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वीरसेवामन्दिरमें वीरशासन-जयन्ती-उत्सव
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> = == स वर्ष बीरसेवामन्दिर परसाबामें श्रावण जिसमें सभाया पं. कृष्णचन्द्रभी जैन दर्शनशासी, पं.
कृष्णा प्रतिपक्षा और दुतीया ना० ९-१० धरणेन्द्रकुमारजी शाबी, पं० सुमेरगामी म्यायनीर्थ, पं. २ जुलाई मन् ११ दिन बुधवार-गुरुबारको माणिकसम्माजी न्यायाचार्य, चि० ग्रामीदेवी पोनी 4० माणिक
बीरशासन-जयन्तीका उम्मव गतवर्षसे भी चन्दकी, पं. काशीरामजी शर्मा, पं. ओमप्रकाशजी शर्मा, अधिक समारोहके साथ मनाया गया। नियमानुसार प्रभात पा० माईदयालजी, मा. कोशमप्रमानजी, पं. शंकरखामजी फेरी निकली, मंडाभिवादन इमा. मध्याह समय गाजेबाजे म्यायतीर्थ, पं० मुलाखालाकी समगोरिषाने भाग लिया और के साथ जलूस निकाला और फिर ठीक दो बजे जमेका कार्य अनाथालय बहसीक जैन कुमारों पारिके हमयमाही गायन प्रारम्भ हुमा । मनोनीत सभापति बाबू जयभगवानजी वकील हुए। पानीपतके कुछ अनिवार्य कारणोंकी बजामे म प्रासकने भाषण सबही अच्छे प्रभाव एवं महस्य । कारण श्री जैनेन्द्र गुरुकुल पंचकूला अधिष्ठाता पं० कृष्ण- सभाध्या ५० कृष्णचन्द्रजी दर्शन शास्त्रीने वीरशासन जयन्ती चन्द्रजी जैन दर्शनशास्त्रीके सभापतित्वमें जल्मेका कार्य शुरु का इतिहास बतलाते हुए इस बारको ग्वाम्मतौरमं बतलाया हा और वह दोनों दिन दोनों का बड़े भारी भानन्दके कि मुख्तार श्री पं० जुगलकिशोरजीने सबसे पहले सन् १९३६ माथ सम्पन्न हुमा । जसमें बाहरसे महारनपुर, रुड़की, में धवला और मिलोम्पपणती परसे वीरशासन जयन्तीकी देवबन्द, तिसा, मुजफ्फरनगर, मेरठ, देहली, सुमपत, अब तिथिको मालूम करके उसे सबसे पहले उत्सवक रूपमें दहापुर, जगाधरी, पंचकूला और मानौता प्रादि स्थानोंमे परिणन किया है और उसके प्रचारमें काफी प्रयल किया अनेक मजन पधारे थे, जिनमें बा. सूरजभानजी वकील, उसीका फल है किहम लोग बीरशासन जयन्तीके महान न्यायाचार्य. माणिकचन्द जी (मकुटुम्ब), 4. जयचन्द्रजी आदरणीय कल्याणकारी वियपको जाम सके हैं। और में प्रायुर्वेदाचार्य, बा. माईदयालजी बी०००, बा. दीपचन्दजी हर्ष है कि इस महान पर्वका प्रचार भी समाजमें अब पवेष्ट. वकील, पा. कौशलप्रसादजी, पं. धरणीन्द्रकुमारजी शासी, रूपमे होने लगा है। इसका माग श्रेय मुमनार साहब और पं० मसालाबजी.पं० सुमेरचन्दजी न्यायतीर्थ, बा. मोती- उनके वीरसेवामन्दिरको है। वीरवामभिरकी स्थापगमे रामजी फोटोग्राफर, ला. महामनजी, खा. इन्द्रसेनजी, पहले बीरशामम जयन्तीको कोई जानता भी नहीं था। ग. भगतसुमेरचनजी, पं. काशीरामजी 'प्रफुरिखत', श्रीमती कौशलप्रसादजी मेमेग हायरेक्टर भारतमायुर्वेदिक मिभगवतीदेवी और श्रीमती जयवन्तदेवी के नाम मुस्थ है। कास महारनपुरके भाषण तो बही भोजपूर्ण और असर पं० मालालजी समगोरिया प्रचारक जैन अनाथाश्रम देहबी कारक थे। उन्होंने अपना भाषण देते हुए यह भी बतलाया मय अपनी गायन मंडलीके पधारे थे।
कि मुख्तार साहबकी कृति 'मेरी भावना' ने तो संसारमें पड़ा ___ मंगलाचरण, तिथि-महत्व और भागत पत्रोका सार ही सम्माननीय स्थान प्राप्त किया है, उनमें प्राध्यामिक सुनानेके अनंतर सभामें भाषणादिका कार्य प्रारंभ हुमा, मायके कारण पांच हजार जम सम्हनदी किनारे एक