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किरण []
गरीबका दिल
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शेष सब ओर शान्ति थी।
गमदीन भी वही है। झोंपड़ी भी वही है। और _ 'लो, पियो ! घबगो नहीं, बेटा । भगवान सब वही यमुना, उसी तरह सामने बह रही है। बस, ठीक करेंगे ।'-गमदीनने मिट्टीका बर्नन सन्तुकं अन्तर है तो इतना कि आज सन्तू नहीं है। . तपनं हुए सूर्य पाठोंसे लगाने हुए कहा ।
दूसरे देखने वालोंको यह अन्तर कुछ मालूम दे 'दादा
ही, यह बात नहीं है । पर, इनने अन्तग्ने गमदीनको मन्तून एकबार गमदीनकी ओर दग्वा । क्या कर दिया है ? उसकी जीवन-धाग अब किधर प्रोफ!...
बह रही है ?-इसे वह स्वयं ही नहीं जानता । तब निश्रय ही उसकी दृष्टिमें निराशा थी। गमदीन और कौन कह सकता है ? मिहर उठा । टप टप दो बँदें उसकी गडोंमें धंसी हुई माना कि उसके हृदयकी चोट किसीको द.खती ऑग्वोंने टपकादीं। वह मुंहसे कुछ बोल न मका।।
नहीं। पर, वह है जिसने उस मुर्दा बना दिया है, जीने 'दा'। गंभो मत । मेरा तुम्हारा बस, इतना ही की ख्याहिशको बुझा दिया है. और कर दिया हैमाथ था-जा पूरा हो रहा है अब.. आह... बरबाद। मन्तृने अटकती हुई जाबानसे रुकते हुए कहा।
वह एक लक्ष्य-हीन संन्यासी है-प्रब।.. उफ, यह कैसी बातें हैं ?-रामदीन हृदयका
रात-गत भर वह यमुना तट पर बैठा रहता है। धैर्य छोड़ बैठा। और एक दम रो पड़ा. हिची भर
पना नहीं, किमके सोचमें, किसके ध्यानमें ? ग्या पी
लिया तो ठीक, न ग्वाया ना कुछ परवाह भी नहीं । कर. बच्चोंकी तरह।...
जैसे शरीरसं ममत्व खूटनफ साथ, भोजनसे स्नेह भी ___ 'मन्तृ । मन्तू बेटा। बापसे रूठ कर कहाँ जा
टूट चुका हा। न किसीस बालता चालताह, न रहा है ? अरे, जग मरी ओर तो देख, मैं बुढ़ापे ।'
मिलता जुलता ही। जहाँ बैठा, वहीं का हो रहा मगर मन्तू अब था कहाँ. वहाँ ? जो उसकी
जिधर देखने लगा, बस दंग्यता रहा घन्टों उसी भोर । ओर देखता । वह तो.....?
कुछ पूछा जाय तो काई उत्तर नहीं।"चुपगनकं ग्यारह बजे । यमुनाका पारदर्शी-सलिल
मौन'वैगगीकी तरह। हाहाकार कर रहा था। समीरकी तीव्रतासे प्रेरित,
और इन्हीं सब बातोंने उम 'पागल' करार दे सूखे पत्ते बड़बड़ाहट मचा रहे थे। हिमानी और
दिया है। पर, क्या वह सचमुच पागल है भी ? अन्धकारसं भीगी हुई रात जब अपनी भयंकरता यमुना चढ़ी हुई थी, पानी खूब तेजीस किलोलें करता दिखला रही थी-तब रामदीन गे रहा था। उसका
हुआ चला जा रहा था। लहरें-एक दूसरी पर पाँव करुण-क्रन्दन रात्रिकी नीरवताका अवलम्ब पा, रख कर आगे बढ़ती, पर फिर अन्त । रामदीन चतुर्दिक विग्वर रहा था।
किनारे पर बैठा, देख रहा था-यह मब ।
सहसा उसने देखा-एक काली-सी चीज, पानी [ ४ ]
की लहरों के साथ उछलती, डूबती, नैरती चली श्रा पूग एक वर्ष बीत गया।