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किरण ८
महाकवि पुष्पदन्त
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एवं विधा तो निजराजधानी निर्मापयामीति कुतूहलेन। की भूमिका माश्लेषण करता है। छायालादग्छ मले पयोधी प्रचतसा पा लिखितेव रेजे ।३८ यहाँ पर कविने समासाक्ति अलंकारसे यह भाव
'स्वच्छ जलसे युक्त समुद्रों द्वारावतीका जो व्यक्त किया है-'जैसे कोई उत्कट इच्छा वालाप्रतिविम्ब पड़ रहा था, उससे ऐसा मालम होता था दक्षिण नायक, नवीन अनुगग-प्रेमसं सम्पन्न स्त्रीको कि जलदेवता वरुणनं, 'मैं भी अपनी गजधानीको छोड़ कर, उन्नत स्तन वाली किसी अन्य कान्ता स्त्री इसीके समान सुन्दर बनवाऊँगा' इस कुतुहलसं मानों का आश्लेषण करने लगता है उसी प्रकार चन्द्रमा, एक चित्र खींचा हो।'
नवानुगगसे युक्त प्राचीको छोड़ कर द्वारावतीकी द्वारावती नगरी की स्त्रियोंका वर्णन दखिये- उच्चस्तनी उन्नत, रत्न निर्मित निवास-भूमका पालचन्द्रायमाणैर्मणिकर्ण पूरैः पाशप्रकाशरतिहारिहारैः । नन करता था-समें प्रतिबिम्बित होता था । । भूमिश्च चापाकृतिभिर्विरेजुः कामाख्शाला इव यत्र बालाः३६ यहाँ समासाक्ति अलंकार तथा उसके द्वारा प्रकट
जहां पर स्त्रियां कामदेवकी अस्त्रशालाके समान होने वाली सम्भांगशृङ्गार नामक रसध्यान महदयशोभायमान होती थीं। क्योंकि स्त्रियाँ अपने कानोंमें जो मगिनिर्मित कर्णफूल पहिने हुई थी व चक्र- 'अनुराग', 'उदार कान्ति', 'उम्तनी', तथा आयुध विशेषकं ममान मालूम होते थे, जो सुन्दर 'कान्ता' शब्दके श्लषने, 'नक्तम' इस उद्द पक, विभावहार पहिन हुई थीं व कामदेवकं पाश-बन्धन रज्जुके सूचक पदन, 'प्राची' तथा 'रत्न निजामभूमि' शब्दके समान मालूम होते थे और जो उनकी प्रणय-कापम स्त्रीत्वन एवं 'इन्दु' शब्दके पवन इस श्लोक बैंक भौंह थी वे धनुषक समान मालूम होती थीं'। सौन्दर्य-वर्धनमें भाग हाथ बटाया है। ___ यहां उपमालंकारको विचित्रता और 'शाला' परिसंख्या अलंकारका एक नमूना देखिये'बाला' का अनुप्रास दर्शनीय है।
प्रकोपकम्पायरवन्धुराभ्यो-भयं वधूभ्यस्तरुणेषु पस्याम् । ____ रात्रिक प्रथमभागमें चन्द्रमाका उदय होता है करकालयकसौरभाणां, प्रभज्जनः पोरगृहेषु चौरः ॥ ४२ ॥ पूर्व दिशामें लालिमा छा जाती है, थाही देग्मे पूर्व जिम द्वारावती नगरीमें रहने वाले युवा पुरुषों दिशास आगे बढ़ कर चन्द्रमा आकाशमें पहुँच जाना को यदि भय होना तो सिर्फ प्रणयकापस कैंपते हुए है जिससे उसका प्रतिविम्ब द्वागवनी नगर्ग मणि- अधरोष्ठोंस शोभित अपनी स्त्रियोंस ही होता थानिर्मित भवनों में पड़ने लगता है' इस प्रकृतिक सौन्दर्य अन्य किमीम नहीं। इसी तरह नागरिक नगेंकं घगं का वर्णन कविगजकी अनूठी लम्बनीस कितना मुंदर में यदि कोई चार था तो सिर्फ पवन ही कपूर और हुआ है ? देखिय
कालागुरु चन्दनकी सुगन्धिका चौर था और कार्ड प्राची परित्यज्य नवानुरागा-मुपेयिवानिन्दुरुदारकान्तिः। चौर नहीं था।' उच्चैस्वनी रलनिवासभूमि, कान्तां समाश्लिष्यति यत्र नक्सम् ॥ यात यत्र नक्तम् ॥ यहाँ कविने यह बसलाया है कि म नगरीका
- जहाँ पर रात के समय उत्कृष्ट कान्तिवाला चन्द्रमा, शासन इतना सुदृढ़ और सुसंगठित था कि उस पर नूनन अनुगग लालिमास अलंकृत पूर्व दिशाको छोड़ बाहिरसे अन्यशत्रुओंके भाक्रमणकी जरा भी कर अत्यन्त उन्मत और मनोहर रत्न-निर्मित महलों माशंका नहीं रहती थी तथा वहाँ लोग भाजीविका