________________
क्या पर्दा सनातन प्रथा है ?
(लग्वि का-श्री ललिताकुमारीजैन पाटणी, विदुषी' प्रभाकर)
गोंके सामने जब यह प्रश्न उठता है कि स्त्रियां पाती है।
लोग यही समझते हैं यह प्रथा अनादिकालसं चलो kemonds पदो करें या न करें तो जो लोग एक ही साथ
पा रही है। कुछ से पहले भी पर्दा-प्रथाका अस्तिस्य समाज यह कह उठते हैं कि करें और ज़रूर करें' वे अपनी बातको
में था या नहीं यदि इस पर हम थोडासा भी विचार करें पुष्ट करनेके लिए सबसे पहले यही युति पेश करते हैं कि
मो घामानीसं समझमें पा सकता है। फिर हम भूलकर भी निगं प्राज ही कोई नया पर्दा नहीं करने लगी है जो इसके
यह न मान कि पी-प्रथा सनातन प्रथा है और इसे कभी करने या न करनेका सवाल उठाया जाय। पर्दा-प्रथा हमारे
नहीं छोड़ना चाहिए। बड़े-बूढ़े पुरुखामोंस चली भा रही है। हमारी मांने पर्दा
जहां तक इतिहास साक्षी है यह निस्संकोच कहा जा किया, दादीने पर्दा किया, बड़ी दादीने पर्दा किया और
मकना है कि पर्दा-प्रथा किसी भी तरह सनातन प्रथा सिद्ध पडदानियोंकी दादी पददादियोंन किया। इस तरह भागे
नहीं हो सकती । वंद, रामायण, महाभारत, इतिहास, पुराण बढ़ते ही चले जाइए। पर्वा करने का क्रम बीवमें कहीं न
और शास्त्र ही इस पातको सिद्ध करते हैं कि प्राचीन काल में टूटा और न अब टूट ही सकता है।
स्त्रियां पर्दा नहीं करती थीं, पुरुषों के साथ यज्ञमें बैठती थीं, नहीं कहा जा सकता ऐसी बंदगी युत्रियां देने वालोंका
होम करती थीं, शास्त्रों में पारंगत होती थीं, शालार्थ करती संमार कब और कहांसे शुरू होता है-इनकी पांच मान
थीं, लहाईके मैदान में जानी थीं, तलवार और बाणोंक जोहर पीढ़ी पहलेसे या इससे भी पहले । असल में हमारे समाजमें
दिग्वाती थीं, सभाओं में व्याख्यान देती थीं और धर्म प्रचार फैले हुए रीति-रिवाजों के सम्बन्धमें हम लोगों में ऐसी ही
के लिए देश-विदेशमें भी घूमती थीं। ग़लत धारणाएँ फैली हुई हैं जिनके कारण वे नष्ट नहीं
क्या लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा और कालीन पर्दा किया किए जा सकते | ग्राम लोग, उनके मामन जो पद्धति उनकी
था? क्या गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा घटकी पारमें ही एक दो पीदियों से चली आ रही होनी है उसको प्राचीन
थी? और सनातन मान बैठते हैं। और जब उसके दूर करनेका हमें जैनधर्मकी प्रसिद्ध मतियों और मादर्श वीराजनाओं सवाल खड़ा होता है तो एकदम पाग-बबूला हो उठते हैं- के जीवन चरित्रमें कहीं भी परेका नाम नहीं मिलता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई उनकी मोस्सी जायदानको जस्त सती जना, धारिणी, चन्दनवाला, सुभद्रा, राजुस, ग्रामी, करने या उनसे छीननेकी कोशिश कर रहा हो। यहां तक मुन्दरी, कलावती, जयन्ती प्रादि किसी भी सतीके जीवनकि, चूकि उनकी धारणाके अनुसार कोई रिवाज मनातन है, चरित्रमें पर्देका उस्लेख नहीं है, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में वे इसके सम्बन्धमे हलकीसी टीका-टिप्पणी भी बरदारत ऐसे ऐसे माहस और वीरतापूर्ण कार्य किए हैं, जिनसे पर्दानहीं कर सकते। यही बात आज जब कभी पर्वा-प्रथा उठाने प्रथाकी प्राचीनता पर एक प्रसाद चोट पड़ती है। किसीने का सवाल खड़ा होता है तो सबसे पहले मामने अपना जीवन सिंहनीकी भांति जंगलों में बिताया, किसीने