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अनेकान्त
[वर्ष ४
बच्चा ऊपर लाया गया। गनी न दग्या ना गम घरस बहिष्कृत, अपमानित, पद दलित मित्रवती गेम में मुम्कग उठी।
____इम सुयोगको न ठुकरा मकी। और आज तक इमी __निःसन्तान थी। बन्च के लिए जीत मरती थी। झोपड़ीम संकट के दिन बिता रही है। गंज स्वप्न में देग्वनी-बच्चा हो गया है। पुकार x x x x रहा है मुझे--ओ, मां।'
तपोनिधि अयनने कहा-'समझा यक्षदत्त । और श्रोग्य खुल जानी। दिन का दिन गने मित्रवती तंग मां है, जिस पर तू कुदृष्टि डालन जैसे बीनना । महागज भी कुछ कम चिन्तित न थे । पर, अनर्थको बढ़ा जा रहा था । और हां. वह रत्न कम्बल अब ‘भाग्य ।' कह कर मन्नाप कर लेने के आदी हो जिसमे त लपटा हुआ था, आज भी गज भवनम चले थे।
मौजद है, जाकर उस देख। और पछ महाराज बच्चा था--सुन्दर । दानाको भला लगा। बा- यक्षमे कि क्या वे वास्तवमै तेरे पिता हैं।' कायदा सं दत्तक पुत्र ठहरा दिया गया। नाम यक्षदत्त श्रद्धाम नत मस्तक हुआ, बार-बार रग्वा--यक्षदत्ता
प्रणाम बन्दना कर, उलटे पैगें लौटा-गज-महलवी
आर। कपड़े मफ कर मित्रवती जो लौटी ना दम्बनी मन प्रात्म-ग्लानिम भर रहा था । मोचना है-बच्चा लापता।
जाता-'अगर गुरुराज दयाकर यह उपकार न करन 'हाय ।'-कहकर गिर पड़ा। मानावी ममता
ना कितना अनर्थ होना।' जो एमके पास थी। फिर बच्चेक लिननी गई. कितना क्या किया। यह श्रामोनीम समझमे श्रान शयन-कक्षम।वाली बात है, लिग्वना व्यर्थ ।
महागज यक्ष और पटगनी गजिला दोनों ___ ग़रीबोंमें हृदय हाता है, दृमरकं दुग्यका अध्ययन विश्राम कर रहे थे। कि अचानक दोजा खुला । करनेकी क्षमता भी। जितनी बन सके उतनी मंवा मामन-यक्षदत्त । करनकी लगन भी । यथार्थता यह कि उनमें बनिम्बत महागज बोले, स्नहम भाई-स्वरम-'श्राश्री, धनिकोंके 'मनुष्यता की मात्रा कहीं ज्यादह होती है। आश्री गजकुमार । इतनी रात बीते पानका कारण ?
शायद वह देव-मंदिरका पुजारी था-दरिद्र, यक्षदत्त चुप। साधन-विहीन । दयास उसका हृदय भर गया । यह मनम क्रोध उबल उठा है। मित्रवतीकी गीली आँखें, और करुण क्रन्दन-न राजिलान कहा-'बेटा ! सोय नहीं अभी ? क्या देख-सुन सका। आगे बढ़कर बोला
कुछ तबियत खराब है ?' ____ 'बहिन ! अधिक न रो श्री, मुझे दुख होता है। यक्षदत्तने ममता-हीन होकर कड़े ग्वग्मे उत्तर जो होना था, हो चुका । चलो-मेरी झोपड़ीमे रहो। दिया-'हां ! मैं यह पूछने आया हूँ कि मुझे मालम और सुखसे जीवन बिताओ!'
होजाना जाहिए कि व.म्तवम मरे माता-पिता कौन