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अनेकान्त
(वर्ष ४
राजाको एक अशुभ म्वप्न निग्चाई निया कि उच्च प्राकाम भोग गये उनके दुःन्यों तथा कष्टोंका वर्णन है। चन्द्रमा पृथिवीकी भोर गिरा और उसका प्रकाश और दीक्षि चौथे अभ्यायमें नवीन नरेश यशोमतिका वर्णन है। नष्ट हो गये। राजाको भय उत्पन हया कि यह किमी अभयचि और अभयमतीकी कथा भी बताई गई है, जो कि भापत्तिका घोतक है. वह अपने वन-दाग पहिलेम पूर्वभगम यशोधर और गजमामा चन्द्रमती थे। अंतमें जब ही मनिन किये गये अनिष्टके उपायको जानना चाहता था। गजा माग्दिनको पूरी कथा ज्ञात हुई तब उनकी पाकांक्षा महाराज द्वारा राजमाताप पूछ जाने पर यह सलाह मिली इस पवित्र अहिमा धर्मक विषयमें विशेष जानने की उम्पस कि इस प्रकारके मंकट निवारणकं लिय कालीके समक्ष
कोई और व नगरकं ममीपवर्ती उद्यान में विराजमान गुरु महाप्राणीका बलिदान करना चाहिय। नरेश अहिंसा धर्म गजके ममी लाए गये जहां जाकर राजा पवित्र अहिंसा धर्ममें सरचे पागधक इमलिय नहोंने शवलिकोपीका दाखिन होगये । इसके अनंबर राजाने स्वयं कानाको पशुबलि किया। अत: गजमाना और महागजने एक समझौता किया
चहानका त्याग ही नहीं किया किन्तु अपनी प्रजाक भाग यह जिमके अनमार महागजको कालीके लिये चावलके घाटेके
धोषणा करा कि अब इस प्रकारका बलिदान नहीं किया बने हुप मुर्गेकी बलि नहाना स्थिर हा। इस तरह कालीके.
माना चाहिय । इस प्रकार गजानं धर्म नया मंदिरकी पूजाको खिये कृत्रिम मुर्गेका बलिदान किया गया । इस तरह मॉकटी अपने राज्यभरमें ऊँगा उठा दिया तथा अधिक पवित्र कोटि का प्रारंभ हया । इतने में महागनीको जब यह बिनित हा में ला दिया था। नामिन्न भाषाकं यशोधर काम्यकी यह कि उपके चरित्रको गजा नथा राजमातानं देव लियानव कथा है. जिपके विपिनाक मम्बन्धम हमें कछ मालूम नहीं यह उन दोनोंक प्रति प्रणा काने लगी और वेनमें उमने है। यह कथा संस्कृत माहिग्यमें भी पाई जाती है। मांस्कन विषके द्वारा दोनोंक प्राण लेने में ममलता प्राप्त की। उस भाषाकं यशोधर काव्यमें यही कथा वर्णिम है, परन्तु यह प्रकार राजा और गजमानाम निपटनं पर इम दृष्टा गनी स्पष्ट नहीं मालूम कि नामिल अथवा संस्कृत काव्याम कौन अमृतमतीने अपने ही पत्र यशोममिको अवम्लिदेशका नरंश पहिलंका है। बनाया। कालीके लिये बलिदान करनेके फलम यशोधर यह तामिल भाषाका यशोधर कान्य वर्तमान लग्वकके
और राजमाता चन्द्रमती लगातार ७ भवों में हीन पश म्वर्गीय मान्यमिनटी बैंकट ग्मन पायंगर द्वारा सर्व प्रथम पर्यायों में उत्पाहोने रहे।
छपाया गया था। दुर्भाग्यम वह संस्करण बनम हो गया है नाम अध्यायमें यशोधर महागज और उनकी माताका और इमलिये पाठकोंको वह हालमें नही मिल सकता है। अवन्य पण नथा पनी पर्यायों में उत्पक होमेका नया वहां
क्रमशः
__ "जहां लुब्ध इन्द्रियां जमा होकर भीड़ नहीं करती, निवृत्ति-मुख मार्ग प्रेय प्रिय ) न होने पर भी श्रेय वहीं मनको नई मुष्टि करनेका अवसर मिलता है।" कल्याणकारी) है। उसी मार्ग पर जो चलने हैं, वे वास्तवमें
संयम मनुष्यको मुशोभित करता है. और स्वतन्त्र स्वयं भी मुखी होते हैं और अपने उज्ज्वल रष्टांतद्वारा बमाताहै।"
औरोंके दुखोंका भार भी--मर्वथा नहीं तो बहुत कुछ"जिम मार्गपर पलनेमे मारे प्रभावों की पूर्ति हो जाती हल्का कर देते हैं।" है, अर्थान प्रभावका अभावरूपमें बोधनहीं होता है, वहीं
-विचारपुष्पोद्यान