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किरण ३ ]
हरिभद्र-सूरि
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विचारपूर्ण विचारोंके अनुयायी और अनेक कवि सुधारक कलाकारको विशिष्ट कलाका ही द्योतक है। थे । तत्कालीन क्रिया संबंधी अंधकारको अपने ज्ञान, और ललितविस्तरावृत्तिमें, बौद्ध श्रादि सभी दर्शनोंके चारित्र-द्वारा विनष्ट करनेका इन्होने सफल प्रयास किया था। मिद्धान्तोंकी संक्षेपमे किन्तु मार्मिकताके साथ मीमासा करते
रचना-प्रणालीकी विशेषता हुए, अर्हदेवकी श्राप्तता और पूज्यता गंभीर और हृदयंगम हरिभद्र-सूरिने साग्व्य, योग, न्याय, वैशेपिक, अटूत, रीतिसे स्थापित करनेका प्रयास किया है । चार्वाक, बौद्ध और जैन आदि सभी दर्शनाकी श्रालोचना- अनेकान्तजयपताकामें बौद्धोका काफी प्रतिक्षेप है। प्रत्यालोचना की है, किन्तु अपनी प्रकृति-उदारताका कही ममग्र कुतर्कोका अच्छे दंगसे निराकरण किया गया है। पर भी उल्लंघन नही होने दिया है। भारतीय मी दर्शन स्यावाद पर होने वाले सभी आक्षेपांका योग्य उत्तर दिया धाराश्रा पर विद्वतापूर्वक मीमासा और आलोचना करते गया है । अतवाद एवं शब्दब्रह्म पर भी विचार किया समय भी तटस्थवृत्ति रखना निश्चय ही आदर्श और अनु- गया है। श्री जिनविजयजीने लिखा है कि 'अनेकान्त करणीय है।
जयपताकाग्रन्थ', वासकर भिन्न भिन्न बौद्धाचार्योंने अपने जैनदर्शनके मौलिक सिद्धान्तरूप स्याद्वाद पर अन्य ग्रन्थोमे जैन धर्म के अनेकान्तवादका जो खंडन किया है, बौद्ध एवं ताकिका-द्वारा किये जाने वाले तार्किक एवं उसका उत्तर देने के लिए ही रचा गया था। ताकिंकचक्र दार्शनिक विकल्पात्मक हमलाका उसी पद्धतिसे और वैमा चुडामणि आचार्य धर्मकीर्तिकी प्रखर प्रतिभा और प्राञ्जल ही प्रबल और प्रचंड उत्तर देने वाले सर्व प्रथम यदि कोई लेवनीने भारतके तत्कालीन सभी दर्शनोके साथ जैनधर्म के जैन नैयायिक दृष्टिमं पाते हैं, तो ये हरिभद्र और भट्ट ऊपर भी प्रचण्ड अाक्रमण किया था। इसीलिए हरिभद्रने अकलंकदेव ही हैं। स्यावाद पर किये जाने वाले दोषो जहो कही थोडामा भी मौका मिला, वहीं पर धर्मकीर्तिके का परिहार जैमा इन दोनों प्राचार्योने किया है, बैंमा ही भिन्न भिन्न विचारोकी मौम्यभाव पूर्वक किन्तु मर्मान्तक करते हुए हमचन्द्रने भी इस उज्ज्वल मिद्धान्तको निदोष रीनिस चिकित्मा कर जैनधर्म पर किये गये उनके आक्रमणों प्रमाणित किया है।
का सूद सहित बदला चुकवा लेनेकी सफल चेठाकी है।" योग-साहित्यमें भी जैन विचार-धाराका खयाल रखते जैनसमाजको तर्कात्मक प्रमाणवादकी ओर आकर्षित हुए अपनी महत्त्वपूर्ण नवीनता प्रदर्शित की हैं। नि:संदेह करनेके लिए हरिभद्रने सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् दि नागकृत इनकी समुज्ज्वल कृतियांसे भारतीय साहित्य गौरवान्वित 'न्यायप्रवेश' पर एक विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी। इस प्रकार हा है। श्रद्धेय पं० सुखलालजीके शब्दोंमें इनके ग्रन्थ जैनसमाजको बौद्ध दर्शनके अध्ययनकी ओर आकर्षित हमारी सारी जिन्दगी तकके लिए मनन करने और शास्त्रीय किया । जैसा इनका भारतीय दर्शन शास्त्र पर अधिकार था, प्रत्येक विषयका जान प्राप्त करने के लिए पर्याप्त हैं। इन वैमा ही व्याकरण शास्त्र पर भी इनका पूरा पूरा अधिकार की युगप्रधानत्वरूप ख्यातिका मूल कारण श्राचार क्षेत्रमे था । यही बात मुनिचन्द्रसूरिने लिखी है कि हरिभद्र-सूरि विशेषता और पवित्रता लाने के साथ साथ साहित्य-सेवा भी आठ व्याकरणोके पूर्ण ज्ञाता थे । है। चारों अनुयोगो पर सफलतापूर्वक साहित्यका निर्माण हरिभद्र-कालमें संस्कृत भाषा अपने पूर्ण प्रौढ़ साम्राज्य करना, और उसमें विशेषताके साथ स्थायित्व लाना अमर का श्रानंदोपभोग कर रही थी। इसी कालमें काव्य, नाटक,