Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 637
________________ ५६२ भनेकान्त [वर्ष - अर्थ यह हुआ कि कनौजसे लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुध राजा था और इसलिए उसके बाद ही ध्रुवमजकी उक्त का रान्ध फैला हुआ था। चढ़ाई हुई होगी। २ श्रीबहम-यह दक्षिणके राष्ट्रकूट वंशके राजा श्वेताम्बराचार्य उद्योतनसूरिने अपनी 'कुवलयमाला' कुण्या (प्रथम) का पुत्र था। इसका प्रसिद्ध नाम गोविंद नामक प्राकृत कथा जावालियर या जालोर (मारवाड़) में (द्वितीय) था। कावामें मिले हुए ताम्रपटमें' भी इसे गोविंद जब श०सं०७.. के समाप्त होने में एक दिन बाकी था न लिखकर बल्लभ ही लिखा है, अतएव इस विषयमें संदेह तब समान की थी और उस ममय वत्मराजका राज्य था। नहीं रहा कि यह गोषिद द्वितीय ही था और वर्द्धमानपुरकी अर्थात् हरिवंशकी रचनाके ममय (श०७०५में) तो (उत्तरमें) बाक्षण दिशाम उसीका गज्य था। श०सं० ६६२ का मारवार इन्द्रायुधके अधिकारमै था और ( पूर्व में ) मालवा अर्थात् हरिवंशकी रचनाके १३ वर्ष पालेका उसका एक वत्सराजके अधिकारमें। परंतु इसके पाँचवर्ष पहले(श०७०० ताम्रपत्र भी मिला है। में) कुवलयमालाकी रचनाके ममय मारवाड़का अधिकारी ३ वत्सराज-यह प्रतिहारवंशका राजा था और भी वत्सराज था ।इससे अनुमान होता है कि पहले मारवाड़ उस नागावलोक या नागभट दूसरेका पिता था जिसने और मालवा दोनों ही इंद्रायुध अधिकारमें थे और वत्सचक्रायुधको परास्त किया था। हरिवंशके पूर्वोक्त पद्यका राजने दोनों ही प्रांत उससे जीते थे। पहले, श० सं० ७०० गलत अर्थ लगा कर इतिहास ने इसे पश्चिम दिशाका से पहले मारगार और फिर श. ७०५ के पहले मालगा । राजा बतलाया है और वईमानपुरकी ठीक अवस्थितिका इसके बाद ७०७ में धनराज राष्ट्रकुटने मालबराजकी सहापता न होनेसे ही उसके पश्चिममें मारवाड़को मान लिया यता के लिए चदाई करके वत्सराजको मारवाड़की अर्थात् है। परंतु बढ़वाणसे पश्चिममें मारवाड़ नहीं हो सकता। जालोरकी श्रोर ग्यदेह दिया । मालवेका पुराना राजा वास्तवमें उक्त पद्यम वत्सराजको पूर्व दिशाका और अवंति यह इंद्रायुध ही होगा जिसकी सहायता ध्रुवराजने की थी। का राजा कहा है और जयवराइको पश्चिम दिशाका राजा यह निश्चित है कि कनौजके माम्राज्यका बहुत विस्तार बतलाया है जिसकी चर्चा आगे की गई है। इसलिए था और उममें मालवा और मारवाड़ भी शामिल था। हरिवंशकी रचनाके समय श० सं० ७०५ में मालवे पर उक्त साम्राज्यको इसी बत्मराजके पुत्र नागभट (द्वि०) ने वत्सराजका ही अधिकार होना चाहिए। इसी इंद्रायुधके पुत्र चक्रायुधसे छीना था और यह छीनावत्सराजने गौड़ और बंगाल के राजाओंको जीता था झपटी वत्सराजके ही समयसे शुरू हो गई थी। ध्रुवराजने और उनसे दो श्वेत छत्र छीन लिये थे। आगे इन्हीं छत्रोंको उसमें कुछ बाधा डाली परंतु अंतमें बह प्रतीहारोंके ही हाथ राष्ट्रकूट गोविंद (द्वि.) के छोटे भाई ध्रुवराजने चढ़ाई करके में चला गया । उससे छीन लिया था और उसे मारवाडकी अगम्य रेतीली इन सब बातोंसे हरिवंशकी रचनाके समय उत्तरमें भूमिकी तरफ भागनेको मजबूर किया था। प्रोमाजीने लिम्वा इंद्रायुध और पूर्वमें वत्सराजका राज्य होना ठीक मालूम है कि उक्त वत्सराजने मालवेके राजापर चढ़ाई की थी होता। और मालव राजको बचानेके लिए ध्रुवराज उसपर चढ़ ४ वीर जयवराह-या पश्चिममें सौरीके अधिमंडल दौड़ा था। यह सही हो सकता है, परंतु हमारी समझमें का राजा था। मौरोंके अधिमंडलका अर्थ हम सौराष्ट ही यह पटना श० सं० ७०५ के बादकी होगी, ७०५ में तो समझते हैं जो काठियागाइका प्राचीन नाम है। सौर मालवा बत्सराजकेही अधिकारमें था। क्योकि ध्रुवराजका , सगकाले वोली गरिसाण सएहि सत्तहि गएहि । राज्यारोण काल श. सं. ७०७ के लगभग अनुमान गदिशेणणेहि सना अबरह वेलाए ॥ किया गया है, उसके पहले ७०५ में तो गोविंद द्रिही। हा २ परभउभिइडिमंगो पराईयारोहिणी कलाचंदो। .इडियन एण्टिक्वेरी जिल्द ५ पृ. ४६। सिरिबच्छरायणामो परहत्यी पत्थिवो जाना। १ एरिग्राफिमा रिहका जिल्द ६ पृ. २०१। -जैनसाहित्यसंशोधक म्बंड ३ अं.२

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