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किरण २]
जैनमुनियोंके नामान्त पद
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सूरि' ग्रंथके पृ० २५९ मे ६१ में प्रकाशित है। दीक्षा उनका नामान्त पद भी अपना नामान्त पद-चंद्र' समयमें एक साथ जितने भी मुनियोंकी दीक्षा हो ही रखेंगे। इसी प्रकार जिनसुखसूरि पहले "सुख" उन सबका नामान्त पद एक ही रक्खा जाय, ऐसी नंदि, लाभसूरि "लाम" नदि भक्तिसूरि "भक्ति" नंदि परिपाटी भी प्रतीत होती है यह परिपाटी बहुत ही ही सर्वप्रथम रखेंगे । अर्थात नवदीक्षित मुनियोंका महत्व पूर्ण है।
सर्वप्रथम नामान्त पद वही रखा जायगा। ___ उस समयके अधिकांश मुनियोंकी दीक्षाका अनु- ७ म्वरतरगच्छमें श्री जिनपनिसूरिजीने दफतरक्रम हम उसी नंदी अनुक्रमसे पा लेते हैं । यथा-गुण- इतिहास डायरी रखने की बहुत अच्छी परिपाटी विनय और समयसुदर दोनों विद्वान समकालीन थे चलाई है, इस दफतर बही में जिस संवत्-मिति को अब इनमें कौन पूर्व दीक्षित थे, कौन पीछे दीक्षित जिस किसीका दीक्षा एवं सूरि-पदादि दिये जाते हैं हुए ? हमें यह जानना हो तो हम तुरंत नंदी अनुक्रम उनकी पूरी नामावली लिम्व लेते थे, इसी प्रकार जहाँ के सहारे यह कह सकते हैं कि गुणविनयकी दीक्षा जहाँ विहार करते हैं वहाँ के प्रनिष्ठादि महत्वपूर्ण प्रथम हुई; क्योंकि उनकी नंदीका नं०८ वां है और कार्यों एवं घटनाओंकी नोंध भी उममें रख ली जाती 'सुन्दर' नंदीका नम्बर २०वां है।
थी, वहां उस समय अपने गच्छकं जिनने श्रावक होते
उनमें जो विशिष्ट भक्ति श्रादि करते उनका भी उममें पीछेके दफतगेको देखनेस पता चलता है कि एक नंदी (नामान्त पद) एक माथ दीक्षित मुनियोंके
विवरण लिग्व लिया जाना, इमम इनिहासमें बड़ीभार्ग लिये एक ही बार व्यवहत न होकर (वह नामाम्त पद)
मदद मिलती है। खेद है क ऐमें दफनर क्रमिक पूरे
" उपलब्ध नहीं होते ! अन्यथा, बरतरगच्छका ऐमा कुछ समय तक चला करती थी अर्थात् "चंद्र" नंदी चालू की गई उसमें अभी ज्यादा मुनि दीक्षित नहीं
सर्वागपूर्ण इतिहास तैयार होसकता है जैसा शायद है। हुए हैं तो वह नंदी १-२ वर्ष तक चल सकती है,
किसी गच्छका हो । भारतीय इतिहासमें भी इन दफउस समयके अंदर कई बार भिन्न भिन्न ति थ या मुहूर्त
तरों का मूल्य कम नहीं है। अभी तक हमारी खाजमें में दीक्षित सभी मुनियोंका नामान्नपद एक ही रक्खा पहला दफ़तर जिसका नाम 'गुर्वावली' है, सं० १३:३ जायगा । जहाँ तक वह नंदि नहीं बदली जायगी।
जागा तकका उपलब्ध हुआ है और इसके बाद सं० १७००
में वर्तमान नकका उपलब्ध है। मध्यकालीन जिन६ यु० जिनचंद्रसूरिजीत * अब तक तो खरतर- भटसरिजी और य० जिनचन्द्रसूरिजीकं समयके दफगच्छमें एक और विशेष प्रणाली देखी जाती है कि
* नर मिल जाते तो मागपूर्ण इतिहास तैयार हो पट्टधर प्राचार्यका नामान्त पद जो होगा, सर्वप्रथम ,
म सकता था। ऐसे प्राचीन १-२ दफ़तरोंका विद्यमान वही नंदि स्थापित की जायगी जैसे-जिन चंद्रसूरि होना सना भी गया है, प्राचीन भंडारोंमें या यति जी जब सबसे पहले मुनियोंको दीक्षित करेंगे तब
_ श्रीपूज्योंके संग्रहमें अवश्य मिलेंगें, पूरी खोज होनी * इससे पूर्व भी संभव है, पर हमें निश्चित प्रमाण यहीसे चाहिये । मिला है।
सं०१७००से वर्तमान तकका एक दफतर जयपुर