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- गरीबका दिल .
[ लेम्बक-श्री भगवन्' जैन ]
है-'डाक्टर माहबको लाओ !'-चलिए हुजूर ! 'श्रादमी हो या जानवर ? सुनते नहीं, कह दिया बम, दो मिनिटके लिए! मेग बंटा ‘मंग मन्न!' एक बार कि नहीं जा सकते इस वक्त ?'
उफ् ! कितना बेहूदा आदमी है-यह समझाये, लेकिन हज़र । मेग इकलौता बेटा, मेरी जिन्दगी ममझता नहीं ! अपनी हाँके जाता है-पट्ठा! अजय की रोशनी मेरी स्त्री की यादगार.... !' खपशाम पाला पड़ा है आज !
'ता क्या करें-हम ? देग्यत नहीं, माहे-छः बज डाक्टर सिन्हाका दिमारा गर्म होगया, झलाकर चुकं, "फर्ट-शा' का टाइम हो रहा है।'
बाल-'हट ! 'ब्लाडी-फूल' !' ___ 'हुजूर ! गरीबका उपकार होगा, अात्मा दुआएँ कार मामूली रफ्तारमं चल रही थी ! ड्राइव देंगी-मंगै मंगलाल! मेरा पून जरूर बच जायेगा- कर रहा था-प्रमोद ! डाक्टर साहबका इकलौता डाक्टर साहब!'
नौनिहाल! _ 'न, हम नहीं जा सकने ! दिमाग़ न चाटो सन्ध्याका धूमिल आकाश मंमारके सिर पर था! बंकार ! चलो, प्रमाद ! स्टार्ट कगे कार !' दिवाकरकी मिटती किरणे लुटी-सी भाभा लिए __ प्रमोद ना पिनाकं हुक्मक इन्तजार में था ही, छिनिज पर विलीन होती जा रही थी! उम क्या देर ?
___ सारे अपमानको पीकर वह फिर कहने लगा, दसरं ही क्षण कार आग बदी, कि वह संकटा- जैसे उसके बहोश दिल'पर अपमानकी चोट लगती पन्न-व्यक्ति-पीड़ित-मानव-उचक कर कैरियर पर ही न हो!-'डाक्टर' 'सा' ह..! जीने-मरने के बड़ा हो रहा !
मवाल पर अगर थोड़ा मनोरञ्जन श्राप छोड़ देंगे तो और लगा अपने मंकटकी कैफियत देने–'डाक्टर कुछ बुग न होगा! मुसीबतक वक्त दुसरंकी मदद साहब ! डाक्टर माहब ! रहम करो, दो मिनिटके करना, उसके काग पाना मनुष्यका फर्ज है ! इतने लिए तकलीफ उठाओ ! मेग मन्नू-मेग बेटा- पर भी मैं पूरी फ्रीस-बनीस रुपया.....!" अन्तिम-सॉसें ले रहा है ! किमीके किए कुछ नहीं हो ओह ! यह करारा अपमान ? मग मनुष्यता रहा ! सब हकीम डाक्टर थक कर लौट पाए हैं! परखने चला है यह नीच, गवार मल्हा इतनी बायू जी, अब सब गांव आपका ही नाम ले रहा है, हिम्मत, इतनी मजाल कि मुझे स्पीच सुनाए १
आपके हाथमें यश है, आप उमे जरूर चंगा कर पीछा ही नहीं छोड़ना चाहता-बदमाश कहींका! देंगे ! खुद सन्तू जब होशमें आता है, पुकार उठना इसे ममझाए कौन-कि शामका बक्त काम करने