________________
तामिल भाषाका जैनसाहित्य
(मूल लेखक-प्रो० ०० चक्रवर्ती गम० .०, आई. ई. एम.) (अनुवादक-१० सुमरचन्द्र जैन दिवाकर. यायनीर्थ. शास्त्री. श्री० ए०, एल. एल० बी०)
[गन किरणमे प्राग ]
(२) चलामगि-यह ग्रंथ जैन कवि नीलामोलित्तेवर नशने अपने एक मंत्रीकी प्रजापति महाराज पास हम के द्वारा रचा गया है, जो कि प्रकटतया कारवेटनगरके श्राशयका पत्र देकर भेना कि मैं अपनी कन्या तिविनको अधिपति विजयका श्राश्रित था। हम ग्रंथक मंपादक दामोदर व्याह दनको नेयार । पांदनपरके नग्श प्रजापति यद्यपि पिल्लेकी गय हे कि यह कुछ महाकाव्यांक पूर्वका होना बियाधर नग्शक दाग प्रेषिन विवाह प्रस्तावमे पहले श्राश्चर्य चाहिये। उनके निर्णयका श्राधार यह है कि चलामणिके में पड़ गये, किन्तु उन्होंने विवाहका वीकृति दे दी। इनमें अनेक पदा याप्यमङ्गलकारकैके रचयिता अमनमागने यह बात बियाधगंक महागन अश्वग्रीवको मालूम हो । उदधृत किये है।
जनक प्रधान राम प्रजापान और मयंपमाके पिता दीना चलामणिका अाधार जगमग-गंचन महापुराणकी । मम्राट अश्वग्रोवन नविन पिनाम नयन कर मांगा। एक पौगारगक कथा है। कथाके मूलनायक निविट्टन हैं. विद्याधर नग्शक कागम दर कर गजा प्रजापानने तत्काल जो जैनपरंपगमें माने जाने वाले उन नौ बासुदेवोममें एक ही कर दे देने की अामा दी, किन्त उनके पनिविनने हम हैं जिनमें भारत-प्रख्यान कृष्ण भी एक है। काव्य सौंदर्यम स्वीकार नहीं किया। उन्होंने विद्याधर महारानकी गजानना चलामणि चिंतामणिके ममान है। इसमें कुल १२ मर्ग में कार कर दिया और दुतको यह कह कर वापिस लौटा और २१३१ पदा हैं। कथा हम प्रकार है। पोदनपर दिया कि अबम कोई कर नही दिया जायगा। अश्वग्रीवके. राजधानी वाले सुम्मैदेशक नरेश प्रजापतिकी मृगपनि दरबारका भक्त एक विद्याधर मंत्री हम जिदी क्षत्रिय तरुण (मृगावती?) और जयवती नामकी दो मुख्य रानियों थीं। सिविनको किमी छलसे मारना चाहता था। उसने सिंहका कथानायक निविहन् महादेवी मृगपतिका पुत्र था और रूप धारण किया और प्रजापति नरेशके राज्य सुरमै विजय जयवतीका पुत्र था। दोनों में विजय बड़ा था। पशुओंको उमने ना किया। प्रजापति के पुत्र निविहन और विजय और तिविन् पूर्णतया बलराम और कृष्णके समान विजय सिंहको मारनेके लिये भेजे गये। महका रूपधारण थे। इनमें पहिला शुक्लवर्ण और द्वितीय कृष्णवर्ग था। करने वाला विद्याधर मंत्री चालाकीसे तिविनको एक गुफा एक भविष्यवक्ताने महाराज प्रजापतिसे कहा कि तुम्हारा में ले गया । निविदानने मिहका गुफामें पीछा किया। पुत्र तिविट्टन् शीघ्र ही एक विद्याधर-राजकुमारी विवाह वहाँ एक अमली मिह था जिसने मायाके मिहको खा लिया करेगा ।रादानू परके विद्याधर नरेशकी स्वयंप्रभा नामकी और वा निविनको भीवाना चाहता था। तिविन इससे एक अतीव सुन्दर कन्या थी। एक भावण्य वक्ताने इस भयमीन नही हना। अमली मिहके मुंहमें विद्याधर सिंह विद्याधर नरेशसे भी कहा था कि तुम्हारी कन्या स्वयंप्रभा गायब हो गया था दम लिये उसने अमली मिहके मस्तकको गोदनपुरके, क्षत्रिय राजकुमारमे विवाह करेगी। विद्याधर कदा और उसे मालताम मार डाला1 स्वयंप्रभाकपता,