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अनेकान्त
[वर्ष ।
घबराकर कई तरह के ऐसे टैक्स बढ़ा दिए हैं जो विवाह न नहीं पाता कि विवाहका तस्व निचोरकर इस पैसे ही पैसेमें करनेवालोंको चुकाने पड़ते हैं। हमारे भारतमें गवर्नमेंटकी किस तरह रख दिया गया। आजकल देशमें किसके पास तरफसे यदि टैक्म नहीं है तो समाजकी तरफमे उससे भी पैसा है ? पैसा जो था वह तो सब विनायतोंको जा चुका जबर्दस्त टैक्स लगा रहता है, जिसके कारण हरएक स्त्री- और सोनकी चिड़ियाका केवल खाका ही खाका रह गया। पुरुषको विवाह करना ही पड़ता है। अगर वे कदाचित जिनके पास अपना गुजर करनेके लिए भी पर्याप्त पैसा न विवाह न करें नो समाजमें रह नहीं सकते । समाजके साथ
हो वे विवाहमें भरपूर पैसा कहांस खर्च कर सकते हैं। यह
हो व विव अगर उनको चलना है तो विवाह उनके लिए अनिवार्य हो अवस्था मध्यम स्थितिके लोगोंमें अधिकतासे देखी जाती है। जाता है। इधर समाजकी विवशता और उधर विवाहकी उंची श्रेय
ऊँची श्रेणीके लोगोंको तो ये कठिनाइयां इसलिए नहीं मालूम
होती कि उनके पास काफी पैसा रहता है और वे हर एक कठिनाइयां? करें तो क्या करें ? अन्त में विजय समाज ही की होती है और राजी-बेराजी उनको विवाहके बन्धनमें
अनावश्यक रीतिको भी प्रासानीके साथ अदा कर सकते हैं।
उनके घरमें चाहे कितने ही अनकमाऊ और निकम्मे बैठे-बैठे बंधना ही परता है। नवयुवकोंके सामने विवाहकी जो कठिनाइयां पैदा हो रही हैं उसका मुख्य कारण यह है कि
खानेवाले हों, पुरखाओं-द्वारा कमाई हुई धन-दौलत पर
सब ऐशो-आराम भोग सकते हैं। निम्न श्रेणीके लोगों में हमारे देशमें पुरुषोंको त्रियों की बोरसे मार्थिक सहायता
यह देखा जाता है कि विवाह होते ही एकके बजाय दो कतई नहीं मिलती है। जिम घरमें चार महिलाएं और एक
कमाने लगते हैं और घरकी स्थिति पहलेमें अच्छी तरह पुरुष है उसमें अकेला पुरुष कमाता है और पांच व्यक्ति
संभाल ली जाती है। दोनों खेतमें काम करते हैं. दोनों उस पर बसर करने वाले होते हैं। उस पर भी मज़ा यह
पत्थर ढोते हैं, दोनों मजदूरी करते हैं, दोनों जंगलमें गायें कि महिलायोंको एक एकमे एक बढकर जेवर भी चाहिए,
चराते हैं, दोनों कपड़ा धोते हैं, दोनों कपड़ा सीते हैं । एक देश-कीमती कपई-लत्ते भी चाहिए और कुरीतियोंको अदा करने के लिये बेशुमार फिजूलखर्च भी चाहिए। ऐसी स्थितिमें
दूसरेकी कमाई पर विठाईस बसर नहीं करता है। किन्तु
मध्यम स्थिति और ऊँची श्रेणीके लोगों में इसके बिल्कुल बेचारे पुरुषोंकी बड़ी दयनीय अवस्था हो जाती है और वे
विपरीत देखा जाता है। अफसोसकी बात है कि यदि किसी गत दिन कोल्हूके बेलकी तरह रुपयेके पीछे-पीछे चक्कर लगाते रहते हैं। हम कहते हैं कि गृहस्थ जीवनमें बड़ा
घरमें मार्थिक कष्टसे महिलाएँ उद्योग-धन्धोंसे अपना काम पानन्द और सुख है। प्रापही बताइए क्या यही प्रानन्द
चलाने लगें तो उनको अनादरकी दृष्टिसे देखा जाता है। और मुग्ध है ? जिन पर ऐसी प्राफ़त गुज़री है या गुजर रही
हमारे घरोंकी और घरवालोंकी इसीमें शान है कि महिलाएँ है ही जानते कि इसमें प्रानन्द याखासी पर्दे की बीबी बनकर पुरुषोंकी कमाई धम-दौलतपर भोगहालतको देखकर आजकलके नवयुवक विवाहसे बेतरह घबरा
विलास करती रहें और अपनी जिन्दगीको बिल्कुल अकर्मण्य रहे हैं। इसके अलावा जो यदि विवाहके क्षेत्रमें कदम उठाना कर डालें। किसी कविने कहा है-- भी चाहें तो पहले यह देखें कि विवाह करनेके पहले उनके रोगी चिरप्रवासी परामभोजी परवसथशायी। पाम भरपूर पैसा भी है या नहीं, जिनके पास भरपूर पैसा यजीवति तन्मरणं यन्मरणं सोऽस्य विश्रामः ॥ नहीं है तो विवाहका नाम भी नहीं ले सकते । समझमें अर्थात्- रोगी, बहुत देर तक विदेशमें रहने वाला,