________________
किरण ३ ]
भ्रातृत्व
कलहंस दंग ! चकित !! स्तब्ध !!!
हो उठा। समझाने के बजाय चुप करनेकी समस्या फिर ऊँधेसे गलेस बोला-'क्या कह रहे हो सामने आगई। दोस्त ! होशमें तो हो, न ?
कमठ राता ही रहा । वह बोला-'जो कह रहा हूँ वह सत्य है, उसमें देर बाद बोला-'जब तुम भी मुझे मरनेकी बेहोशीकी गन्ध तक नहीं। पर असल में मैं हूं बेहोश मलाह देते हो, तो अब मैं मर ही जाना चाहता हूं।' ही। पता नहीं, कब सूर्य निकलता है, कब रात होनी और वह फिर हिचकियाँ लेने लगा। कलहंस है। वह जालिम मुझे मारे डाल रही है।' चक्करमें पड़ा है। बोला-'मरनेवी बात क्या है, जो ___ कलहमने बुजुर्गवा ढंगस डाट बताई-'यह मरते हो ? मरें तुम्हारे दुश्मन | पर ऐमा करा-' शब्द कहते तुम्हें शर्म नहीं आती-कमठ ! वह गते-गेते वह फिर बात काट कर कहने लगातुम्हारी कौन लगती है, जानते हो इस ?-बेटी !
'बम, समझाा मत । मैं 'समझ' नहीं, 'मौत' चाहता अनुज महोदरकी स्त्रीपर कुदृष्टि ? इतने गहरे पापमें
हूँ। मौत ही आजसे मरी दोस्त है। वही मेरी डूबना चाहते हो ? छोड़ दा इम दुराग्रहका, नहीं, ।'
मुसीबतके वक्त मदद कर सकती है। तुम दोस्त बन __ पूरी बात सुननकी ताब न रही, तो बात काटकर
कर मुझे धोखा देते रहे। मेरी ममीबत के वक्त मझे कमठ बोला-'सम्भव नहीं है, यह अब मेरे लिए
ममझाकर, और भी जलाने में मजा ले रहे हो। तुम्हें , कलहंस ! मैं अब शरीर छोड़ मकता हूं, पर उम
मेरे दुखमें जग भी दुग्य नहीं हो रहा।' नहीं । वह मेरी जीवन मरणकी ममम्या बन गई।' __ कलहम, कमठके उत्तरमे खुश न हो सका।
बात कलहंसके दिलमें फांसकी तरह चुभ
गई तिलमिला-सा गया। हार कर बोला-'तो क्या असल में वह कुढ़ रहा था___ कमठकी नीच मनोवृत्तिपर । कहने लगा- करूं ?' 'तुम्हारे मरजानेसे दुनियाका कोई काम रुका न पड़ा वह बोला-'मेरी जिन्दगी चाहते हो तो उसस रहेगा, इमका विश्वास रखो। जब कि तुम जिन्दा मुझे मिला दो।' रह कर भी किसी अच्छे काम पर नज़र नहीं डालते। कलहंस अटल बैठा रहा-चुप । जैमे चैतन्य न सुना, कमठ ! मैं तुम्हारा दोस्त हूं, और उमी नाते हो, जड़ हो, पत्थरका पुनला। फिर उठकर लौट तुम्हें समझानेका मुझे हक है।'
आया-चुपचाप । कमठ था, दुष्टतामें कुशल । बातें बनाना उमे x x x x आता था। वह म्वयं जानता था-'मरना-कहना'
(४) जितना सुलभ है, 'मर जाना' उतना ही कठिन ! इच्छा नही होती, पर करने पड़ने हैं-ऐसे वह कलहमके गलेमे लिपट कर गेने गला-विलख बहुतसे काम हैं दुनियामें । कलहंसके सामने भी यह विलख कर।
वैमा ही काम है। यों वह बजात-खुद बुग श्रादमी कलहसकी दृढ़ता, गंग बनगई। मन जानें कैमा नहीं है, लेकिन बुरेका माथी तो हई है । पीनक न