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अनेकान्त
[वर्ष ४
और आध्यात्मिक अनुशासन पर आधार रखने वाला ही अात्मतत्वकी वास्तविकताको, वैदिक यज्ञके मुकाबले में मेद पाया जाता है।
अहिंसाकी महत्ताको और उन बौद्धोंके मुकाबलेमें जो अन्तिम अथवा दश अध्यायमें जद्वतत्ववाद पर, अहिसाका उपदेश देते हुए हिंसाका आचरण करते थे, जिसे श्राम तौरपर भूतवाद कहते हैं, विचार किया गया है, वनस्पति अाहारकी पवित्रताको स्थापित किया है। इसीलिए इस अध्यायको 'भूतवादचरुक्कम्' कहा गया है। इस मूल ग्रन्थके लेखकके विषयमें हमें कुछ भी हाल इसमें मुख्यतया जगतके भौतिक एकीकरणसे भिन्न अात्मिक- मालूम नहीं है, तथापि इतना अवश्य ज्ञात है कि इमकी तत्त्वकी वास्तविकताको सिद्ध किया गया है। लेखक इस प्रस्तुत टीका वामनमुनि-कृत है। च कि इस ग्रन्यमें कुरल बातपर जोर देता है कि चेतना स्वतन्त्र आध्यात्मिक तत्व तथा नाल दियारके उल्लेख पाए जाते हैं अत: यह ग्रन्थ है, न कि भौतिक तत्वोंके संयोगसे उत्पन्न हुअा एक गौण कुरलके बादकी कृति होनी चाहिए और चूँकि यह ग्रन्थ पदार्थ । वह ऐसा स्वतन्त्र अात्मतत्व है, जो व्यक्ति के कुण्डलकेशी ग्रन्थके प्रतिवादमें लिखा गया है अतः यह जीवनसे सम्बद्ध भौतिक तत्वोंके पृथक् होनेपर भी विद्यमान निश्चित रूपमे कुण्डलकेशीके बादकी रचना होनी चाहिए । रहता है। इस तरह इस अध्यायका मुख्य विषय है मृत्युके चूँकि हमें कुण्डलकेशीके सम्बन्धमें भी कुछ मालूम नहीं अनन्तर मानवीय व्यक्तित्वका श्रवस्थान । यह बात नील- है. अत: इस सूचनाके अाधारपर हम कुछ विशेष कल्पना केशी जड़वादके नेताको सप्रमाण सिद्ध करके बतलाता है, नहीं कर सकते । जो कुछ भी हम कह सकते हैं वह इतना जिससे वह तत्काल अपनी भूल स्वीकार करता है और वह ही है कि यह ग्रन्थ तामिल साहित्यके अत्यन्त प्राचीन मानता है कि ऐसी बहुतसी चीजें हैं, जिनका उसके दर्शनमें काव्य ग्रन्थोंमें से एक है । इसमें कुल ८४४ पद्य हैं । यह स्वप्नमें भी उल्लेख नहीं है । इस प्रकार यह ग्रन्थ ग्रन्थ-नि:सन्देह तामिल साहित्यके विद्यार्थियोंके लिए बड़ा प्रथम तो श्रात्मतत्व तथा मानवीय व्यक्तित्वकी वास्तविकता उपयोगी है। इससे व्याकरण तथा मुहावरेके कितनेही को और दूसरे अहिंसाके श्राधारपर स्थित धार्मिकतत्वकी अपूर्व प्रयोग और कितनेही प्राचीन शब्द, जिनसे यह ग्रन्थ प्रधानताको सिद्ध करते हुए पूर्ण किया गया है। इस तरह भरा पड़ा है, प्रकाशमें श्राते हैं। नीलकेशी अपने जीवन - कार्यको पूर्ण करती है, जिसका दो और लघुकाव्य जो अबतक ताड़पत्रोपर अप्रसिद्ध ध्येय अपने उन गुरुदेवके प्रति आभार प्रदर्शन रूप है, दशामें पड़े हुए हैं, ४ उदयन - काव्य और ५ नागजिनसे कि उसने धर्म और तत्वज्ञान के मूल सिद्धान्त कुमार काव्य हैं । इनमेंसे पहला अपने नामानुसार उदयनके सीखे थे और उन्हें अपनाया था, यद्यपि वह पहले देवीके जीवनचरित्रको लिए हुए है । इसमें कौशाम्बीनरेश रूपमें पशुबलिके प्रति खूब श्रानन्द व्यक्त करती रही थी। वस के कार्योका भी वर्णन है । कि वे अभीतक प्रकाशित इस प्रकार हमें विदित होता है कि नीलकेशी मुख्यतया नहीं हुए हैं, अत: उनके विषयमें हम अधिक कुछ नहीं एक वाद-विवाद-पूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें जड़वादके मुकाबलेमें कह सकते।
(क्रमश:)