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* ॐ महम् -
वस्तुतत्त्व-सपाल
विश्वतत्त्व-प्रकांत
नीतिविरोषसीलोकव्यवहारवर्तक सम्पद। परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्पनेकान्तः।
वर्ष ४ । वीरसेवामन्दिर (सगन्तभद्राश्रम) मग्भावा जिला सहारनपुर किरण ९
कार्तिक, वीर निर्वाण मं०.४६८, विक्रम मं० १६१८
5 अक्तूबर
१९४१
लोक-मङ्गल-कामना क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः, काले काले च सम्यग्विकिरतु मघवा व्याधयां यान्तु नाशम् । दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्मभूज्जीवलोकं, जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभातु सततं सर्वसौख्यप्रदायि ॥ .
-जैननित्यागठ 'मम्पूर्ण प्रजाजनोंको भले प्रकार कुशलक्षेमकी प्राप्ति होवे - मारी जनता यथष्टरूपमे मुखी रहे-, बलवान राजा धार्मिक बने--धर्ममे अच्छी तरह निष्ठावान् (श्रदा एवं प्रवृत्तिको लिये हुए) होवे--अथवा धार्मिक गजाका बल. स्त्रब बढ़े (जिमसे अन्याय अत्याचारोका मुख न देखना पड़े), समय समय पर ठीक वर्षा हुश्रा करे-अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि,
और अनावृष्टि से किसीको भी पाला न पड़े-, व्याधियाँ-बीमारियों नाशको प्राम हो जायें, जगतके जीवोको दुर्भिक्ष (अकाल), चोरी और मरी (लेग-हेला श्रादि) मंक्रामक रोगोंको वा एक क्षणके लिये भी न सतावे, और जैनेन्द्र-धर्मचक।
-जिनेन्द्रका उत्तम मा-मार्दव-पार्जव-सत्य-शौच-संयम-तप त्याग-प्राकिंचन्य- ब्रह्मचर्यरूप दशलक्षणधर्म अथवा सम्य. ग्दर्शन-शान-चारित्ररूप रत्नत्रयधर्म--जो सब जीवोंको सुखका देनेवाला अथवा पूर्ण सुखका प्रदाता है वह लोकमें सदा अस्खलितरूपमे निर्बाध प्रवतें--उसमें कभी कोई बाधा न पड़े।'