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'अनेकान्त' पर लोकमत
७-प्रो० हीरालाल जी जैन एम० ए०, श्रमगवनी वर्षाङ्क' मंग्रहणीय है । ऐतिहामिक, मैद्धान्तिक और
"अनकान्तको पुनः जागृत हुश्रा पाकर मुझे गर्वषणापूर्ण लेखोंक मिवाय साहित्यिक और बड़ी खुशी हुई, और उसे इतने सुन्दर सुमज्जिन म्प सामाजिक लेखोंका भी मंग्रह किया गया है। मर्वमें देख कर तो चित्त प्रमन्न होगया । मंगृहीत मामग्री माधारण के लिये यह वांछनीय तथा उपयोगी भी है। भी माहित्यिकोंके लिये ग्यब उपयोगी मिद्ध होगी। मुम्बपृष्ठका चित्र म्यादाद (अनकान्त) सिद्धान्तका श्राशा और विश्राम है कि यह पत्रिका माहित्यिक पूर्ण परिचायक है। 'अनकान्न' की अस्थिर अवस्था श्रेता और मौजन्यताको रक्षा करती हुई नगना का सुस्थिर बनाना जैन ममाजका कर्तव्य है । दानउन्नतिशील होगी।"
शील महानुभावांका इस ओर लक्ष्य दकर जैन ८. पं० वंशीधरजी जैन व्याकरणाचार्य. बीना- माहित्य तथा धर्मप्रचारम हाथ बटाना चाहिये ।
आशा है 'अनन्त' पका-तके अजानकं विनष्ट "अनकान्तकं विशेषांकका अध्ययन किया ।
कग्न, जैन इतिहाम और माहिन्यकी खोज करने तथा आपके सम्पादनकी ही यह विशेषता है कि अनकान्त
साहित्य और समाज मेवाकं अपने अनुमानम अभूतइनना महत्वपूर्ण और विद्वानांका आकर्षक बना
बना पूर्व मफलता प्राप्त करेगा।" . हुआ है । विशेषांक सभी लंग्य गणनाकी काटिमें
काटिम ११ मिघई नागमी, ललितपुर
। आनके योग्य हैं । आपकी 'ममन्नभद्र-विचारमाला'
___ अनेकान्न' को अवलोकन करनम ज्ञात हुमा नामकी लग्यमालाम स्वामी ममन्तभद्रक विचागेका
" कि उसमें जो संग्रह है वह उपाय है। ममाज में एम महत्वपूर्ण दिग्दर्शन होगा । विवाह और हमाग
ही उत्तम पत्रोकी आवश्यकता है जो मामाजिक ममाज नामक लेम्व ममाजकं प्रत्येक व्यक्तिक लिए
झगड़ाम दृर रह कर ममाजसंवाम अग्रसर रहें और पठनीय है। उसमे सामाजिकदृष्टिम काकी मंग्रहणीय
ममाजोत्थानको अपना लक्ष्यविन्दु बनाकर उमीम मामग्री रखी गई है।"
नन्मय रहे एम ही अंग्रपत्रांम समाजसुधार हानेकी पूर्ण ५ ५० के० भुजबली जी जैन शास्त्री, प्राग
मंभावना है। ममा ज प्रेमियों । एम पत्रकं ग्राहक ___ "अनकान्तका विशेषांक अच्छा निकला है । हनिमें जग मा भी विलम्ब नहीं करना चाहिए।" 'तत्वार्थमूत्रक बीजोंकी ग्वोज' 'श्रीचंद्र और प्रभाचंद्र' १२ पं० दौलतगम जी जैन 'मित्र', इन्दौर'गांम्मटसारकी जीवतत्वप्रदीपिका टीका उसका कर्तृ . "अनेकान्तका विशेषांक मिला मुस्वपृष्ठ पर त्व और समय' आदि कनिपय लंग्य महत्वपूर्ण हैं।" जैन नीति' का जो चित्र अंकित किया गया है. वह १० बाबू सुमेरचन्दजी कौशल बी० ए०, सिवनी- अपन विषयको स्पष्ट करनेवाला तो था ही, फिर भी
विविध-विषय-विभूपित 'अनकान्त' का 'नव- ममन्तभद्र विचारमालाक 'स्वपरवैरी कौन' ? नामक