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वीरनिर्वाणसम्वत्की समालोचनापर विचार
[सम्पादकीय] श्रीयुन पंडित ए० शान्तिराजजी शास्त्री प्रास्थान इसका कोई खास सम्बन्ध नहीं है। इस माम्प्रदायिक विद्वान् मैसूर राज्यन 'भगवान् महावीरकं निर्वाण- मान्यताका रूप देना और इस तरह दिगम्बर समाज संवत्की समालोचना' शीर्षक एक लेख संस्कृत भाषा के हृदयमें अपने लेखका कुछ महत्त्व स्थापित करने मे लिखा है, जो हिन्दी जैनगजटके गत दीप- की चेष्टा करना ऐतिहासिक क्षेत्रमें कदम बढ़ानेवालोंमालिकाङ्क (वर्ष ४७ अंक १) में प्रकाशित हुआ है कलिय अनुचित है। श्वेताम्बर समाजके भी कितने
और जिसका हिन्दी अनुवाद 'अनेकान्त' की इमी ही विद्वानोंने ऐतिहासिक दृष्टि से ही इस प्रश्मपर किरणमें अन्यत्र प्रकाशित हो रहा है। जैनगजटके विचार किया है, जिनमें मुनि कल्याणविजयजीका सं० सम्पादक पं० सुमेरचन्दजी दिवाकर' और नाम खास तौरस उल्लेखनीय है । इन्होंने 'वीर'जैनसिद्धान्तभास्कर' के सम्पादक पं० के० भुजबली निर्वाण-सम्वत् और जैन कालगणना' नामका एक शास्त्री प्रादि कुछ विद्वान मित्रोंका अनुराध हुआ कि गवेषणात्मक विस्तृत निबन्ध १८५ पृष्ठमा लिखा है, मुझे उक्त लेखपर अपना विचार जरूर प्रकट करना और उसमें कालगणनाकी कितनी ही भूलें प्रकट चाहिये । नदनुमार ही मैं नीचे अपना विचार प्रकट की गई हैं । यह निबन्ध 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के करता हूँ।
१०३ नथा ११३ भागमें प्रकाशित हुआ है। यदि यह इस लेख में मूल विषयको छोड़कर दो बातें खास प्रश्न केवल साम्प्रद यिक मान्यताका ही होता तो मुनि सौरपर आपत्तिके योग्य हैं-एकतो शास्त्रीजीने जीको इसके लिये इतना अधिक ऊहापोह तथा परि. 'अनेकान्त' मादि दिगम्बर समाजके पत्रों में उल्लि- भम करनेकी जरूरत न पड़ती। अस्तु । खित की जाने वाली वीरनिर्वाण सम्वत्की संख्याको मुनि कल्याणविजयजी उक्त निकायसं कोई मात्र श्वेताम्बर सम्प्रदायका अनुसरण बतलाया है: एक वर्ष पहले मैन भी इस किपर 'भ० महावीर दूसरे इन पंक्तियोंके लेखक तथा दूसरं दा संशोधक और उनका ममय' शीर्षक एक मिन लिखा था, विद्वानों (प्रो० ए०एन० उपाध्याय और पं० नाथगम जो चैत्र शुक्ल त्रयोदशी संबल १९८६ में होनेवाले जी प्रेमी') के ऊपर यह मिथ्या प्रारोप लगाया है महावीर-जयन्नीक उत्सबपर देल्ली में पड़ा गया था कि इन्होंने बिना विचार ही (गतानुगतिक रूपस) और वादको प्रथमार्षक 'अनेकान्त की प्रथम किरण श्वेताम्बर-सम्प्रदायी मार्गका अनुसरण किया है। में प्रप्रस्थान पर प्रकाशित किया गया था । इम इस विषयमें सबसे पहले मैं इतना ही निवेदन करदेना ।
धित होकर और धवल जयधवलके प्रमायोको भी साथ में चाहता हूँ कि भगवान महावीरके निर्वाणको भाज
लेकर अलग पुस्तकाकार रूपसे छप गया है, और इस समय किसने वर्ष व्यतीत हुए ? यह एक शुद्ध ऐतिहासिक बाबू पन्नालालजी जैन अपवाल, मुहल्ला चखेवालान प्रश्न है-किसी सम्प्रदायविशेषकी मान्यताके साथ देहलीके पास बार पाने मूल्यमें मिलता है।