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किरण ८]
महाकवि पुष्पदन्त
जिमने वीरचाल की पदवी धारण की थी। में शुरू की गई थी. उसी संवत्मग्में सामदेवसूग्नेि
३-धागनरेश द्वारा मान्यखेटकं लूटे जाने का अपना यशस्निलक चम्पू समाप्त किया था और उम जो उल्लेख पुष्पदन्तन किया है, वह भी कृष्ण द्विनीयकं ममय कृष्णतृतीयका पड़ाव मेलपाटीमे था । पुष्पदन्त माथ मल नहीं ग्वाता। यह घटना कृष्णराज तृनीय ने भी अपने ग्रंथप्रारंभक समय कृष्णगजका मलपाटी की मृत्युके बाद ग्वाट्टिगदेव के समय की है और इम में रहने का उल्लेख किया है। माथ ही इस प्रशस्तिम की पुष्ट अन्य प्रमाणों से भी हानी है । धनपालने उनकी चाल आदि देशोंका जीतनेवाला भी लिया है। अपनी 'पाइयलच्छी (प्राकृतलक्ष्मी ) नाममाला' में ऐसी दशान पुष्पदन्तका कृष्णतृतीयक समयमे होना लिग्या है
नि:संशयरूपम सिद्ध होजाता है। वह प्रशाम्त यह हैविक्कमकालम्य गाए अउणुत्तीसुत्तरं महम्सम्मि । "शक्नृपकालातीतसंवत्मरशतेष्वष्टम्बकाशीन्य • मालवणग्दिधाडीए टूडिए मगरखेडम्म ।।२७६।।
धिक पु गर्नपु अंकतः ८८५ मिद्धार्थमंघन्मगम्मर्गत अर्थात् वि० सं० १०२९ मे जब मालव नगेन्द्रने
चत्रमाममदनत्रयोदश्यां पाण्ड्य-मिहल-चाल-चरम. मान्यग्वटका लूटा, तब यह ग्रंथ रचा गया।
प्रभृनीन्महीपतीन्प्रमाध्य मलपाटीप्रबर्द्धमानगज्यप्रभाव ___ मान्यग्वटका किम मालव-गजान लूटा इमका श्रीकृष्णराजदेव मनि तपादपनोपजीविनः ममधिगत पता परमार गजा उदयादित्यक ममयके उदयपुर पंचमहाशब्दमहामामन्नाधिपनश्वालुक्यकुल जन्मनः - (ग्वालियर) के शिलालग्बम परमार गजाओंकी।
मामन्तचड़ामरणः श्रीमदग्किमरिगणः प्रथमपुत्रम्य जो प्रशस्ति दी है उसके १२ वें पद्यमे लग जाता है- श्रीमदहिगगजम्य लक्ष्मीप्रवर्धमानवसंधगयां गंगश्रीहर्षदेव' इति खाट्टिगदवलक्ष्मी ,
धागयां विनिमापिनमिदं काव्यमिनि।" जग्राह या युधि नगादममप्रतापः ।
अर्थान शक ८८१ मिद्वार्थमंवत्मरकी चैत्र मदन अर्थान हपदेवनं ग्वाटिगदेवकी गजलक्ष्मीको
त्रयोदशीके दिन जब श्रीकृष्ण गजदेव पाण्ड्य सिहल, युद्ध मे छीन लिया।
चाल, चरम आदि गजात्राको जीतकर मलपाटीम ये हर्पदेव ही धागनरंश थे, जो मायक (द्वितीय)
अपने बढ़ते हुए राज्यका प्रभाव प्रकट कर रहे थे या सिंहभट भी कहलाते थे और, जैमा कि पहले
नब उनके चरणकमलाकी मेवा करनेवाले महामामबताया जा चुका है, जिनपर कृष्णतृतीयने चढ़ाई की
न्ताधिपति चालक्यवंशी अफिम के पुत्र वरिगराज थी। वोट्टिगदव कृष्णातृनीय के भाई और उनग.
की गंगधागमे यह काव्य निर्माण किया गया। धिकारी थे।
पहले उक्त मेलपाटीम हो पप्पदन्त पहुँच थे, ४-महापुगगा की रचना जिम सिद्धार्थ मंवत्मर
सिद्धार्थ मंवत्सग्में ही उन्होंने अपना महापुराण १ दीनानाथधनं मदाबहूजनं प्री-फुल्लबल्लीवन,
प्रारंभ किया था और यह सिदार्थ श० म० ८८१ मान्याग्वेटपुरं पुदमर्गलीलाइ मुन्दग्म । धारानाथनरन्द्रकोपशिग्विना दग्धं विदग्धप्रियं,
ही था । मलपाटी या मेलाडिम श० ८८१ में कृष्णराज स्वेदानी वमति कायति पुनः श्रीपु पदन्तः कविः ।। थे, इमके और भी प्रमाण मिल हैं जो ऊपर दिये २ एपिमाफिया इंडिका जिल्द १ पृ. २२६
जा चुके हैं।