Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 623
________________ अनेकान्त [वर्ष ४ गौरवको बढ़ाया है, परन्तु इनमें से किसीको भी वह स्थिरता त्यो ही ये सब भूकम्प पीड़ित भवनोंके समान एक दमसे प्राप्त न हुई, जो भारतीय-संस्कृतिको मिली है। ये सब इस घबरा उठी, एक दममे लड़खड़ा उठीं, ये सब गिरकर मिट्टी दुनिया में ऊषाकी तरह भाई और सन्ध्याकी तरह चली गई। का ढेर होगई। परन्तु इम धूप और छायाकी दुनिया में, आँधी और तूफ़ान परन्तु भारतको सदासे मर्वोच्च श्रादर्श मिला है. श्रात्मकी दुनिया में भारतकी संस्कृति बराबर बनी हुई है। श्रादर्श मिला है, परमात्म-प्रादर्श मिला है, इसीलिये यहाँ इस मभ्यताकी आखिर वह कौनसी विशेषता है, जो की संस्कृति मदा निन्दा रही है, और सदा जिन्दा रहेगी। इसे बराबर कायम रक्खे हुए है? वह एक ही विशेषता है, प्रागैतिहासिक कालसे लेकर आजतक भारतको अनेक और वह है इसका आध्यात्मिक श्रादर्श । उतार-चढ़ावमेंमे निकलना पड़ा है, अनेक आफनो-मुसीबतोंमें ____ संसारकी अन्य सभ्यताओंको क्रियाकाण्ड (cere. मे गुजरना पड़ा है। बाहर वालोने इसपर अनेक आक्रमण किये। monialism ) मिला, व्यवहार ( convention- पूर्व-यच्छिमसे श्राकर यहाँ अनेक जमघट किये। कभी खत्ती alism) मिला, विधान (law and order) मिला, आर्य आये, कभी वैदिक आर्य प्राये, कभी सूर्यवंशी आये, संघटन (organisation) मिला. सब कुछ मिला. कभी सोमवंशी श्राये, कभी फारिस वाले श्राये, कभी यूनान परन्तु इनमेंसे किमीको श्राध्यात्मक प्रदर्शन मिला। वाले आये, कभी पार्थिया वाले श्राये, कभी बख्तियार वाले इन्हें विजय और माम्राज्य मिला, धन और वैभव आये, कभी शक और कृशन अाये, कभी हन और तुर्क मिला, अधिकार और शामन मिला, सब कुछ मिला, परन्तु आये, कभी पठान और मुग़ल श्राये. कभी फरामीसी और इन्हें वह श्रादर्श न मिला, जो इम बनती-बिगहती दुनिया अंगरज पाये। इन मब ही ने श्रा श्राकर एमके गष्टम में सदा ध्रुव रहने वाला है, मदा माथ रहने वाला है, जो अनेक उथल-पुथल मचाये. इसके समाजके अनेक भेद-भंग सदा भूलभुलय्याँसे बचाने वाला है, सदा नीचेमे ऊपर किये, इसके शरीर के अनेक रूप-रंग बदले, इन मब ही ने उठाने वाला है, जो सदा मनको रिझाने वाला है, सदा इमपर अनेक विध प्रहार किये। ये मब ही इमके रहन-महन काममें आने वाला है, मदा हितका करने वाला है, जो सब में क्रान्ति लाये, इसके व्यमन-व्यवमायमें क्रान्ति लाये, इमकी हीके लिये इष्ट है, सब ही के लिये माध्य है, सब ही के लिये भाषा-भूषा में क्रान्ति लागे, इसके प्राचार-विचारमं क्रान्ति प्राप्य है, जो सदा स्थायी और विश्वव्यापी है। लाये, परन्तु इनमें से कोई भी इसे अपने स्थानमे न राहगा मका, इस श्रादर्शके बिना अभ्य सभ्यता सदा निगधार बनी अपने अाधारमे न हिला मका। यह मदा यात्मदर्शी बना रहा रहीं, निस्सार बनी रहीं, इनकी सारी श्राभा, इनकी सारी और अाज भी श्रात्मदर्शी बना हुआ है। यह मदा गोगियों महिमा श्रोरीसी बनी रही। इनकी सारी शक्ति, इनकी का उगसक बना रहा और आज भी योगियोका उसक बना मारी प्रगति प्रोपरीमी चलती रही। ये कभी भी जीवनमें हुआ है। यह सदा योगाभ्यामको दी यानन्दका मार्ग मानता अपनी जड़ोंको न जमा मकी, ये कभी भी अपनेको बनाये रहा और आज भी योगाभ्यासको ग्रानन्दका मार्ग मानता है। रखने की संकल्पशक्तिको उत्पन्न न कर मकी, ये नमानेके इन सब ही बाहिर वालोंने भारत के क्षेत्रको विजय किया, साथ चलने और बदलनेकी सुधारशक्ति (power of इमके धन-दौलनको विजय किया, इसके अधिकार और adaptation) को न उगा मकी. ये कभी भी नये शामनको विजय किया, परन्तु इनमेंसे कोई भी इसके आदर्श विचारों, नये मार्गों के साथ मिलने-मिलानेकी समन्वयशक्ति को विजय न कर सका। इसके विश्वासको विजय न कर (power of harmony) को न जगा सकीं। इस मका, इमके संकल्पको विजय न कर सका, इसकी आत्माको श्रादर्श के बिना ये मढगर्भके समान यों ही जीती रही. यों ही विजय न कर मका। इस सारे आँधी-तूफान में, इस सारे बढ़ती रहीं, ये विशेष स्थिति तक पैदा होती रही और चलती उथल-पुथल में भारत बराबर श्रात्म-आदर्शको अपने भीतरके रहीं परन्तु ज्यों ही जमानेने पाटा खाया, नई समस्याश्रोने जन्म लोकमें छिपाये रहा । इमे कौस्तुभमणिके ममान छातीसे लिया, नये विचारोने सिर उठाया, नये विप्लवोंने जोर पकड़ा, लगाये रहा । इसे ध्रुव तारेके समान अपने जीवनका केन्द्र

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