________________
* ॐ महम् *
खतत्त्व-स
विश्वतत्वप्रकाशक
नीतिविरोधष्यसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ।
वर्ष ४ । वीरसंवामन्दिर (ममन्तभद्राश्रम ) मग्मावा जिला महारनपुर किग्गा ११-१२ ( पौष-माघ, वीरनिर्वाण मं० २४६८, विक्रम सं० १६६८
दिसम्बर-जनवरी
१५.४१-४२
।
समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने
श्रीवृषभ-जिन-स्तोत्र म्वयम्भुवा भूत-हितेन भूतले, ममंजम-ज्ञान-विभूनि-चक्षुषा ।
विजितं येन विधुन्वना नमः, क्षपाकरेणेव गुणोत्करैः करैः ॥ १॥ 'जो स्वयंभू धे--स्वयं ही, विना किमी दुसरेके उपदेशके, मोतमार्गको जान कर तथा उसका अनुष्ठान करके प्रारम-विकासको प्राप्त हुए थे-प्राणियोंके हितकी-उनके प्रात्मकस्थाणकी--भावना एवं परिणनिसे युक्त हुए साक्षात् भूतहितकी मूर्ति थे, सम्यग्ज्ञानकी विभूतिरूप-- सर्वज्ञतामय- (अद्वितीय) नेत्रके धारक थे, और अपने गुणसमूहरूपी हाथोंमे--अबाधितत्त्व और यथावस्थित अर्थ-प्रकाशकत्व प्रादि गुणों के समूह वाले वचनोंम--अंधकारको-- जगतके भ्रान्ति एवं दुःव मूलक अज्ञानको--दूर करते हुए, पृथ्वीतल पर ऐसे शोभायमान होते थे जैसे कि अपनी अर्थप्रकाशकस्वादिगुण विशिष्ट किरणोंमे रात्रिके अन्धकारको दूर करता हुआ पूर्ण चद्रमा मुशोभित होता है।'