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अनेकान्त
[ वर्ष ४
हुआ है । गर्भके समय चन्द्रपानकी इच्छा हुई थी, चन्द्रगुप्तने अपनी प्रबल और संगठित शक्तिसे इस लिये उसका नाम 'चन्द्रगुप्त' रखा गया। वह आक्रमण किया और सब प्रान्त अपने आधीन कर होनहार बालक दूजके चौदकी तरह दिन-प्रति-दिन लिये, एवं अन्तमें चाणक्यकी नीतिसे राजा 'नन्द' पर बढ़ता हुआ कुमार अवस्थाको प्राप्त हुआ।
विजय प्राप्त करनेमें चन्द्रगुप्त का सफलता प्राप्त हुई।
इस प्रकार नन्दके मगधदेश पर अधिकार करके 'होनहार बिरवानके होत चीकने पात' की
चन्द्रगुप्त मगधपति होगया। 'परिशिष्टपर्व' में लिखा कहावतके अनुसार कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त बचपन
है कि चंद्रगुप्तकी विजयके अनन्तर नन्दकी युवती में ही राजाओं जैसे कार्य करता था। कभी साथियों
कन्याकी दृष्टि चन्द्रगुप्त पर पड़ी और वह उस पर से कोई खेल खेलता तो ऐसा ही, जिसमें स्वयं गजा
आसक्त होगई और नन्दने भी प्रसन्नतापूर्वक चन्द्रगुप्त बनकर साथियोंको अपनी प्रजा बनाकर आज्ञा करता,
के पास चले जानकी अनुमति दे दी । प्राचीन न्याय करता और दण्ड देता । चन्द्रगुप्त लगभग आठ
भारतवर्ष (गुजराती) में डा० त्रिभुवनदास लहेरचंद वर्षका हुआ तब चाणक्यकी दृष्टि उस बालक पर
शाहने भी इस घटना पर अपने विचार प्रदर्शित करते पड़ी और अपने पूर्व वघनके अनुसार चन्द्रगुप्तको
हुए लिखा है कि जो इतिहास चन्द्रगुप्तको नन्दका असली राज्यका लोभ देकर साथ लिया और उसे पत्र लिखते हैं, उनकी यह बड़ी भूल है, चन्द्रगुप्त राजाओंके योग्य उचित विद्याभ्यास कराया और
नन्दका पुत्र नहीं प्रत्युत दामाद था। नन्दके समूल नाशकी तैयारी प्रारम्भ कर दी। प्रारम्भमें तो चन्द्रगुप्तने चाणक्यकी नीति और
इस प्रकार सम्राट चन्द्रगुप्तकी वीरतास मौर्य
सत्ताकी स्थापना हुई । लाला लाजपतरायजीक अपने बलम कुछ भूमि अधिकार में कर छोटासा
शब्दोंमें-"भारतके गजनैतिक रंगमञ्चपर एक ऐसा गज्य बना लिया और फिर अपनी शक्तिका संगठित
प्रतिष्ठित नाम आता है जो संसारक सम्राटोंकी प्रथम करना प्रारम्भ किया।
श्रेणोमें लिखने योग्य है, जिसने अपनी वीरता, भारतसे वापस चले जाने पर विश्वविजयी सिक- योग्यता और व्यवस्थासे समस्त उत्तरीय भारतको न्दरका बेबिलोनमें ई० सन् ३२३ पूर्व देहान्त होगया। विजय करके एक विशाल केन्द्रीय राज्यके श्राधीन पश्चिमोत्तर प्रान्त तथा पंजाबमें यूनानी राज्य कायम किया।" * रखने के लिये जिनको सिकन्दर छोड़ गया था, उनपर संल्यकस द्वारा भेजे गये गजदृत मेमाम्थनीज़ने * चन्द्रगुम के जन्म समयके सम्बन्धमें कुछ मतभेद प्रतीत चन्द्रगुप्तके राज्य पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है,
होता है—प्राचीन भारतवर्ष (गुज.) के लेखक डा. उसके वर्णनसे यह बात स्पष्ट झलकती है कि वीर त्रिभुवनदास लहेरचन्द शाह, चन्द्रगुप्तका जन्म वीर चड़ामणि चन्द्रगुप्तने न्याय, शान्ति और व्यवस्थानिर्वाण सं० १५५ तथा ईस्वी सन् ३७२ वर्ष पूर्व पर्वक शासन करते हुए प्रजाको सर्व प्रकारेण मुखी लिखते हैं। प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ 'परिशिष्टपर्व' से .. भी इसीकी पुष्टि होती है।
* भारतवर्षका इतिहास-लाला लाजपतराय
पदक