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वीरशासन-जयन्ती और हमारा कर्तव्य
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अहिंसाकं अवतार वीरप्रभुकी शामन-जयन्ती करके व्याख्यान देने-दिलान और भगवान महावीर अथवा उनके तीर्थप्रवर्तनको वह पाय तिथि निकट का गुणगान करने अथवा उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त प्रारही है जिस दिन आशा और प्रतीक्षाके हिंडोलेमें करनेका प्रदर्शन करने में ही समाप्त न होजाना झूलती हुई पीड़ित एवं मागेच्युत जनताने बड़े हरेक चाहिय; बल्कि हमे उनके सतशामनका विचार कर माथ वीरका वह सन्देश सना जिसने उन्हें दुःखोंसे उसे अपने जीवन में उतारने के लिये कुछ-न-कुछ छूटनका मागे बताया, दुःखकी कारणीभून भूलें सुझाडे, अमली जामा पहनानेका भरसक यत्न करना चाहिये, वहमोंको दूर किया, यह म्पष्ट करके बतलाया कि उनके नकशेकदम पर चलनेका श्रायोजन करना मच्चा सुग्व अहिंसा और अनकान्तदृष्टिको अपनाने चाहिये और दृढ़ संकल्पके साथ ऐसी प्रतिज्ञाएँ में है, ममताको अपने जीवनका अंग बनानमें है, करनी चाहियें जिनमें यह जाहिर होता हो कि हमने अथवा बन्धनसे-परतंत्रताम-विभावपरिणतिम छूटने अन्य दिनांकी अपेक्षा कुछ वसूमियनके माथ में है। साथ ही, मब आत्माओं को ममान बतलाते (विशेषनापूर्वक) उम दिन वीरशासन पर अमल हुए, आत्मविकासका सीधा तथा मरल उपाय सुझाया करना प्रारम्भ कर दिया है। साथ ही, वीर प्रभक
और यह स्पष्ट घोषित किया कि अपना उत्थान और उपदेशकी जा धरोहर हमारे पास है और जिस माग पतन अपने ही हाथ है, उसके लिय नितान्त दृमगें जनताको बाँटने के लिये उन्होंने वसीयत की थी, उम पर आधार रग्बना, सर्वथा पगवलम्बी होना अथवा मबको बोट देना चाहिये-जिनवाका मर्वत्र और दुसगेको दोष देना भारी भल है। इसीसे इम तिथि सारी जनतामें प्रचार हो, ऐमा आयोजन सामहिक का सर्वमाधारणक हित एवं कल्याणके माथ मीधा तथा व्यक्तिगतरूपसे करना चाहिये । इन दानों कार्यों सम्बन्ध है । जबकि अन्य कल्याणक तिथियाँ व्यक्ति- को करके ही हम वीर भगवान और उनके शामनके विशेषके उत्कर्षादिसे मम्बन्ध रखती हैं।
प्रति अपने कर्तव्यका ठीक पालन कर सकेंगे और
दानोंके सच्चे भक्त तथा अनुयायी कहे जा सकेंगे। यह पुगयतिथि, जिम दिन प्रातःकाल सूर्योदयके समय सर्वप्रथम वीर भगवानकी वाणी विपुलाचल केवाई सेवा-भक्ति नहीं बननी और न जयन्तीका
विना तदनुकूल आचरण और श्रद्धापूर्वक प्रचार-कार्य पर्वतपर विरी, श्रावण कृष्णा प्रतिपदा है जो इस
मनाना ही सार्थक कहा जा सकता है। वर्ष ता० ९ जुलाई मन् १९४१ को बुधवार के दिन
आशा है इम समयोचित सूचना पर पूर्ण ध्यान अवतरित हुई है । इस तिथिका प्राचीन भारतवर्षकी वषोरम्भतिथि और युगादितिथि होने आदिके रूप
देकर हमारे भाई इस वर्षकी शासन-जयन्तीको पहले
से अधिक सार्थक बनानेका प्रयत्न करेंगे। इस दिशा में दसग भी कितना ही महत्व है जो वर्षोंम 'मने
में किये गये उनके प्रयत्नों एवं नियमों आदिकी कान्त' भादि पत्रों में प्रकट किया जारहा है, यहां उस की पुनरावृत्तिकी जरूरत नहीं । इस समय बीर
सूचनाका हृदयसे अभिनन्दन किया जायगा । शासन-जयन्तीके सम्बन्धमें हमें अपने कर्तव्यको
___ निवेदकसमझना चाहिये । वह कर्तव्य श्रावण कृष्णा प्रतिपदा
जुगलकिशोर मुख्तार, के दिन प्रभातफेरी निकालने, जलूस निकालने, सभा
अधिष्ठाता-बीरसेवा मन्दिर, मरसावा