Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 573
________________ अनेकान्त [वर्ष निबन्धमें प्रकृत विषयका कितना अधिक ऊहापोहके है, इसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं। प्राशा है शास्त्री साथ विचार किया गया है, प्रचलित वीरनिर्वाण- जीको अपनी भूल मालूम पड़ेगी और वे भविष्यमें संवत्पर होनेवाली दूसरे विद्वानोंकी आपत्तियोंका इस प्रकार के निमूल आक्षेपोंस बाज़ पाएँगे। कहाँ तक निरसनकर गुत्थियोंको सुलझाया गया है, अब मैं लेखके मूल विषयका लता हूँ और उस और साहित्यकी कुछ पुरानी गड़बड़, अर्थ समझनकी पर इस समय सरसरी तौरपर अपना कुछ विचार गलती अथवा कालगणनाकी कुछ भूलोंका कितना व्यक्त करता हूँ। आवश्यकता होनेपर विशेष विचार स्पष्ट करके बतलाया गया है, ये सब बातें उन पाठकों फिर किसी समय किया जायगा। से छिपी नहीं है जिन्होंने इस निबन्धका गोरके साथ शास्त्रीजीन त्रिलोकसारकी 'पण-छस्सद-वस्सं पढ़ा है। इसीस 'अनेकान्त में प्रकाशित होतेही अच्छे पणमामजुदं' नामकी प्रसिद्ध गाथा को उद्धत करके अच्छे जैन-अजैन विद्वानोंन 'अनकान्त' पर दीजान प्रथम तो यह बतलाया है कि इस गाथामें उल्लिखित वाली अपनी सम्मितयोंमें* इम निबन्धका अभिनन्दन 'शकराज' शब्द का अर्थ कुछ विद्वान ता शालिवाहन किया था और इसे महत्वपूर्ण, वाजपर्ण, गवेषणपूर्ण, राजा मानते हैं और दूमर कुछ विद्वान विक्रमराजा । विद्वत्तापूर्ण, बड़े मार्केका, अत्युत्तम, उपयोगी, जो लोग विक्रमगजा अर्थ मानते हैं उनके हिसाबसे भावश्यक और मननीय लेख प्रकट किया था। इस समय (गत दीपमालकास पहले) वीरनिर्वाण कितने ही विद्वानोंने इसपरसं अपनी भूल को सुधार संवत् २६०४ आता है, और जो लोग शालिवाहन भी लिया था । मुनि कल्याणविजयजीने सूचित गजा अर्थ मानते हैं उनके अर्थानुसार वह २४६९ किया था-"आपके इस लेखकी विचारसरणी भी बैठता है, परन्तु व लिखते हैं २४६७ इस तरह उनकी ठीक है।" और पं० नाथूगमजी प्रेमीने लिखा था- गणनामें दो वर्षका अन्तर (व्यत्यास) तो फिरभी रह "आपका वीरनिर्वाण - संवत् वाला लेख बहुत ही जाता है। साथ ही अपने लेखक समय प्रचलित महत्वका है और उससे अनेक उलझनें मुलझ गई विक्रम संवतको १९९९ और शालिवाहनशकको हैं।" इस निबन्धक निर्णयानुसार ही 'अनकान्त'मे १८६४ बतलाया है तथा दोनोंके अन्तरको १३६ वर्ष 'वीरनिर्वाणसंवत्' का देना प्रारम्भ किया था, जो का घोषित किया है। परन्तु शास्त्रीजीका यह लिखना अबतक चालू है । इतनपर भी शास्त्रीजीका मेरे ऊपर ठीक नहीं है-न तो प्रचलित विक्रम तथा शक संवत् यह आरोप लगाना कि मैंने 'बिना विचार किय ही की वह संख्या ही ठीक है जो आपने मुल्लेखित की (गतानुगतिक रूपस) दूसरोंक मार्गका अनुसरण है और न दोनों सम्वतोंमें १३६ वर्षका अन्तर ही किया है कितना अधिक अविचारित, अनभिज्ञता- शास्त्रीजीका लेख गत दीपमालिका (२० अक्तूवर पूर्ण तथा आपत्ति के योग्य है और उसे उनका १६४१) से पहलेका लिखा हुआ है, अतः उनके लेखमें 'प्रतिसाहस के सिवाय और क्या कहा जा सकता प्रयुक्त हुए 'सम्मति' (इससमय) शन्दका वाच्य गत दीप मालिकासे पूर्वका निर्वाणसंवत् है, वही यहाँपर तथा प्रागे ये सम्मतियां 'भनेकान्तपर लोकमत' शीर्षकके नीचे भी इस समय' शब्दका वाच्य समझना चाहिये-न कि 'अनेकान्त'के प्रथमवर्षकी किरणोंमें प्रकाशित हुई है। इस लेखके लिखनेका समय।

Loading...

Page Navigation
1 ... 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680