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किरण ६-७]
महाकवि पुष्पदन्त
गृहमंत्री के लिए उन्हींक महल में रहते हुए लिम्वा लिए भी । महापुराण श० म०८८७ में पूर्ण हुआ था गया था इसलिए कविने इसके लिए प्रत्येक मन्धिक और मान्यम्बेटको लूट ८५४ के लगभग हुई । इम अन्त में गणगण गणभरण(नन्नके कानोंका गहना)*' लिए इन मान बरमाकं बीच कविके द्वारा उपलब्ध विशेषण दिया है । इसकी दृमर्ग नीमर्ग और चौथो दो छोटे छोटे ग्रंथोंके सिवाय और भी अंक मन्धिके प्रारंभमें गणगणक गुण कीर्तन करने वाले जान की संभावना है। नीन मंस्कृत पद्य हैं - । इम ग्रंथकी कुछ प्राचार्य हेमचंद्रन अपनी 'दमीनाममाला' की प्रतियोंमें गन्धर्व कविकं बनाये हुए कुछ क्षेपक भी म्बोपज्ञ वृत्तिम किमी 'अभिमानचिन्ह' नामक प्रन्थशामिल हो गये हैं जिनकी चर्चा आगे की जायगी। काके मूत्र और म्वविवृत्तिकं पद्य उद्धृत किये हैं*। इमकी कई माटप्पण प्रतियाँ भी मिलती हैं । बम्बईक क्या आश्चर्य है जा अभिमानमंस और अभिमानचिह्न मरम्बना भवनम (८०४ क) एक प्रति एमी है जिसमें एक ही हो । यद्यपि पुष्पदन्नने प्रायः सर्वत्र ही अपने प्रन्थकी प्रत्येक पंक्तिकी संस्कृत छाया दी हुई है जो 'अभिमानमर' उपनाम का ही उपयोग किया है, फिर बहुन ही उपयोगी है।
भी यशोधरचग्तिके अंतम एक जगह अहिमागंकि उपलब्ध ग्रंथाम महापुराण उनकी पहली रचना (अभिमानाङ्क) या अभिमानचिह भी लिग्या है। है और हमाग अनुमान है कि यशाधारित मबस इससे बहुन मंभव है कि उनका कोई दमी शब्दों का पिछली रचना है। इसकी अन्तिम प्रशाम्त उमममय काश म्योपज्ञ टी कामहिन भी हो जा प्राचार्य हेमचंद्र लिखी गई है जब युद्ध और लूटकं कारण मान्यम्बटकी कममक्ष था।
५-कविके भाश्रयदाता दुर्दशा हो गई थी, वहां दुष्काल पड़ा हुआ था, लांग
महामान्य भरत भूग्वे मर रहे थे, जगह जगह नरकंकाल पड़े हुए थे। पुष्पदन्नने अपने दो श्राश्रयदाताओंका पल्लंग्य नागकुमारचरित इमसे पहले बन चुका होगा | किया है, एक भग्नका और दुमरं नमका । ये दोनों क्योकि उममें स्पष्ट रूपस मान्यवटका 'श्रीकृष्णगज- पिता-पुत्र थे और महागजाधिगज कृष्णगज (नृनाय) करतलनिहित नलवाग्म दुर्गम बनलाया है। अर्थान के महामात्य । गट्रकूट वंशका यह अपने ममयका उस समय कृष्ण तृनीय जीविन थे । परंतु यशोधर- मबन पराक्रमी, दिग्विजयी और अम्तिम मम्राट चरितमें ननकी कंवल 'वल्लभनग्न्दगृहमहत्त' था। इसमें उसके महामात्योंकी योग्यता और प्रतिष्ठा विशेषण दिया है और वल्लभनगेन्द्र गष्ट्रकूटांकी की कल्पना की जा सकती है । नम शायद अपने मामान्य पदवी थी । वह ग्वाटिगदेवकं लिए भी पिनाकी मृत्यु के बाद महामान्य हुए थे । यद्यपि उस प्रयुक्त हो सकती है और उनके उत्तराधिकारी ककेके काल में योग्यनापर कम ध्यान नहीं दिया जाना था. * कोडिएण गोतणहदिणयरामु, वल्लहणग्दिघरमहयरामु । फिर भी बड़े बड़े गजपद प्रायः वंशानुगत होने थे। णण्णहो मंदिर शिवमंतु मंतु, हिमाणमंक कह पृष्फयंतु। भग्नके पितामहका नाम अरायणग्या, पिनाका
-नागकुमार चरित १.२.२ * देग्यो देमीनाममाला १.१४४, ६६३, ..१, ८.१२.१७ । xदेश्वो कारंजा सीरीजका यशोधरचरित १०,२४,४७,और ७५ xदेन्बो यशोधरचरित । ०१.. पंक्ति ।