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अनेकान्त
[वर्ष ४
'हैं, यह तो प्रादमी मालूम देता है ? बेचारा मर तुमने मुझे पुत्रकी भीग्य दी है। उसे जीवनदान दिया न चुका हो ?'-वह अपने आप बढ़बड़ाया। जैसे है। लेकिन मैं . .?मैं दौलनमंद होकर भी वह अपने हृदयसे उत्तर चाहता है।
गक्षम हूं, जिसन अपन मनोरंजनके सामने तुम्हारे और दसरं ही क्षण-हथेली पर जान लें, उस बच्के की जानको कुछ नहीं समझा। 'मैं नराधम चढ़ती हुई यमुना प्रबल वंगमे जूझने के लिए हूं-रामदीन । तुम मुझे माफ करदा।' गमदीन अथाह जलमं कूद पड़ा।
-और डाकार सिन्हा जोर-जोरसे गे पड़े। आध-घण्टे तक बूढ़-शरीरकी सारी शक्ति उसे उन्हें लगा-जैसे रामदीन कारमे गिरकर पाहत तटकी धार लाने के प्रयत्नमें लगी। तब कहीं वह उसे हुआ, उनके सामने पड़ा है।
.. 'गंमा मत, डाक्टर माहब । मिर्फ वही एक पार ला मका।
. चीज़ गरीबोंक लिए बच रही है। उसे उन्हीं के लिए ___ला तो सका, पर स्वयं बड़ी मुसीबतमें अपनको
रहने दो, न ? तुम बड़े आदमियोंको गना शोभा फँसा आया । उसका दाहिना पैर किसी जलचरने
भी तो नहीं देता ? काट लिया था । वह खून से लथपथ और थकावटसे
____ आह ! गमदान, मैं हत्याग हूं-मैंने ही तुम्हारे चूर तटपर आकर ही रहा । .
मन्तूको खाया है । मुझे माफ कर दो ।'-डाक्टर ___ लेकिन उसकी दशा ? आह, किननी भयंकर,
मिन्हाका मन मौंम होरहा था। वं घुटनोंक बल बैठ किननी द्रावक, और कितनी करुण हारही थी ?
गए-रामदीन के आगे, बगैर अपने नये सूटकी और जब उसने आँखें खालकर उस मृन-प्राय
बांदीका ख्याल किए हुए । शरीरकी ओर देखा तो अवाक रह गया।
___'मेरे भाग्यकी बात थी-डाक्टर माहब । आप हृदय उसका परोपकारकी महतीभावनासे भर का कोई दोष नहीं। मगर मुझे इस बातकी बड़ी गया । निश्चय ही वह जीवित था।...
खुशी है कि मैं अपनी जान देकर भी, आपके पुत्रकी फिर सहसा उसका कण्ठ फूटा-'अरे, यह तो जान बचा सका । मेरा आखिरी वक्त है-मैं जा रहा डाक्टर सिन्हाका पुत्र प्रमोद है । यहाँ कैसे आया ?' ह.....'नमस्कार ।'
जहग्ने रामदीनको पीला कर दिया था-परका [५]
घाव रक्त बहाते-बहाते थक गया था। डाक्टर साहब 'गमदीन, गमदीन ! सचमुच तुम आदमी नहीं, ने देखा तो गमदीन अमर हो चुका था। देवता हो । तुम गरीब हो पर, तुम्हारा दिल दौलतमंद और डाक्टर साहब गे रहे थे । ऑग्में हो रही है । उसमें तेज है, उसमें उदारता है, उसमें प्रेम है। थी-लाल सुर्ख ।