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किरण ३ ]
भ्रातृत्व
और उस शैतान भीतरका शैतान भी जागकर उठ कैसे कहा जा सकता है ? रालती मनुष्यसे ही तो होती है । वे मनुष्य हैं, भूल कर सकते हैं। असल में उनका यह इरादा हरगिज न रहा होगा। कमसे कम मुझे इस बातका पूरा यकीन है ।'
खड़ा हुआ ।
वसुन्धरीने उसकी ऐसी दशा देखी तो दंग ! बड़ी घबराई, मुंह अचानक निकला - 'धोग्वा !'
और चाहा कि उल्टे पैरों लौट कर अपनेका नरपिशाच की कुदृष्टि बचा सके । पर, यह सम्भव नहीं था। वह जब तक ज्योंकी त्यों खड़ी रहकर कुछ सोचे, कि तब तक कमठकी क्रूरताने उसे आलिंगन में भर लिया । वह विवश ।
गई, चीखी, चिल्लाई और कहा - 'तुम मेरे पिता तुल्य हो, मैं पुत्री हूं तुम्हारी, मुझे छोड़ दो ।'
लेकिन बेकार !
कमठ उसका सतीत्त्व लूटकर हो रहा, पागल जा हो रहा था वह उस समय ।
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(५) ममभूति लौट आया है, महाराज के साथ साथ | घर आकर अपने पीछे होने वाले अनर्थस वह अनभिज्ञ नहीं रहा । वसुन्धरीने सब कुछ खुलासा खुलामा कह दिया। इस श्राशास और भी, कि वह अपने भैय्याकी इस घृणित कुचेष्टा के प्रति प्रतिकारात्मक कुछ करें। लेकिन ?
मरुभूति स्नामांश ! अन्तरंग उसका दुःखसे भर जरूर गया, मानसिक पीड़ा भी कुछ कम न हुई । पर, भैय्या का ध्यान आया कि वह सब कुछ भूल गया। सोचने लगा- 'भ्रातृत्व दुनिया में एक दुर्लभ वस्तु है, स्वर्गीय सुख है । उसके पवित्र बन्धनमें, उस महिमामय भैय्या के खिलाफ मैं खड़ा होऊँ, जो पिताके बराबर है | न, यह नहीं । उन्होंने अगर ऐसा किया है, तो यह उनकी गलती है, भूल है । अपराध
वसुन्धरी बैठी आँसू बहा रही थी । मरुभूति के आगे दो रास्ते हैं वह स्त्रीकी सम्मानरक्षाको तरजीह दे या पूज्य भैय्या के प्रेमकां ?
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उठ उठते उसने कहा, जैसे मन ही मन फैसला कर चुका है - 'देखो जो होना था, हो चुका। अब खामोश रहो, इसका जिक्र भी जबान पर न लाभो, समझी "
और चल दिया ।
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महागजने सुना एक दम गर्मा गए । पहले से ही कमठ से खुश न थे। उसकी बुराइयों पर रोज ही ध्यान देते, जब मौका मिलता। पर, ऐसी बात इससे पहले उनके कानों तक नहीं आई ।
मभूति वहाँ मौजूद नहीं था, महाराजन उसे बुलाया ।
बाले - 'तुम्हारे पीछे क्या किया है उस दुष्टने, जानते हो ?'
'किसी दुश्मनने बदनामीकी ग़रजसे यह खबर फैलादी है, भैय्याने कुछ नहीं किया, महाराज ।'मरुभूतिने आत्माको उगते हुए, नम्र शब्दों में व्यक्त किया ।
'हूं ! नगर में उससे बड़ा और कोई तुम्हारा दुश्मन जीवित हो, ऐसा मैंन नहीं सुना । मरुभूति, इस विषय में मैं तुम्हारी बहुत मानता हूँ, अब और मान सकूं, यह ग़लत है।'
'लेकिन भैय्या. "