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किरण E]
शेष सब ओर शान्ति थी ।
"लो, पियो ! घबराओ नहीं, बेटा । भगवान सब ठीक करेंगे। मदीनने मिट्टीका बर्तन सन्तूकं तपने हुए सूखे ओठों लगाते हुए कहा ।
'दादा ||'
मन्तूने एकबार रामदीन की ओर देखा । ओफ़ !...
गरीबका दिल
निश्चय ही उसकी दृष्टिमें निराशा थी । गमदीन मिहर उठा । टप् टप् दो बूँदें उसकी गड्डोंमें धँसी हुई श्रम्बोंने टपकादीं। वह मुंह से कुछ बोल न सका ।
'दा```। राओ मत । मेरा तुम्हारा बम, इतना ही साथ था—जो हो रहा है अब । 'आह'सन्तृने अटकती हुई जवानसं रुकते हुए कहा ।
पूरा
फ, यह कैसी बातें हैं ? - रामदीन हृदया धैर्य छोड़ बैठा। और एक दम रो पड़ा. हिची भर कर. बच्चोंकी तरह ।..
'मन्नृ । मन्तू बेटा | बापसे रूठ कर कहाँ जा रहा है ? अरे, जरा मेरी ओर तो देख, मैं बुढ़ापेकं ।' मगर मन्तू अब था कहाँ वहाँ ? जो उसकी ओर देखता । वह तो ?
गतकं ग्यारह बजे । यमुनाका पारदर्शी-सलिल हाहाकार कर रहा था। समीरकी तीव्रतासे प्रेरित, सूखे पत्ते बड़बड़ाहट मचा रहे थे। हिमानी और अन्धकार भीगी हुई रात जब अपनी भयंकरता दिखला रही थी तब रामदीन गे रहा था। उसका करुण क्रन्दन रात्रिकी नीरवताका अवलम्ब पा चतुर्दिक विस्वर रहा था।"
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पूरा एक वर्ष बीत गया ।
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गमदीन भी वही है । झोंपड़ी भी वही है। और वही यमुना, उसी तरह सामने वह रही है। बम, अन्तर है तो इतना कि राज सन्तु नहीं है।
दूसरे देखने वालों को ही, यह बात नहीं है। पर
यह अन्तर कुछ मालूम दे इतने अन्तरने रामदीनको
क्या कर दिया है ? उसकी जीवन-धारा अब किधर बह रही है ? - इसे वह स्वयं ही नहीं जानता । तब और कौन कह सकता ?
माना कि उसके हृदयकी चोट किसीको दखती नहीं। पर, वह है जिसने उसे मुर्दा बना दिया है, जीने की ख्वाहिशकां बुझा दिया है. और कर दिया है
बरबाद |
वह एक लक्ष्य-हीन संन्यासी है - श्रव ।" रात-रात भर वह यमुना के तट पर बैठा रहता है। पता नहीं, किसके सोचमें, किसके ध्यानमें ? वा पी लिया तो ठीक, न ग्वाया तो कुछ परवाह भी नहीं । जैसे शरीरमं ममत्व खूटने के साथ, भोजनसे स्नेह भी टूट चुका हा न किसीसे बोलता चालता है, न मिलता जुलता ही । जहाँ बैठा, वहीं का हो रहा जिधर देखने लगा, बस देखता रहा घन्टों उसी ओर । कुछ पूछा जाय तो कोई उत्तर नहीं । मौन वैरागी की तरह |
'चुप'
और इन्हीं सब बातोंने उसे 'पागल' करार दं दिया है। पर, क्या वह सचमुच पागल है भी ? यमुना बढ़ी हुई थी, पानी खूब तेजी से किलालें करता हुआ चला जा रहा था । लहरें - एक दूसरी पर पाँव रख कर आगे बढ़तीं, पर फिर अन्त । रामदीन किनारे पर बैठा, देख रहा था - यह सब ।"
सहसा उसने देखा - एक काली-सी चीज्र, पानी की लहरों के साथ उछलती, डूबती, तैरती चली आ रही है ।