन्थकार-नाम भाषा पत्रसंख्या - - - पं. प्राशाधर २३० सामुद्रिकसपण । संस्कृत २० २३१ सिद्धबापूजाविधान २३२ सिबपरमेष्ठिस्वरूप संस्कृत २३३ सिद्धभकि 'बदमान मुनि संस्कृत, प्राकृत २३४ सिखस्तोत्र संस्कृत २३५ सिद्धार्चनाविधि संस्कृत २३६ सिंहप्रयोपगमन केशवरण संस्कृत २३७ । सुग्रीवमतशकुन कन्नड २३८ सूक्तिमुक्तावलि (कन्नड टी.) । मू.सोमप्रभदेव, टी.x संस्कृत, टी० कन्नड २३९ स्याद्वादमतसिद्धान्त चन्दव्योपाध्याय कन्नड २४० स्वरूपसम्बोधन संस्कृत २४१ होसदचरित्र कन्नड वीरसंवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) ता०२७-१२-४१ परके हित बरबस हो मरता , फिर भी नहीं पेट हा! भग्ता; पराधीनका जीवन कैसा? झींक-फीक रो-धोकर निष्फलजीवनके दिन पूरे करता ! इच्छाओंका दमन ! करे क्या ? पास नहीं होता जब पैसा !! पराधीनका जीवन कैसा मानव है, पर मान नहीं है। कर्मयोग - निष्काम नही है। चैन मिले, उसको इस जगमे, ऐसा कहीं विधान नहीं है !! कर्मतंत्र हो विधि-ललाट परलेख लिखाकर आया ऐसा !! पराधीनका जीवन कैसा ? श्रमजीवी, सुखका अधिकारी ! वचित है, कितनी लाचारी !! मरना भला, कहीं जीनेसेकॅगला-सा जीवन-संसारी ! बाधाएँ, पीड़ाएँ जिसको-, श्री काशीराम शर्मा 'प्रफुलित' देती रहती दुःख - संदेशा !! पराधीनका जीवन कैसा ?

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