________________
१६८
अनेकान्त
[वर्ष ४
युक्ति सुननेको तय्यार नहीं, कोई भी दूसरेकी दृष्टि नहीं जा सकता ? क्या इसके लिए सब विचारणा दखनेको तय्यार नहीं, सब ओर असहिष्णुता है। व्यर्थ है ? सब परिश्रम निष्फल है ? हर एक अपनको आस्तिक और दूसरेको नास्तिक नहीं, जीवन-तत्त्व अप्राप्य नहीं, जीवन-तत्त्व कहने में लगा है। हर एक अपनको सम्यक्ती और अज्ञेय नहीं। यह हरदम, हर समय अपने माथ दूमरेको मिथ्यानी ठहरानेमें लगा है। हर एक अपन मौजूद है, यह अपन से ही अपनी आशंका उठान को ईमानदार और दृमरको काफिर सिद्ध करने वाला है, अपने ही अपनी जिज्ञासा करने वाला है, लगा है।
यह आप ही अपनका जानने वाला है। फिर यह ___ यहां कोई यह साचनको तय्यार नहीं कि, जब जाना क्यों नही जाना ? यह जाना हुअा अनकरूप हम सब ही अपने नित्य विज्ञानमें एक मत हैं, अपने क्यों होजाता है ? इसके दो कारण हैं-(१) जीवन नित्य व्यवहारमे एक मत हैं, तो हम अपने दर्शन की सूक्ष्मता और (२) जीवनकी विमूढ़ता। (Philosophs) में एक मत क्यों नहीं ? जब हम यह जीवन-तत्त्व अपने पाम होते हुए भी अपने मब ही दो और दो को चार कहने वाले हैं, तो हम से बहुत दूर है । यह सूक्ष्मम भी सूक्ष्म है, भीतरस अपने जीवनको एक समान कहने वाले क्यों नहीं ? भी भीतर है । यह अन्तरगुफामें छिपा है, अन्तग्लोक यह किसका दोष है ? जीवन तत्त्वका ? या ज्ञाताका ? में जाकर छिपा है। यह श्रद्धा-धारणामें रहने वाला है, या दोनोंका ?
___ भावना-कामनामें रहने वाला है, प्रेरणा-उद्वेगनामें यहां सब ार विमूढ़ता है, सब ओर वितण्डा रहने वाला है, वेदना-आशामें रहने वाला है, जिज्ञामाहै, सब ओर दर ग्रह है। यहां जीवनतत्त्व एक होते विचारणामें रहने वाला है। यह अत्यन्त गहन है, हुये भी तत्सम्बन्धी-“एक हाथी और पांच अन्धों अत्यन्त गम्भीर है । इसे देखना अामान नहीं, इस के ममान मब ही की दृष्टि भिन्न है. सब ही का तके पकड़ना आसान नहीं । यह बाह्य वस्तुकी तरह नहीं, भिन्न है, मब ही की व्याख्या भिन्न है, सब ही का जो इन्द्रियोंस देखनमें श्राग, बुद्धिम समझमें आए, सिद्धान्त भिन्न है। इम साम्प्रदायिक विमोहमें, इम हाथ-पांवोंस पकड़नेमें आए। यह ता भीतरी वस्तु शाब्दिक घटाटोपमें भला सत्यका अध्ययन कहां, है, यह इन्द्रिय और बुद्धिस दूर है, हाथ पावोंसे परे सत्यका अन्वेषण कहां, मत्यका निर्णय कहां? है। यह अन्तर्ज्ञानद्वाग, निष्ठाज्ञानद्वाग जानी जा जीवन दुर्योधताके कारण
सकती है। परन्तु लोक इतना विमढ है कि यह इसे यह जीवन-तत्त्व, जब न लोकप्रसिद्ध बुद्धिमानों बाहिरी वस्तुकी तरह इन्द्रियोंसे देखना चाहता है, के जाननम आता है, न माम्प्रदायिक लोगोंके जानने बुद्धिस ममझना चाहता है, हाथ पावोंसे पकड़ना में आता है, न कवि-कलाकारोंक बोधमें आता है, न चाहता है। यह बुद्धिज्ञान और निष्ठाज्ञानमें भेद विचारकोंकं बोधमें आता है, तो क्या यह अप्राप्य है १ करना नहीं जानता । यह इनके प्रमाणरूपको क्या यह अज्ञेय है ? क्या यह किसी प्रकार भी अप्रमाणरूपस अलग करना नहीं जानता । यह हासिल नहीं हो सकता ? किसी प्रकार भी जाना भ्रान्ति और कल्पनासे ज्ञानको अलग करना नहीं