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अनेकान्त
[वर्ष ४
कहते हैं । अनेकान्त-नीति और म्याद्वादनीति'
ममन्तभद्रविचारमाला नामकी एक नई लेखमाला भी इसीके नामान्तर हैं। यह ग्वालिनीके पाम
शुरू की गई है, जिममे 'स्वपग्वैरी कौन' इसकी नहीं रहती, किन्तु ग्वालिनीकी मन्यन-क्रिया बढ़ी दा सुन्दर एवं हृदयग्राही व्याख्या है; तत्त्वार्थइभके रूपकी निदर्शक है, और इम लिये दूध
पत्रके बीजांकी पूर्व खोज है, 'समन्तभद्रका दही बिलोती हुई म्यालिनीकी इमका रूपक
मानजीवन और आपत्काल' लेग्व बड़ा ही हृदयममझना चाहिये। श्रार यदि तमे व्यक्तिविशेष द्रावक एवं शिक्षाप्रद है, 'भक्तियोग-रहस्य' में नमान कर शक्तिविशेष माना जाय तो यह
पृजा-उगमनादिके रहस्यका बड़े ही मामिक अवश्य ही एक जनदवता है. जो नयोंक द्वाग हंगमे उदघाटन किया है। इमरे विद्वानोके भी विक्रिया करके अपने मान म्य बना लेनी है
अनेक महत्वपूर्ण मैद्धान्तिक, माहित्यिक. और इसीलिये विविध-नयापेक्षा' के. माथ इसे iतहासिक और सामाजिक लेखासे यह अलंकृत 'सप्तभंगरूपा' विशेषण भी दिया गया है। वस्तु
है; अनेकानेक सुन्दर कावताश्रीस विभाषत है, तत्त्वका सम्यगमाहिका और यथानत्य-प्रमापका
और 'श्रात्मबोध' जैसी उत्तम शिक्षाप्रद कहानिया भी यही जेनीनीति है । जैनियोंको तो अपने इस
को भी लिए हुए है । इमकी 'पिजरेकी चिड़िया' श्राराध्यदेवताका मदा ही आगधन करना चाहिये
बड़ी ही भावपूर्ण है। और मम्पादकजीकी लेखनी और इसीके श्रादेशानुसार चलाना चाहिये
में लिखा हुई एक अादर्श जैनाहलाकी सचित्र इसे अपने जीवनका अंग बनाना चाहिये और जावनी तो सभी स्त्री-पुरुषोंके पढ़ने योग्य है और अपने सम्पूर्ण कार्य-व्यवहारोम इसीका सिक्का श्रच्छा श्रादर्श उपस्थित करती है। ग़रज़ इम चलाना चाहिये। इमकी अवहेलना करनेसे ही
अंकका कोई भी लेख ऐसा नहीं जो पढ़ने तथा जैनी अाज नगण्य और निम्तेज बने हैं। इस
मनन करनेके योग्य न हो। उनकी योजना और नीतिका विशेष परिचय 'अनेकान्त' सम्पादकने
चुनावमं काफी मावधानीमे काम लिया गया है। अपने 'चित्रमय जनीनीति' नामक लेखमें दिया मेठजी मैं सब लेखोको जरूर गौरमे पढूंगा, और आगे है, जो ग्वब गौरके साथ पढ़ने-सुननेके योग्य है।
भी बराबर 'अनेकान्त' को पढ़ा करूँगा तथा दूसरी (यह कह कर पंडितजीने सेठजीको बह मम्पादकीय
को भी पढ़नेकी प्रेरणा किया करूँगा साथ ही अब लेख भी सुना दिया।)
तक न पढ़ते रहनेका कुछ प्रायश्चित भी करूंगासेठजी-(पाडतजीकी व्याख्या और मम्पादकीय लेखको इम पत्रको कुछ महायता ज़रूर भेज़गा। बड़ी ही
सुन कर बड़ी प्रसन्नताके. माथ) पंडितजी, श्राज तो कृपा हो पाडतजी, यदि आप कभी कभी दर्शन देते आपने मेरा बड़ा ही भ्रम दूर किया है और बहुत रहा करे। अाज तो मैं आपसे मिल कर बहुत ही ही उपकार किया है। मैं तो अभीतक 'अनेकान्त' उपकृत हुअा। को दूसरे अनेक पत्रोकी तरह एक माधारण पत्र पंडितजी-मझे आपसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई श्रापने ही समझता श्रारहा था और इसीलिये कभी इसे
मेरी बानोको ध्यानसे सुना, इसके लिये मैं आपका ठीक तोरसे पढ़ता भी नहीं था, परन्तु आज मालूम
श्राभारी हैं। यथावकाश में ज़रूर श्रापसे मिला हुश्रा कि यह तो बड़े ही कामका पत्र है-इसमें
करूँगा। अच्छा अब जाने की इजाजत चाहता हूँ। तो बड़ी बड़ी गूढ बातोको बड़े अच्छे सुगम ढंगसे
(सेठजीने खड़े होकर बड़े श्रादरके माथ पंडितजीको ममझाया जाता है।
बिदा किया और दोनो श्रोग्म 'जयजिनेन्द्र' का सुमधुरनाद पंडितजी-(बीच में ही बात काटकर) देखिये न. इम नव- हर्ष के साथ गूंज उठा।)
-निजी संवाददाता वर्षाङ्कमें दूसरे भी कितने सुन्दर सुन्दर लेख है