Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 626
________________ श्वेताम्बरों में भी भ० महावीरके अविवाहित होनेकी मान्यता [ लेखक-३० परमानन्द जैन, शास्त्री ] जैनसमाजमें भगवान महावीरके विवाह-सम्बन्ध श्रीजिनसनाचार्य कृत दिगम्बर हरिवंश पुराणके को लेकर दो विभिन्न मान्यताएँ रष्टि गोचर होती हैं- ६६वें पर्व परसं भगवान महावीर विवाह-सम्बन्ध एक उन्हें विवाहित घोषित करती है, दूसरी अविवा- में इतनी सूचना मिलती है कि-गजा जिनशत्रु, हित । दिगम्बर मम्प्रदायके सभी ग्रन्थ भगवान जिसके साथ भगवान महावीरकं पिता राजा सिद्धार्थ महावीरको एक स्वरसे भाजन्म बालब्रह्मचारी प्रकट की छोटी बहिन व्याही थी, अपनी यशोदा नामकी करते हैं-पंच बालयसि सीर्थकरों में उनकी गणना पुत्रीका विवाह भगवान महावीरकं साथ करना चाहता करते हैं। परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायमें पाम तौर पर था परन्तु भगवान विरक्त होकर तपमें स्थित होगए भगवान महावीरको विवाहित माना जाता है। इनका और इससे राजा जितशत्रुका मनोरथ पूर्ण न होसका, विवाह समग्बीर राजाकी यशोदा नामकी कन्यास अन्नको वह भी दीक्षित होकर तपमें स्थित होगया। हुआ बतलाया जाता है और उससे प्रियदर्शना नाम इम सूचना परमं स्पष्ट है कि दिगम्बर मान्यतानुसार की एक पुत्रीका उत्पन होना कहा जाता है। साथ ही, भगवान महावीरक विवाहकी चर्चा तो चली थी यह भी कहा गया है कि प्रियदर्शनाका पाणिग्रहण परन्तु उन्होंने विवाह नहीं कराया था। यही कारण जमालिके साथ हा था और इस तरह जमालि है कि तमाम दिगम्बरीय प्रन्थों में उन्हें भगवान भगवान महावीरका दामाद था । पार्श्वनाथकं समान बाल ब्रह्मचार्ग प्रकट किया है। * तिसला इवा, विदेह रिगणा इवा, पीइकारिणी इवा। परन्तु श्वेताम्बर्गय प्रन्थों में इस विषयके दो उल्लेख समणस्स णं भगवनो महावीरस्स पित्तिज्जे, सुपासे, जेड- पाय जाते हैं जिनमें एक उल्लेख जो उन्हें स्पयतया भाया वंदिवडगे, भगिणी सदसणा, भारिया जसोया विवाहित घाषित करता है, वह ऊपर दिया जाचका कोडियण गोतेणं, समस्स णं भगवो महावीरस्स प्रधा है। दूमग उल्लेग्व-जा उन्हें बाल ब्रह्मचारी प्रकट कासन गोते तीसे रो सामधिजा एवमाहिज्जनि, तं करता है. वह निम्न प्रकार है:जंहा-अयोज्जा इबा, पियवंसणा वा । ममणस्प णं वीरं अग्निमि पास मल्लिंच बासपुर्ज। भगवयो महावीरस्स नतई कोसिय गोलणं तीसे यादो णाम एए मुस्ता जिणे अवसमा भासि रायाणा ॥२२१।। भिजा एवमाहिज्जति, तं जहासेसवई इवा. जसबई इवा ॥ १... -कल्पसूत्र पृ० १४२,१५३ भिवास किं श्रेणिक वेत्ति भूपति नृपेन्द्रसिद्धार्थ कनीयसीपति । ___ "एवं बाल्यावस्थानिवृत्ती संप्राप्त यौवनी भोगसमर्थों इमं प्रसिद्ध जिनशत्रमाख्यया प्रतापवंतं जिनशत्रमण्डलं ॥६॥ भगवान् मातापितृभ्यां शुभ मुहूर्ते समरवीरनृपपुत्रीं जिनेन्द्रवीरस्य समुद्भवोमवे तदागतः कुंडपुरं सुहृत्परः। यशोदा परिणायितः, तया च सह सुखमनुभवतो भगवनः सुपूजितः कुंडपरस्य भूभृता नृपोयमारखण्डनतस्यविक्रमः ॥७॥ पुत्री जाता, साऽपि प्रवरनरपतिसुतस्य स्वभागिनेयस्य ___ यशोदयायां सुनया यशोदया पवित्रया कीरविवाहमंगलम् । जमालेः परिणायिता, तस्या अपि शेषवती नाम्नी पुत्री, सा भनेककन्यापरिवारयाहस्समीकिंतु तुंगमनोरथं तदा ॥ll च भगवतो 'नत्तई दौहित्रीत्यर्थः । समबस्स.णं भगवनो स्थितेऽथनाये तपसि स्वयंभुवि प्रजातकैवल्यविशाल नोचने । महावीरस्स इत्यादितः जसबई इवा इत्यंत सुगमम्।" जगद्वित्यै विहरत्यपिरिति चिनि विहाय स्थितांस्तपस्या --करप.विनयविजयगडी, सुख.१. पृ. १४२,१४३ -हरिवंशपुराणे जिनसमाचार्यः

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