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किरण ४]
गोम्मट
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अथवा यह मान लेना चाहिये कि बाहुबलि प्राचीन मूर्ति 'गोम्मट' कहलाती थी, मिस्टर पै पाज अपने कालसे 'गोम्मट' कहलाते थे । यदि वे दूसरी बातको एक दूसरे निष्कर्षका विरोध कर रहे हैं, जिसमें कहा अंगीकार करें तो उनको वे प्राचीन वाक्य दिखलाने गया है कि मूर्ति ई. सन् ५८५ या ९९३ तक 'गोम्मट' पड़ेंगे जिनमे 'बाहुबलि' को 'गोम्मटेश्वर' कहा गया नामस प्रमिद्ध नहीं थी। वे इस बातको भूल जाते हैं है। वे कह सकते हैं कि भरतने पौदनपुर में 'गोम्मट' कि भरतकं समयकी एक घटना ( fact ) को साबित की मूर्ति निर्माण कराई थी; परन्तु इसके लिये कोई करनेके लिये १६ वीं सदीक एक रिकार्डका इस्तेमाल भी समकालीन साक्षी नहीं है, और वे दोहग्यके, जो कर रहे है। ईमाकी १६ वीं मदीके मध्यम हुए हैं, वर्णनका ५ एक निषेधात्मक माक्षी और मौन रहनेकी
आश्रय लेगहे हैं । इस बातसे, कि 'रन्न' ने 'कुक्कटे- बहसमें कुछ भी माबित नहीं होता। श्वर' नामका तो उल्लंग्य किया है किन्तु 'गोम्मटेश्वर' ६ हमें गोम्मटमार' और 'त्रिलोकमार' के रचं का नहीं. कुछ भी माबिन नहीं होता, क्योंकि यह जान की ठीक तिथियोका पता नहीं है और न उन्हे कोई विधायक साक्षी नहीं है । यदि हम अपनी संग- प्राप्त करने कोई निश्चित माधन उपलब्ध हैं । म्वयं तता और टीकाकारोंकी त्याख्याओं पर ध्यान दें तो मिस्टर पैने 'गोम्मट' नामके पल्लेख या अनुल्लम्ब गोम्मटमार' में भो 'बाहुबलि' का निर्देश करनेके परम इन तिथियोंको प्रस्तुत किया है, और यदि हम लिये 'कुक्कुटजिन' का उल्लंग्व तो है परन्तु 'गोम्म 'बाहुबलि' के नामके तौरपर 'गोम्मट' शब्दके इम्नटेश्वर का नहीं । यदि दाग्य चामुण्डगयका माल-ममयकी अवधियोंको निश्चित करनेके लिये 'गोम्मट' के नामसं उल्लंग्व नहीं करता है, तो क्या इन तिथियों की सहायता लें ना हम दुष्ट परिधिक हमाग यह कहना न्यायमंगन होगा कि ई० सन भीनर विवाद करनेवाले होगे। १५५० तक चामुण्डरायका नाम 'गोम्मटगय' बिल्कुल ७ हमारे पाम इस बानका कोई प्रमाण नहीं है नहीं था । वाम्नवमें मिस्टर पै के नोटोंमेंमें एक कि नमिचन्द्रने चामुण्डगयको गोम्मट' नाम दिया इसी अभिप्रायको सूचित करता है।
था और मुझ भय है कि स्पष्ट तथ्य यहां थोड़ा सा ३ पुन: यह एक निषेधात्मक माक्षी और मौन नाड़ा मगड़ा जारहा है। जो कुछ हम जानते हैं वह रहनके रूपमें बहसका केस है, जिसमें कोई बात माबित यह है कि नेमिचन्द्र 'गोम्मट' को 'चामुण्डगय' के नहीं होती । जैमा कि मैंने ऊपर सुझाया है, 'गोम्मट' नामके तौर पर उल्लेग्वित करते हैं; और इमस इस चामुण्डगयका निजी घरेलू नाम मालूम होता है और वस्तुस्थितिका निषेध नहीं होता कि उनका ऐमा नाम ऐसा होनेसे हर जगह उसका विधान नहीं हो सकना पहिलेम ही था। यह बान कि चामुगडगयने मृर्नि और नहीं रिकार्डो (लेख्यपत्रों) का यह दावा है कि परमे यह नाम प्राप्त किया कंवल तब ही म्वीकृत की वे चामुण्डरायके सब नामोंकी गिनती कर रहे है। जा सकती है जब कि पहिले यह माबित कर दिया __४ दोहय्य (ई० मं० १५५० ) के 'भुजबलि- जाय कि बेल्गोलकी मूर्ति की स्थापनाम पहले बाहुशनक' के आधार पर यह मानकर कि पौदनपुरकी बलिका एक नाम 'गोम्मट' था । मन्मथ = गोम्मट