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किरण ६-७ ]
वश गुरुका समागम नहीं है, और न मुझे प्रतीक्षाका समय ।'
कलाकार ब्रह्म गुलाल
देखते-देखते ब्रह्मगुलालने मोह-ममताकी तरह ही, वस्त्राभूषण का भी परित्याग कर दिया ! एकदम प्राकृतिक !! दिगम्बर !!!
भीड़के. श्रद्धास मस्तक झुक गए !
मनके मुँह से निकला - 'धन्य' !
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नपुंगव दिगम्बर साधु ब्रह्मगुलालने कहा'राजन! मोही जीव की स्वान-वृत्ति है। वह लाठी मारने वाले को नहीं, बल्कि लाठीको काटता है। निमित्तको दोष देना नादानी है। असलने भाग्य वह वस्तु है, जो निमित्तका ठेलकर आगे ले आती है। भाग्य और निमित्त दो बड़ी शक्तियाँ हैं- जिनके सामने बेचारा गरीब-प्राणी खिलौनामात्र रहजाता है!'
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माधुताके तेजके आगे महाराजने सिर झुका
और दूसरे ही क्षण - वासना विजयी साधु ईर्या-पथ दिया । गद्गद् स्वर में बोले- मेरे हृदयका पाप छ निरखतं राज-द्वारकी ओर जा रहे थे ! गया, 新 स्वच्छ हृदय होकर कहता हूं कि मैं तुमसे प्रसन्न हूं। बाली, क्या चाहते हो ? जो चाहा लां, और आनन्द रहो ।'
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'दुनिया में कौन किसका पुत्र है, कौन किसका पिता ? सब अपने भाग्य को लेकर श्रातं; और चले जाते हैं। माँकी गोद में लेटा हुआ बच्चा मर जाता है, और माँ देखती रहती है, बच्चा नहीं पाती । विवश मजबूर जो होता जाता है, देखती रहती है । क्यों ? भाग्य और निमित्त के आगे वह कुछ कर नहीं सकती -इसलिए !'
देर तक उपदेश चलता रहा। महाराज और सारा राजपरिवार, सारी राजसभा लगन और श्रद्धा के साथ सुनती रही।
महाराजके मनकी कालोंच धुल गई। पीड़ा भूल गए। दुनिया के स्वरूपको ज्ञानके दृष्टिकोणने बदल दिया । सोचने लगे — 'कितना महान् है, यह ब्रह्म
गुलाल ! नगर इस पर गौरव कर सकता है। राज्य का भूषण है यह !'
मंत्री विचारने लगे- 'सकचा - कलाकार है ब्रह्मगुलाल ! जिम वेषको अपनाता है, पूरा कर देता है, कमी नहीं छोड़ता । राज्य में ऐसे कलाकारका रहना गर्व की बात है।'
ब्रह्म गुलालने उत्तर दिया- 'आपके निमित्तसे मुझे वह चीज मिल चुकी है जो म्वर्ग-अपवर्गके सुख प्रदान करती है। उसे पाकर अब मुझे किसी चीज़ की इच्छा नहीं है-राजन! मैं घरकी चहारदीवारी में नहीं, आत्म-विकास की मुक्तिवायुमें विहार करूँगा ।'
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[<] माँन, बापन, खीन सबने जी-तोड़ कोशिश की, परब्रह्म गुलाल माधुताका त्याग करना स्वीकार न किया। वह शहर से दूर, वनमें आत्म श्रागधनाकं लिए बैठ गया ।
खबर पहुँची - 'घर चला ! रोटी तैयार है ।' बोला- 'मेरा घर तो वह है, जहाँ 'मरण' नं दर्वाजे में मॉक कर भी नहीं देखा ! जाओ, मुझे विज्ञानकी ओर बढ़ने दां
"
उधर
बीने अपने आराध्य मथुरामलको विजाया'इमीका नाम है दोम्सी १ दोस्त भूखा-पियासा बीहड़ में बैठा है और आप घर में मोजकी गुजार रहे हैं !