Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 625
________________ अनेकान्त होपरम्नमा, 'आत्मा ही परमात्मा है, 'श्रात्मा ही देवताओं नामोंसे पुकारे जाते थे। जो अपने योग, प्राण और इन्द्रियों का देवता', 'अनलाई' इत्यादि अध्यात्म मंत्र उच्चारते का संयम करनेके कारण 'यति' कहलाते थे। जो कमायोसे हुए चले गये। वे देवाधीनतावादको छोड़कर 'आत्मा ही विरत होने के कारण 'बत्ती' वा 'प्रात्य' कहलाते थे, जो तपअपना प्रभु और स्वामी है. 'श्रात्मा ही अपना मित्र और त्यागरूप श्रम करनेके कारण 'श्रमण' कहलाते थे, जो शत्रु', 'श्रात्मा ही अपने भाग्यका विधाता है' इत्यादि अन्तरंग शत्रुत्रोंका संहार करनेके कारण अरिहन्त' कहलाते स्वतन्त्रताके राग अलापते हुए चले गये । वे देवीइच्छावाद थे, जो सबके आदरणीय होनेके कारण 'वहन्त' कहलाते को छोडकर 'जैसा अनुभवोगे वैसा होजानोगे', 'जैसा बोश्रोगे थे, जो मृत्युके विजेता होनेके कारण 'जिम' कहलाते थे. वेसा काटोगे', 'जैसा करोगे वैसा भरोगे इत्यादि पुरुषार्थके जो त्रिकाल और त्रिलोकके विजेता होनेके कारण 'जिनेश्वर' सूत्र रचते हुए चले गये। वे क्रियाकाण्डको छोड़कर 'जन- कालाने थे। सेवा ही ईश-उपासना है, 'परोपकार ही स्वोपकार है', 'दया- यह अध्यात्म-श्रादर्श भारतीय-सभ्यताकी आधारशिला दान ही धर्म है' इत्यादि सदाचारके बोल बोलते हए चले रहा है और यही श्रादर्श भारतीय इतिहासकी आधारशिला गये। है। भारतीय जीवनका कोई पहलू ऐसा नहीं, भारतीय इतिइस श्रादर्शके आधार पर ही भारतने प्राचीन कालमें हासकी कोई घटना ऐसी नहीं, जिस पर इस श्रादर्शकी छाप वैदिक आर्योको ब्रह्मवाद दिया है, मध्य कालमें इसलामको न पड़ी हो । भारतकी कोई मान्यता और श्रद्धा ऐसी नहीं, सूफीवाद दिया है और आधुनिक कालमें पच्छिमके जड़- कोई रीति और प्रथा ऐसी नहीं, कोई संस्था और व्यवस्था वादियोंको नया अध्यात्मवाद (Neo spirtualisun) ऐसी नहीं, जिसके बनाने में इस आदर्शका हाथ न हो। दिया है। अनाएव भारतके असली जीवनको जाननेके लिये, इस इस तरह भारत अनेक बार फतह होने पर भी मदा की तहमें काम करने वाली शक्तियोंको पहिचाननेके लिये जगतका विजेता बना रहा है, औरोंसे अनेक सयक सीखने जरूरी है कि इस प्रादर्शको जाना जाय. इसकी विवक्षाओं पर भी सदा जगतका गुरु बना रहा है। (Implications) को जाना जाय, इसके विकासको यह अध्यात्म-श्रादर्श, जिसके कारण भारतको सुधार- नाना जाय, इसका विकास करने वाले प्रभावोंको जाना शक्ति मिली, आनन्द-शक्ति मिली है, समन्वय-शक्ति जाय, इन प्रभावोंको पैदा करने वाले लोगोंको जाना मिली है। जिसके कारण इसे शान्ति और सन्तुष्टि मिली है, जाय । इन सब चीजोंको जानने के लिये जरूरी है, कि उस सरलता और गम्भीरता मिली है, सौम्यता और अहिंसा समस्त सामग्रीका, उस समस्त साहित्य और कलाका संग्रह मिली है जिसके कारण इसे अनेकतामें एकता मिली है, किया जाय, जो इन पर प्रकाश डालती हो, उनको सूचिबद्ध अस्थिरतामें स्थिरता मिली है, भारतकी अपनी निजी चील किया जाय, उनका संशोधन किया जाय, वर्गीकरण किया है। यह भारतके मूलवासी श्रमण-लोगोंकी सृष्टि है। यह जाय, मिलान किया जाय, संकलन किया जाय-अर्थात् उन लोगोंकी देन है, जो अग्ने विविध गुणोंके कारण अनेक. इस समस्त सामग्रीका अनुसन्धान किया जाय । AAR

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