________________
३२२
अनेकान्त
[वर्ष४
ग्वाक डालने । या उसके मनीयका लूटन ! उक्गधिकारी, माना गजिनाका प्याग-दुलाग हूँ, ___ मुनिगज अयनने मन दग्या, मव समझा ! मा ?" यक्षदनकी अनर्थकारी लालमान उन्हें करुणाई कर गुरुदेव अयनने कहा-'यह मब मै जानता हूँदिया। वे उसके द्वारा हानबाली भयंकर-भूलकी यनदान । लकिन श्रमलम तुम्हारी माँ मित्रवनी है, चादरमे छिपी जघन्यताका दग्यकर, मंमारकी दशा जिला नहीं । गजिलाने तुम्हें पाला है, और पाल पर दंग रह गए । मनम एक विचित्र श्रोधी मी उठी। कर गजपुत्र या युवराज बनानका मौभाग्य दिया है।"
और यह निश्चय कर कि मेरे द्वारा इसका भला यनदत्तको यकीन ना हया; क्योंकि विश्व विरक्त हो सकता है, यह पापमं टल सकता है । बाल ही माधु वचन थे । लेकिन खुलामा जानने की इच्छा नो ठ
शान्त न हुई । पछने लगा, हाथ जोडकर-महाराज । ____ 'ठहग. यत्नदत्त । कहाँ जा रहे हो, जहाँ जा रहे
यह मब हुआ कैम १ हा, वहाँ न जाओ । जिम चाह रहे हो, उम न
कैन हा ? जानना चाहते हो? अच्छा सुना।'चाही वग्नः अनर्थ कर पछतानकं मिवा और कुछ हाथ न पाएगा।
वनिकका नाम-नक । स्त्रीका धूमा। धूमाका यनदन का गया । चरणाम मिर भृकाने हुए कुछ कहनं जा ही रहा था कि-नपानिधि फिर कहने
पुत्र-बन्धुदन । शादी बन्धुदत्तकी होचुकी थी. स्त्री लगे
का नाम था मित्रवनी । जो लतादी पत्री थी। 'यह पाप नहीं महापाप होगा-यक्षदत्त । माँ के
ये मब रहने हैं-मृनकावती नगर्ग । मनीवको लूटना, बेटेकं लिा घार शर्मकी बात है ! नवानीकं निनाम मैंकड़ों भले करते है लोग। "मा कभी नहीं होता ! मित्रवनी-जिमका रूप तुझ भृलाकी वजह होती है-मनकी हिलारं ! दिल के इननी गत बीत, एक भिग्वागेकी नरह यहाँ नक अरमान, ताक-झांक ! और अनुभव हीनता ।.. घसीट लाया है, वह मित्रवती-तरी माँ है, मी मॉ बी इन दिनी बड़ी प्रिय लगनी है । जब कि बड़ाके है ! उसीने तुझे नौ महीने पेटमे रखकर नरक-री अदब कायदेकं बन्धनोंक सब उसकी मृग्न देखना वंदना मही है।'
भी कम नसीब होता है। [श्राज जैमा तब म्बीयक्षदा गनके वक्त माधुको मम्भापण करने म्वातंत्र्य नहीं था। न माता-पिनाकी इतनी अवज्ञा हुप सुनकर ही आश्चर्यान्वित था, यह जो सुना ना ही थी कि वे बैठे देग्या करें और मियां बीबी अपनी एकदम सन्नाटेमें आगया ! मिनिट भर गुम-सुम बड़ा गप-शपमें मशगूल रहें । तब शायद शर्म ज्यादह थी, रहा-पत्थरकी अंकित मूर्ति की भाँति । फिर चैत- हेकड़ी कम ! ..] न्यना पाकर. चरणोमे बैठने हा अपराधीकी तरह उन्हीं दिनो मित्रवनीका रह गया-हमल ! यानी बोला
गृढ गर्भ ! और बन्धुदन गया उन्हीं वनों परदेश ! 'वह मेरी माँ है ? जो पुन दरिद्रोकी झोपडीमे व्यापारके लिए ! पिता श्रादेशको लेकर ! रहती है .. मैं जो महाराज यनका पुत्र. राज्यका घरमें रह गई-मासु और बह । मासु शायद