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किरण] बुन्देलखण्डका प्राचीन वैभव, देवगड
५१५ नाशील पाथकों को इस स्थानके अतीत गौग्वकी गाथा टूटी हुई मूर्तियों और इमारतोंके स्तूपाकार देर पड़े सुनाते हैं। यहां जो शिलालेख प्राप्त हुए हैं उनसे पता नजर आते हैं। फिर भी करीष १६ मन्दिर ऐसे हैं चलता है कि किसी समय यह उजड़ा हुआ म्यान जो अच्छी अवस्थामें मौजूद है । ये सब मन्दिर गुण-साम्राज्यका एक मुख्य जनपद रहा होगा। पत्थरके हैं। इनका कटाव और पत्थरका बारीक कार्य
देवगढ़का प्राचीन किला एक पहाड़ी पर बना देखने योग्य है । मन्दिरोंके गर्भ-गृह बिलकुल अन्धहुआ है, जो गांवकं समीप-ही है। किलके नीचे कारमय है। बाहरस भीतरकी कोई वस्तु नजर नहीं दक्षिणकी ओर-करीब ३०० फीटकी नीचाई पर पाती। इनके भीतर प्रवेश करते समय पत्थर फेंक बेनवा बहनी है। जैनियोंके प्राचीन मन्दिर-जनकं कर यह देख लेना बहुत आवश्यक है कि वहां कार्ड कारण देवगढ़ काकी प्रसिद्ध है-इस पहाड़ी पर ही जंगली जानवर तो नहीं छिपा। बिजलीकी बत्ती बने हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि देवगढका प्राचीन अगर साथ हां, तो अच्छा है। उससं मन्दिरकी नगर भी यही बसा होगा।
भीतरी बनावट देखनेमें सहायता मिलती है । जैनियों गांवके समीप ही जंगलातक महकमका एक छोटा के प्रयत्नसं इन मन्दिरोंकी व्यवस्था पहलस बहुत सा बंगला है और इस बंगलेस थोड़ा आगे चल कर कुछ अच्छी है। परन्तु हमने जब सनको पहले पहल मुत्तरकी पोर गुप्त-कालीन प्रसिद्ध विष्णु-मन्दिर है। देखा तो मनको बड़ा दुःख हुआ। जिस स्थान पर
पहाड़ पर चढ़ने के लिए पश्चिमकी ओर से एक कभी सुगंधित तेल-युक्त प्रदीप जला करते थे, वहां रास्ता बना है। पहले एक पुराना तालाब है। उसकी चमगीदड़ोंकी भयानक दुर्गन्धकं कारण हमें अपनी पार करके पहाड़ पर चढ़नके लिए सीढ़ियोंदार एक नाक बन्द करके भीतर प्रवेश करना पड़ा। मन्दिरक चौड़ी किन्तु प्राचीन सड़क मिलती है, जो बड़े-बड़े भीतर गुफामें जैन-तीर्थबगेकी मूर्तियां विराजमान शिलाखंडोंको लेकर बनी है। किसी समय यह सड़क हैं। बाहरकी बदो और मंडपमे भी बहुत-सी मूर्तियां अच्छी अवस्था में रही होगी। किन्तु अवतो इस पर हैं। इन मूर्तियोंकी बनावट बढ़ी सुन्दर और सुडौल चलते समय बड़ी ठोकरें खानी पड़ती है। सड़कके है, और उनसे जैन स्थापत्यकी उत्कृष्टताका खासा दोनों भोर करधई, खैर, और सालके घन वृक्ष है, परिचय मिलता है। जिनकी दीर्घ शाखायें यहां सदेव शीतल छाया किये एक बड़े मन्दिरमें शान्तिनाथ भगवानकी मूर्ति रहती हैं।
विगजमान है। यह १२ फीट ऊँची खड्गासन मूर्ति ___ पर्वतकी ऊँचाई पार करने पर एक टूटा हुआ द्वार है। तीन मूर्तियाँ और भी हैं, जो लगभग १० फीट मिलता है । यह पर्वतकी परिधिको घेरे हुए दुर्ग-काट ऊँची होंगी। जैनियोंके चौबीसों तोडगेंकी मूर्तियां का द्वार है। इसका तोरण अब भी अच्छी हालतमें यहां देखनेको मिलती है। प्रत्येक मूर्तिकं साथ एकहै । इस द्वारका पार करने पर तीन कोट और मिलते एक यक्षिकी मूर्ति बनी हुई है । और मम पर यक्षिका हैं । जैनियोंके प्राचीन मन्दिर तीसरे कोटके भीतर नाम भी खुदा हुभा है। एक पाषाणका सहलकूट हैं। अधिकांश मन्दिर नष्ट हो गये हैं। जगह-जगह चैत्यालय (जिस पर १००८ मूर्तियां अंकित है)